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सांप मरा और लाठी साजी (लघुकथा )राहिला

विद्यालय में मध्यान्ह भोजन की दाल में असंख्य इल्ली, तिलूले ,देखकर मैं आपे से बाहर हो गई । तुरंत बच्चों की पंगत उठा कर मैं मध्यान्ह भोजन के ठेकेदार से जम कर उलझ पड़ी । लेकिन वो भी कम ना था, हर बात को "इत्तेफाक "कह के टालने लगा । मुझे दुःख इस बात से ज्यादा हो रहा था कि पता नही कितने दिनों से ये मासूम ऐसा खाना खा रहे है । इत्तेफाक तो मेरे साथ हुआ कि मैं आज प्रभार में थी और ये कृत मेरी जानकारी में आ गया । मैंने तुरंत लिखित कार्रवाई शुरू की । अपने खिलाफ कार्रवाई होते देख उसने गिरगिट की तरह रंग बदला अब वो ढिठाई छोड़, घिघयाने लगा लेकिन अकड़ कायम थी । जब उसे हर बात बेअसर होती दिखी तो वो साम,दाम दंड, भेद पर आ गया ।
"अरे बहिन जी! गलती हो गई । चाहे तो सौ जूते मार लो, जो कहो करने बाको तैयार हूं "लेकिन मैं किसी भी कीमत पर मामला रफा -दफा करने के विचार में नहीं थी।इसलिये उसकी कोई भी बात का असर मुझ पर नहीं हो रहा था । परन्तु इस हंगामें से गांव के कुछ दंबंग और उसके सजातीय लोग जुड़ गये।और मुझ पर दबाव बनाने लगे आखिर ...
"तो ठीक है..,जब आप सभी की यही मर्जी है तो ये सही । लेकिन मामला रफा-दफा करना अब पूरी तरह से ठेकेदार साहब के हाथ में है । "कह, मेरे चेहरे पर रहस्यमयी मुस्कान फैल गई, जिसे देख मौजूद महानुभाव की अनुभवी आंखे चमक गईं।
"अरे कैसी बात कर दी आपने,आप तो हुकुम करो बस..."वो हाथ जोड़ ,खींसे निपोरता बोला ।
"तो ठेकेदार साहब !एक काम करें,बस एक कटोरा ये दाल पी लें।"

.
मौलिक एवं अप्रत्याशित

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Comment by Rahila on February 24, 2016 at 1:35pm
हां ये भी शानदार अंत होता रचना का, आदरणीय योगराज जी!मैं जो हुआ वही लिख पाई कुछ और सोचा ही नहीं । बहुत आभार अपने विचार सांझा करने के लिये सर जी !सादर

प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on February 24, 2016 at 10:15am

बढ़िया लघुकथा है राहिला जी, बधाई स्वीकार करेंI वैसे, यदि यह लघुकथा मैं लिखता तो उस ठेकेदार को कहता कि पहले यह खाना तुम्हारे बच्चे खायेंगेI 

Comment by Rahila on December 17, 2015 at 2:34pm
आदरणीय विजय सर जी! पहले तो आपका बहुत आभार कि आपने मेरी रचनाओं को समय देकर समीक्षा की बहुत शुक्रिया । सादर नमन ।
Comment by vijay nikore on December 16, 2015 at 2:28pm

बहुत अच्छी पंच-लाईन दी है। अच्छी लघु कथा के लिए हार्दिक बधाई, आदरणीया राहिला जी।

Comment by Rahila on December 13, 2015 at 12:18pm
प्रिय जानकी दी! बहुत इंतेजार रहता है आपके स्नेह का । बहुत शुक्रिया जो आपका कुछ वक्त चुरा पाई मेरी रचना । बहुत आभार । सादर
Comment by Rahila on December 13, 2015 at 12:16pm
आदरणीया कांता दी!आपका एक -एक शब्द मेरे लिये अनमोल है । बहुत आभार आपका रचना की सराहना हेतु । सादर नमन ।
Comment by Rahila on December 13, 2015 at 12:13pm
आदरणीय मिथलेश सर जी!रचना पर आपकी उपस्थिति मेरे लिये बहुत हर्ष की बात है बहुत आभार आपका सराहना हेतु । सादर
Comment by Rahila on December 13, 2015 at 12:10pm
बहुत आभार आदरणीय सुनील जी! आपकी हौसला अफज़ाई सच में बहुत खुशी देती है । लगता है कि लेखन सार्थकता की ओर बढ़ रहा है । सादर
Comment by Janki wahie on December 11, 2015 at 2:43pm
वाह वाह प्रिय राहिला लाज़वाब कथा। सुंदर प्रस्तुति।ढेर सारी बधाई ।
Comment by kanta roy on December 11, 2015 at 12:03pm
वाह !!!! शानदार पंच के साथ ही यह बहुत ही उत्तम कोटि की लघुकथा हुई है आदरणीया राहिला जी । बधाई कबूल हो ,पढ कर तबियत खुश हो गयी है ।

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