For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

घर  से  बाहर  जिसे  मैं ,

दर दर  ढूँढता  फिरा 

वो  बच्चा,

 मेरे  ही घर में  छिपकर 

मेरी  बौखलाहट पे ,

हँसता   रहा I

मै रहा  देहरियाँ  चूमता ,

मज्जिद  बुतखाने  की

मेरे दर पे बैठा वो ,

राह तकता  रहा 

मेरे  घर  लौट  आने की I

ढली  शाम ,  खाली   हाथ 

अब मैं  हूँ  लौट आया ,

किया  ढूँढने में  जिसे  

सारा  दिन जाया 

हाय , घर के अन्दर उसे

 मुस्कुराते पाया I

पर  अब थक  गया हूँ  

उसके साथ,

, कहाँ खेल  पाऊँगा 

बस  उसे  देखते  देखते

 यूं  ही सो  जाऊँगा I      

 मौलिक  व् अप्रकाशित  

 

 

Views: 659

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by pratibha pande on July 16, 2015 at 7:38pm

 आपकी  प्रतिक्रियाएं  सदा ही  उत्साहित  करती हैं ,  हार्दिक  आभार  आ० मिथिलेश जी 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on July 16, 2015 at 2:12pm

बहुत ही भावपूर्ण रचना. अपने घर में ही है उसका वास और उसे ताउम्र यहाँ वहां ढूंढते रहे और जब तक पता चला बहुत देर हो गई..... चिर निंद्रा में सोने का समय आ गया. घर और बच्चे के प्रतीकों से बहुत गहन भावना शाब्दिक हुई है. प्रतीकों का सहज प्रयोग मुग्ध कर रहा है, रचना कहीं भी असहज नहीं हुई. पाठक तक रचना का सहज सम्प्रेषण ही इसकी बड़ी विशेषता है. इस बेहतरीन रचना पर हार्दिक बधाई स्वीकारें आदरणीया प्रतिभा जी 

Comment by pratibha pande on July 16, 2015 at 9:11am

सराहना  के  लिए  धन्यावाद  ज्योत्स्ना कपिल जी 

Comment by pratibha pande on July 16, 2015 at 9:09am

आ०  विनय  कुमार जी ,  रचना  की  सराहना  के लिए  तहे दिल से आभार 

Comment by pratibha pande on July 16, 2015 at 9:02am

मेरे  इस छोटे से खोये  बच्चे  को  आपने  पहचाना   , धन्यवाद  कांता रॉय जी 

Comment by pratibha pande on July 16, 2015 at 8:58am

आ०  मोहन सेठी जी ,  आपको  रचना  अच्छी  लगी  ,मेरा  सौभाग्य    आपका  हार्दिक  आभार 

Comment by jyotsna Kapil on July 15, 2015 at 10:09pm
बहुत ही सुंदर एवम् भावपूर्ण रचना आ.प्रतिभा पाण्डेय जी।
Comment by विनय कुमार on July 15, 2015 at 8:09pm

बहुत सुन्दर कविता , ये तो खुशियां हैं जिन्हे हम दर दर ढूंढते हैं लेकिन मिलती अपने अंदर ही हैं | बधाई इस रचना के लिए..

Comment by kanta roy on July 15, 2015 at 5:40pm
बहुत खूब लिखा हैै आपने यह छोटा सा बच्चा ..... बधाई आपको इस सुंदरतम रचना के लिए आदरणीया प्रतिभा पाण्डेय जी
Comment by Mohan Sethi 'इंतज़ार' on July 15, 2015 at 4:59pm

वाह बहुत सुंदर शब्द है गहरे भाव लिये .....न जाने कहाँ कहाँ ढूंडा और जब मिला तो वक़्त ही ना रहा  ....हार्दिक बधाई इस रचना के लिये ....सादर 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"आदरणीय श्याम जी, हार्दिक धन्यवाद आपका। सादर।"
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: उम्र भर हम सीखते चौकोर करना
"आदरणीय सुशील सरना जी, हार्दिक आभार आपका। सादर"
1 hour ago

प्रधान संपादक
योगराज प्रभाकर posted a discussion

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-110 (विषयमुक्त)

आदरणीय साथियो,सादर नमन।."ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-110 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है। इस बार…See More
6 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

कुंडलिया छंद

आग लगी आकाश में,  उबल रहा संसार।त्राहि-त्राहि चहुँ ओर है, बरस रहे अंगार।।बरस रहे अंगार, धरा ये तपती…See More
7 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a blog post

कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर

कहूं तो केवल कहूं मैं इतना कि कुछ तो परदा नशीन रखना।कदम अना के हजार कुचले,न आस रखते हैं आसमां…See More
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to मिथिलेश वामनकर's discussion ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to मिथिलेश वामनकर's discussion ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024
"ओबीओ द्वारा इस सफल आयोजन की हार्दिक बधाई।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to मिथिलेश वामनकर's discussion ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024
"धन्यवाद"
Tuesday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to मिथिलेश वामनकर's discussion ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024
"ऑनलाइन संगोष्ठी एक बढ़िया विचार आदरणीया। "
Tuesday
KALPANA BHATT ('रौनक़') replied to मिथिलेश वामनकर's discussion ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024
"इस सफ़ल आयोजन हेतु बहुत बहुत बधाई। ओबीओ ज़िंदाबाद!"
Tuesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to मिथिलेश वामनकर's discussion ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024
"बहुत सुंदर अभी मन में इच्छा जन्मी कि ओबीओ की ऑनलाइन संगोष्ठी भी कर सकते हैं मासिक ईश्वर…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a discussion

ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024

ओबीओ भोपाल इकाई की मासिक साहित्यिक संगोष्ठी, दुष्यन्त कुमार स्मारक पाण्डुलिपि संग्रहालय, शिवाजी…See More
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service