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ड्रीम गर्ल(लघुकथा )राहिला

उस छोटे से कस्बे में अचानक बेहद सुन्दर युवती का आगमन जहाँ एक ओर नुक्कड़ पर खड़े ठलुओं के बीच हलचल का विषय बन गया वहीं उनके लीडर और सबसे सुदर्शन भंवरे रोहन के लिये चुनौती।अब होड़ इस बात की थी कि उस सुन्दरी से सबसे पहले बात करने का सौभाग्य किसे मिलता है । बहुत जतन के बाद सबके अरमान तब ठंडे हो जाते जब वो उन सब को नजरअंदाज कर गुजर जाती । गुजरते वक्त के साथ उसकी बेनियाजी भले ही किसी को इतनी ना अखरी हो लेकिन रोहन के लिये अ़ना का सवाल बन गई थी। ऐसे में एक दिन उसने मित्र मंडली के बीच धमाका किया, कि आज उसकी बात उस ड्रीम गर्ल से हो गई ।
"क्या बात कर रहे हो..कब?कहाँ?"कुछ आश्चर्य और ईर्ष्या मिश्रित स्वर गूंजे।
"तालाब वाले मंदिर पर आज सुबह।"
"अच्छा बे..!क्या बात हुई?पहल तो तूने ही की होगी हमेशा की तरह।" एक ने आंख दबाते हुये पूछा।
"हम्म..वो तो मैंने ही की थी।लेकिन पहली मुलाकात में इतनी बातें होंगी सोचा नहीं था।जितनी खूबसूरत वो है उतनी ही मीठी आवाज और बोलने के अंदाज का तो क्या कहना।"
"यार तूने तो इस बार भी बाजी मार ली।एक बार हमारी बात भी करा दे।"
"करा देता मगर.."
"मगर क्या? "
"यार वैसे तो सब ठीक है लेकिन जितनी झुईमुई मैं समझ रहा था वो वैसी नहीं।कुछ चालू किस्म की लगी..और बहुत ज्यादा बोलती है । इसलिये कुछ जमी नहीं । "उसने मुंह बिचकाते हुये कहा ।
तभी पीछे पान की दुकान पर पान लगाता बरई मुंह टेड़ा कर पीक थूकते हुये पास खड़े ग्राहक से बोला-
"सुन रहे हो बाबूजी इन लफंगों की बातें एक गूंगी लड़की का ज्यादा बोलना नहीं जमा राजा साहब को हुंह..। "

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by Rahila on February 24, 2016 at 1:41pm
बहुत धन्यवाद आदरणीय योगराज सर जी !दरासल,ठलुआ हमारी स्थानीय बोली का शब्द है । लेकिन आपने मुझे इसकी जगह जिस शब्द से परिचय कराया वो मुझे पता ही नहीं था । बहुत शुक्रिया मेरे शब्दकोष में इज़ीफा करने के लिये ।सादर

प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on February 24, 2016 at 10:14am

बहुत खूब राहिला जी, लघुकथा पसंद आईI "ठलुआ/ठलुए" फेसबुकिया शब्द है, इनकी जगह शोहदा/शोहदे शायद ज्यादा बेहतर होगाI  

Comment by Rahila on December 17, 2015 at 2:31pm
आदरणीय विजय सर जी! आपकी टिप्पणी ने मेरी लेखन सार्थक कर दिया । धन्यवाद बहुत आभार आपका । सादर नमन ।
Comment by vijay nikore on December 16, 2015 at 3:04pm

बहुत समय के बाद ओ बी ओ पर आ पाया हूँ, और यह लघुकथा पढ़कर बहुत ही आनन्द आया। आपको हार्दिक बधाई, आदरणीया राहिला जी।

Comment by Rahila on December 13, 2015 at 8:43pm
बहुत आभार आदरणीय सतविन्दर सर जी! दो शब्दों में ही आपने पूरी रचना को मान दे दिया । धन्यवाद ।
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on December 13, 2015 at 3:00pm
सुंदर।बधाई आदरणीया
Comment by Rahila on December 13, 2015 at 12:55pm
बहुत -बहुत शुक्रिया आदरणीय नादिर ख़ान साहब आपकी हौसला अफज़ाई मुझे हमेशा उत्साह से भर देती है ।सादर ।
Comment by नादिर ख़ान on December 8, 2015 at 4:22pm

आदरणीया राहिला जी, बढ़िया पंच से लघुकथा ने ऊचाई को छुआ है बहुत बधाई आपको। ....
मासूम लोगों को किस तरह के बोहतान का सामना करना पड़ता है, बड़ी खूबी से आपने लघुकथा में बयाँ किया ।

Comment by Rahila on December 8, 2015 at 1:13pm
बहुत आभार आदरणीय सुनील जी !आपकी प्रतिक्रिया का इंतेजार ही था । आपको रचना पसंद आई बहुत शुक्रिया । सादर
Comment by Rahila on December 7, 2015 at 10:42am
आदरणीय गोपाल नारायण सर जी!सादर प्रणाम,आपका आशीर्वाद प्राप्त हुआ मैं धन्य हुई।मेरा लेखनी आसपास के माहौल से प्रेरित है ।इसलिये बहुत साधारण लेखन है । फिर भी आपका ध्यान रचना पर गया बहुत शुक्रिया आपका । सादर नमन ।

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