For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"औरत सी ज़मीन और जमीर" - [लघु कथा] 21 / _शेख़ शहज़ाद उस्मानी

"जिठानी तो बस फसल कटने पे अपना हिस्सा माँगने लगती हैं, खुद शहर की हो गई, हमें बाप-दादाओं की खेती के काम तो चलाना ही है!"- खेत पर हल जोतते हुए माथे का पसीना पोंछ कर सावित्री ने देवरानी मंगला से कहा।

"मर्दों में वो कुव्वत रही नहीं, तो बेटों का मन कैसे लगे ऐसी खेती में !"- मंगला ने एक हाथ से पल्लू ठीक करते हुए अपने घर के मर्दों और ज़मीन के हालात पर कटाक्ष किया।

"लेकिन एक बात तो मानना पड़ेगी, गाँव छोड़के शहर में भले वो अभी झुग्गी झोपड़ी में रह रही है, लेकिन वो अपने बेटों की ज़िन्दगी एक दिन संवार ही देगी, ज़िद की पक्की है वो !"

"और क्या, जब मर्द मन हार के हाथ पे हाथ रखके बैठ जाये, तो औरत ही कुछ कर गुजरे !" मंगला के स्वर उग्र से हो रहे थे- "मर्दों को तो बस औरत को ज़मीन की तरह रौंदना आता है जब तलक काम कर जाये ! वैसइ जे ज़मीन, जब तलक साथ दे जाये ? खेती में घाटा हो जाये, तो ख़ुदकुशी की सूझती है !"

खेत पर जुताई करते हुए इन दोनों की बातें सुनकर पीछे से सावित्री के बेटे ने कहा- "अरे, ख़ुदकुशी तो वो करे, जिसका जमीर कमज़ोर होय ! ताई शहर में तरक्की करे या न करे, तुम दोनों का जमीर ,हमारा जमीर, खेती और तरक्की सब सही करा देगा !"

(मौलिक व अप्रकाशित)
24-10-2015

Views: 485

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on November 5, 2015 at 12:13pm
बहुत बहुत हार्दिक धन्यवाद आदरणीय सतविंदर कुमार जी हौसला अफज़ाई करने के लिए।
Comment by सतविन्द्र कुमार राणा on October 27, 2015 at 6:15am

sunder ....mardon ki kamjori pr behtrin ktaksh ....bdhai aadrniy

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on October 26, 2015 at 9:51pm
अपना अमूल्य समय मेरी रचना और टिप्पणी करने में देकर मुझे असीम प्रोत्साहन प्रदान करने हेतु हृदयतल से बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीया Pratibha Pandey जी।
Comment by pratibha pande on October 26, 2015 at 8:18pm

//"और क्या, जब मर्द मन हार के हाथ पे हाथ रखके बैठ जाये, तो औरत ही कुछ कर गुजरे !" मंगला के स्वर उग्र से हो रहे थे- "मर्दों को तो बस औरत को ज़मीन की तरह रौंदना आता है जब तलक काम कर जाये ! वैसइ जे ज़मीन, जब तलक साथ दे जाये ? खेती में घाटा हो जाये, तो ख़ुदकुशी की सूझती है !"//  सही है ,औरत के निश्चय और मानसिक ताकत को अक्सर आदमी कम आंकने की गलती कर बैठता है ,   शिल्प कसावट लिए है ,मर्म सामयिक है ,बधाई आपको आदरणीय उस्मानी जी 

Comment by Sheikh Shahzad Usmani on October 26, 2015 at 6:53pm
मेरी रचना पर उपस्थित हो कर प्रोत्साहित करने के लिए हृदयतल से बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीया कान्ता राय जी
Comment by kanta roy on October 26, 2015 at 6:12pm

बहुत खूब लघुकथा का ताना  -बाना रचा है आपने आदरणीय शेख शहज़ाद जी।  बधाई हो 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Apr 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Apr 29
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service