For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-60

परम आत्मीय स्वजन,

ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे की पांच वर्ष पूर्ण करने पर आप सबको ढेर सारी बधाईयाँ और भविष्य के लिए शुभकामनाएं|  60 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का मिसरा -ए-तरह हैदराबाद के शायर जनाब अली अहमद जलीली साहब की एक बहुत ही ख़ूबसूरत ग़ज़ल से लिया गया है|

 
"इश्क़ में रहज़न-ओ-रहबर नहीं देखे जाते"

2122    1122     1122    22

फाइलातुन फइलातुन फइलातुन फेलुन
(बह्र: रमल मुसम्मन् मख्बून मक्तुअ)
रदीफ़ :- नहीं देखे जाते 
काफिया :- अर (रहबर, सागर, तेवर, दिलबर आदि )

 

मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 26 जून दिन शुक्रवार को हो जाएगी और दिनांक 27 जून दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.

नियम एवं शर्तें:-

  • "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" में प्रति सदस्य अधिकतम एक ग़ज़ल ही प्रस्तुत की जा सकेगी |
  • एक ग़ज़ल में कम से कम 5 और ज्यादा से ज्यादा 11 अशआर ही होने चाहिए |
  • तरही मिसरा मतले को छोड़कर पूरी ग़ज़ल में कहीं न कहीं अवश्य इस्तेमाल करें | बिना तरही मिसरे वाली ग़ज़ल को स्थान नहीं दिया जायेगा|
  • शायरों से निवेदन है कि अपनी ग़ज़ल अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें | इमेज या ग़ज़ल का स्कैन रूप स्वीकार्य नहीं है |
  • ग़ज़ल पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे ग़ज़ल पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं | ग़ज़ल के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें |
  • वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं, अपनी रचना वरिष्ठ साथी की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करें
  • नियम विरूद्ध, अस्तरीय ग़ज़लें और बेबहर मिसरों वाले शेर बिना किसी सूचना से हटाये जा सकते हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी|
  • ग़ज़ल केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, किसी सदस्य की ग़ज़ल किसी अन्य सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी ।

विशेष अनुरोध:-

सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें | 

मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो २६ जून दिन शुक्रवार  लगते ही खोल दिया जायेगा, यदि आप अभी तक ओपन
बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.comपर जाकर प्रथम बार sign upकर लें.


मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह 
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

Views: 13375

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

बहुत बेहतरीन गज़ल हुयी है आ० nilesh सर! शेर दर शेर तहेदिल से दाद प्रेषित है!

शुक्रिया आ. जान गोरखपुरी जी 

// हम ने तौला है फ़क़त दिल के तराज़ू में उन्हें 
हम से यारों के ज़र-ओ-घर नहीं देखे जाते // , वाह , बेहतरीन ग़ज़ल , बहुत बहुत बधाई इस रचना के लिए .

शुक्रिया आ. विनय जी 

पूरी ग़ज़ल शानदार है इन अशआर की जितनी तारीफ़ करूँ कम होगी ...
 
ऐ ख़ुदा अपनी ही दुनिया में तू वापस आ जा  
अब तेरे नाम से पत्थर नहीं देखे जाते.

हाथ आया था कोई हाथ मगर छूट गया
ख्व़ाब भी हम से बराबर नहीं देखे जाते.

शुक्रिया आ. वीनस जी ...

स्वागत है

आदरणीय नीलेश जी मतला से मक्ता तक शानदार...... जबरदस्त..... बस ..... कहने को बस एक शब्द ... वाह वाह वाह वाह 

इस कमाल के बीच कुछ बेमिसाल मिल गया जिसे अपने साथ लिए जा रहा हूँ-

हाथ आया था कोई हाथ मगर छूट गया 
ख्व़ाब भी हम से बराबर नहीं देखे जाते...... वाह वाह वाह 

शुक्रिया आ. मिथिलेश जी 

आ, नीलेश भाई , बहुत सुन्दर !! बहुत बहुत मुबारक बाद , गज़ल के लिये ।

शुक्रिया आ. गिरिराज जी 

बहुत खूब ...आ. निलेश भाई, बहुत उम्दा ग़ज़ल कही है । वाह वाह
फिर उनींदे से हुए सुन के कज़ा की लोरी
नींद तारी हो तो बिस्तर नहीं देखे जाते..... वाह वाह
हाथ आया था कोई हाथ मगर छूट गया
ख्व़ाब भी हम से बराबर नहीं देखे जाते.... बहुत खूब
ऐ ख़ुदा अपनी ही दुनिया में तू वापस आ जा
अब तेरे नाम से पत्थर नहीं देखे जाते.... क्या बात है।
सभी शे'र बढ़िया हुए हैं। मेरी तरफ़ से भी ढेरों दाद व मुबारकबाद आ. भाई निलेश जी। वाह वाह

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post ग़ज़ल....उदास हैं कितने - बृजेश कुमार 'ब्रज'
"उचित है आदरणीय गिरिराज....जी मतले में सुधार के साथ दो शेर और शामिल कर हूँ....सभी अग्रजों…"
12 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . अपनत्व
"आ. भाई सुशील जी सादर अभिवादन। दोहों के लिए हार्दिक बधाई।  भाई योगराज जी के कथन को अन्यथा न ले…"
59 minutes ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-174
"आ. भाई अखिलेश जी, सादर अभिवादन। दोहो पर उपस्थिति और मार्गदर्शन के लिए आभार। आपके सुझाव से मूल दोहे…"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-174
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। दोहों पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए आभार।  इंगित दोहे में…"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-174
"आ. भाई गिरिराज जी, प्रदत्त विषय पर सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
1 hour ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-174
"प्रिय गिरिराज  हार्दिक बधाई  इस प्रस्तुति के लिए|| सुलह तो जंग से भी पुर ख़तर है सड़ा है…"
2 hours ago
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-174
"हार्दिक बधाई लक्ष्मण भाई इस प्रस्तुति के लिए|| सदा प्रगति शान्ति का       …"
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-174
"आदरणीय लक्ष्मण भाई , विषय के अनुरूप बढ़िया दोहे रचे हैं , बधाई आपको मात्रिकता सही होने के बाद…"
5 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-174
"ग़ज़ल  *****  इशारा भी  किसी को कारगर है  किसी से गुफ्तगू भी  बे असर…"
5 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-174
"आ. भाई अशोक जी, सादर अभिवादन। दोहों की प्रशंसा व उत्साहवर्धन के लिए आभार।"
11 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-174
"लोग समझते शांति की, ये रचता बुनियाद।लेकिन बचती राख ही, सदा युद्ध के बाद।८।.....वाह ! यही सच्चाई है.…"
14 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-174
"दोहे******करता युद्ध विनाश है, सदा छीन सुख चैनजहाँ शांति नित प्रेम से, कटते हैं दिन-रैन।१।*तोपों…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service