For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कभी किसी की चुप्पी

कितना उदास कर जाती है।

साँसे  भी भारी होती जाती है।

मन हो जाता है उस झील- सा

जो कब से बारिश के इंतजार मे  थम सी गई हो 

और उसकी लहरें भी उंघ रही हो किसी किनारे बैठ के

शाम भी तो धीरे से गुजरी है अभी कुछ फुसफूसाती हुई

उसे भी किसी की चुप्पी का खयाल था शायद।

 

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 480

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on July 13, 2015 at 11:01pm

हम दुखी तो जग दुखी..  यह एक विशेष मनःस्थिति होती है. उससे गुजरती हुई दशा कविता के संयत शब्दों में अभिव्यक्त हुई है.  बधाई स्वीकारें महिमाजी..
शुभ-शुभ

Comment by maharshi tripathi on July 5, 2015 at 10:20pm

सुन्दर कविता ,,हार्दिक बधाई |

Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on July 5, 2015 at 3:00pm

बहुत सुन्दर बधाई! आ० महिमा जी!

Comment by kanta roy on July 4, 2015 at 11:38pm
बहुत खूब बात करती है चुप्पी आपकी चुपके से ... दिलों का राज खोलती आपकी चुप्पी जैसे चुपके से ......... बहुत ही शानदार लिखती है आप आदरणीया महिमा श्री जी ...... बधाई स्वीकार करें ।
Comment by shree suneel on July 4, 2015 at 5:48pm
व्वाहह!... क्या ख़ूब कल्पना है. इस सुन्दर कविता के लिए हार्दिक बधाइयाँ आपको आदरणीया महिमा श्री जी.
Comment by MAHIMA SHREE on July 3, 2015 at 8:53pm

आ. मिथिलेश जी..कविता आपको अच्छी लगी , जानकर खुशी हुई....सराहना के  लिए हृदय से आभारी हूँ..

Comment by MAHIMA SHREE on July 3, 2015 at 8:51pm

पसंद करने के लिए आपका बहुत आभार सलीम जी.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on July 3, 2015 at 2:00pm

बहुत सुन्दर भाव से सजी रचना है इस सुन्दर प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई ..... रचना के भाव और कहन इतने शानदार है कि मुग्ध हूँ. अभी रचना अतुकांत और नज्म के बीच कहीं ठहरी है...... रचना में गेयता आ जाए तो कमाल की नज्म बनकर निकलेगी.

Comment by saalim sheikh on July 3, 2015 at 12:59pm

बेहद उम्दा अंदाज़-ए-बयाँ ! 
लाजवाब नज़्म के लिए बधाई !

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय सौरभ सर, क्या ही खूब दोहे हैं। विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय "
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी प्रदत्त विषय अनुरूप बहुत बढ़िया प्रस्तुति हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण धामी जी।"
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . शृंगार

दोहा पंचक. . . . शृंगारबात हुई कुछ इस तरह,  उनसे मेरी यार ।सिरहाने खामोशियाँ, टूटी सौ- सौ बार…See More
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन।प्रदत्त विषय पर सुन्दर प्रस्तुति हुई है। हार्दिक बधाई।"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"बीते तो फिर बीत कर, पल छिन हुए अतीत जो है अपने बीच का, वह जायेगा बीत जीवन की गति बावरी, अकसर दिखी…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे,  ओ यारा, ओ भी क्या दिन थे। ख़बर भोर की घड़ियों से भी पहले मुर्गा…"
Sunday
Ravi Shukla commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज जी एक अच्छी गजल आपने पेश की है इसके लिए आपको बहुत-बहुत बधाई आदरणीय मिथिलेश जी ने…"
Sunday
Ravi Shukla commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय मिथिलेश जी सबसे पहले तो इस उम्दा गजल के लिए आपको मैं शेर दर शेरों बधाई देता हूं आदरणीय सौरभ…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service