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आदरणीया उपमा जी. बहुत बढ़िया लघुकथा लिखी है आपने. अनुभवी के मुख से निकली पंचलाइन जबरदस्त प्रभाव डालती है. इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई निवेदित है. सादर
बहुत सुंदर संदेश देती,सचेत करती कथा ,बधाई आदरणीय।
प्रदत्त विषय को एक अलग आयाम में परिभाषित करती सुन्दर रचना ,हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीया उपमा जी
वाह, बहुत बढ़िया पंचलाइन है आदरणीया उपमा शर्मा जी| कुछ रंग वक्ती होते हैं जो वक्त के साथ चढ़ते और उतर जाते हैं| इस लघुकथा के सृजन हेतु हार्दिक बधाई स्वीकार करें|
रंग
आज मुद्दतों बाद रमेश के चेहरे पर ख़ुशी की चमक छायी थी। शुभम ,उसके सबसे जिगरी दोस्त ने उसे सपरिवार भोजन पर निमंत्रित किया था।एक दर्दनाक हादसे में अपनी आँखें खो देने के बाद आज लगभग एक साल बाद वह घर से बाहर निकल रहा था। सारी जिम्मेदारी उसकी पत्नी मीना पर आन पड़ी थी।शुभम के प्यार भरे अनुरोध और जिद के आगे उसका कोई बहाना न चला। अंततः निमंत्रण स्वीकार करना ही पड़ा।
"मीना...सुनो आज तुम वही गुलाबी टसर सिल्क की साड़ी पहनना जो मैंने तुम्हे पहली सालगिरह पर दी थी। बेहद खूबसूरत लगती हो तुम उसमे।" कहते हुए रोशनीविहीन आँखों के आगे मीना का खूबसूरत चेहरा तैर गया।
थोड़ी ही देर बाद दोनों गाडी में मौजूद थे। ड्राइविंग सीट पर मीना थी। एक्सीडेंट के बाद तो घर और गाडी दोनों की स्टीरिंग मीना के हाथ में थी। मीना झुकते हुए रमेश के सीट की बेल्ट लगाने लगी।बेहतरीन फ्रेंच परफ्यूम की खुशबू नथुनो से टकराती हुई रूह में उतर गयी। भावावेश में मीना को बाहों में भर लिया। लेकिन अगले ही पल उसकी पकड़ ढीली पड गयी। दिल में हलचल सी होने लगी।मन में कुछ कौंधा:
"मीना ने तो वही पीली शिफ़ोन की साडी पहनी है जो शुभम ने उसके जन्मदिन पर उसे उपहारस्वरूप दी थी।"
"क्या सोचने लगे रमेश?" कहते हुए मीना ने गाडी स्टार्ट की।
"कुछ नही ,बस यही सोच रहा हूँ कि आँखों की रौशनी क्या गयी,दुनियाँ का रंग ही बदल गया।"
"मतलब?" "मतलब ये कि साड़ियाँ बेचते बेचते ,उनके इंद्रधनुषी रंगों से खेलते खेलते दुनियाँ के रंग ही भूल गया था।"
मीना के चेहरे का रंग सुर्ख़ से स्याह हो गया।
【मौलिक एवम् प्रकाशित】
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