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"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-59

परम आत्मीय स्वजन,

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" के 59 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का मिसरा -ए-तरह हज़रत अल्लामा इक़बाल  साहब की एक बहुत ही ख़ूबसूरत ग़ज़ल से लिया गया है|

 
"चिराग-ए-सहर हूँ, बुझा चाहता हूँ"

122 122 122 122

फऊलुन  फऊलुन फऊलुन फऊलुन

(बह्र: मुतकारिब मुसम्मन सालिम )
रदीफ़ :- चाहता हूँ
काफिया :- आ (हवा, खुला, उड़ा आदि )

 

मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 22 मई दिन शुक्रवार लगते ही हो जाएगी और दिनांक 23 मई दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.

नियम एवं शर्तें:-

  • "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" में प्रति सदस्य अधिकतम एक ग़ज़ल ही प्रस्तुत की जा सकेगी |
  • एक ग़ज़ल में कम से कम 5 और ज्यादा से ज्यादा 11 अशआर ही होने चाहिए |
  • तरही मिसरा मतले को छोड़कर पूरी ग़ज़ल में कहीं न कहीं अवश्य इस्तेमाल करें | बिना तरही मिसरे वाली ग़ज़ल को स्थान नहीं दिया जायेगा |
  • शायरों से निवेदन है कि अपनी ग़ज़ल अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें | इमेज या ग़ज़ल का स्कैन रूप स्वीकार्य नहीं है |
  • ग़ज़ल पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे ग़ज़ल पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं | ग़ज़ल के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें |
  • वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं, अपनी रचना वरिष्ठ साथी की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करें
  • नियम विरूद्ध, अस्तरीय ग़ज़लें और बेबहर मिसरों वाले शेर बिना किसी सूचना से हटाये जा सकते हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी |
  • ग़ज़ल केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, किसी सदस्य की ग़ज़ल किसी अन्य सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी ।

विशेष अनुरोध:-

सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें | 

मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 22 मई दिन शुक्रवार  लगते ही खोल दिया जायेगा, यदि आप अभी तक ओपन
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मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह 
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

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Replies to This Discussion

अच्छी ग़ज़ल कहने का सद्प्रयास हुआ है भाई कृष्ण मिश्रा जी, हालांकि अभी भी ग़ज़ल बहुत ज़्यादा मेहनत मांग रही है। खासकर निम्नलिखित मिसरों पर दोबारा नज़्र-ए-सानी निहायत ज़रूरी है।


//सुनी है बहुत तेरे जलवों की दास्ताँ//
//मालिक खत्म ये सिलसिला चाहता हूँ//

बहुत बहुत शुक्रिया आ० योगराज सर! प्रयास जारी है,दोनों ही मिसरों पर मिथिलेश सर ने जो मिसरे सुझाए है उन्हें ही संशोधन में लेने के लिए निवेदन किया है!

जनाब "जान" गोरखपुरी जी,आदाब,अच्छा प्रयास किया है भाई,मैं जनाब निलेश "नूर" जी,जनाब मिथिलेश वामनकर जी की बात से पूरी तरह सहमत हूँ,इस पर विचार कर लीजियेगा ।

आ० समर सर हौसलाफजाई हेतु हार्दिक आभार!

अदरणीय कृष्णा भाई , ग़ज़ल बहुत अच्छी कही है , गिरह भी अच्छी लगी है । बधाई आपको

सुनी है बहुत तेरे जलवों की दास्ताँ

मालिक खत्म ये सिलसिला चाहता हूँ    -- इन मिसरों को पुनः देख लें ॥

आ० गिरिराज सर,हौसलाफजाई एवम मार्गदर्शन हेतु हार्दिक आभार!

सादर!

भाई कृष्ण मिश्र जान गोरखपुरी ..
गुनीजन बहुत कुछ कह गये. बस ध्यान दें और लगे रहें. साथ ही, अन्य विधाओं में डिस्क्रिमिनेट न किया करें.. ;-)
हा हा हा..
शुभेच्छाएँ

हार्दिक आभार आ० सौरभ सर,सीखने की दिशा में प्रयास जारी है!  अन्य विधाओं पर आइन्दा से जरूर ध्यान दूँगा!

//भोजपुरी बेल्ट का होते हुए भी मुझे बहुत भोजपुरी नही आती,इसलिये समझने में असमर्थ हूँ //

क्या ??

आपके पुरखे गोरखपुर के ही हैं न ? यदि नहीं, तो मैं इस वाक्य को अविलम्ब क्षमा सहित हटा लूँगा. अवश्य बताइयेगा.

मैं आपके उत्तरकी प्रतीक्षा कर रहा हूँ.

नही सर मूल रूप से गोंडा (उ. प्र) के निवासी है! क्षमा राम! राम! राम! गुरुवर आप के चरणों नतमस्तक आप जो चाहे कह सकते है!आपको पूरा आधिकार है!

कृष्णाजी

सुन्दर प्रयास है  i गिरह में थोडा हल्कापन है i यही बात नीलेश जी ने  कितने ढंग से कही i  स्नेह .

आ० गोपाल नरायन सर गजल पर आपकी उपस्थिति से मन हर्षित हुआ!बहुत बहुत आभार,कहाँ में और सुधार लेन का प्रयास करूँगा! सादर!

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