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धन्यवाद जनाब कथा पसंदिगी हेतु .
बह्त सुंदर लघुकथा हुई है रीता जी एकदम मासूम सी.बधाई आपको इस रचना के लिये
धन्यवाद आदरणीय नयना जी ,आपको रचना की मासूमियत पसंद आई , मेरा लेखन उद्देश्य इसी भाव को अक्षुण रखना था.
इस लघुकथा में सात संवाद हैं, पहला संवाद लख्खी का है और अंतिम राखाल काI यह मध्य वाले संवाद किसके है आ० रीता गुप्ता जी? आप अगर कुछ रौशनी डाल सकें तो लघुकथा पर आगे बात करूँI सादरI
धन्यवाद सरजी. राखाल के औचक प्रवेश से पहले के सारे संवाद लख्खी के ही हैं जो वह दर्पण के समक्ष खुद से ही कर रही है. संवादों से उसके अकेलेपन के एहसास जाहिर हो रहें हैं. सो दर्पण को मनमीत बना वह अपने दिल की बचकानी बातें कर रही है. उम्मीद करती हूँ आप फिर से कथा का अवलोकन कर प्रकाश डालेंगें. सादर
धन्यवाद आदरणीय विशेष टिप्पणियों से अनुग्रहित हुई .
खूबसूरत प्रस्तुति आदरणीया !बहुत बधाई आपको । सादर
धन्यवाद आभार आपका हरी प्रकाश जी.
दर्पण सच में एक सच्चा साथी होता है जो आपको सुनता भी है और ठीक वैसी ही प्रतिक्रिया भी देता है जैसी आप भावना रखतें हैं, हुबहू. धन्यवाद नीता जी .
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