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लघुकथा : केंचुल आवरण

हरिद्वार से कुल गुरू का आगमन क्या हुआ ...अलका के तो इसबार होश ही फाख्ता हो गये ।

तीन लडकियों को जनने का दर्द कोख में फिर जाग उठा था ।

कुलगुरु के अलौकिक सानिध्य ही उसके पुत्र प्राप्ति का एकमात्र विकल्प सुन कर वह स्तब्ध थी ।

पति की झूकी हुई नजर देख कर अलका का अंतर्मन कराह उठा था ।

सती सावित्री सीता ... माँ दुर्गा ..माँ चंडिका रूप धर कर दुःसाध्य - कार्य करने को आज आतुर थी ।

धर्म के आड़ में समस्त अनाचार जग जाहिर हो गये । ...... खोखले रिश्ते अपने केंचुल आवरण से अब बाहर निकल रहे थे ।

(मौलिक और अप्रकाशित)

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Comment by kanta roy on May 18, 2015 at 10:22pm
आभार आपको आदरणीय कृष्णा मिश्रा 'जान गोरखपूरी ' जी
Comment by kanta roy on May 18, 2015 at 10:21pm
हृदय तल से आभार आपको आदरणीया राजेश कुमारी जी आपको रचना सराहने हेतु ।
Comment by kanta roy on May 18, 2015 at 10:20pm
बिलकुल सही मार्गदर्शन दिया है आपने आदरणीय श्री गणेश बागी जी शीर्षक के संदर्भ में ..... आभार मेरा हौसला वर्धन के लिए
Comment by kanta roy on May 18, 2015 at 10:08pm
आपने बिलकुल सही कहा आदरणीय डा. गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी , कहानी तो वही पूरानी है और यह समाज में आज भी कल की तरह ही घटित हो रही है । आभार आपको प्रोत्साहन भरे शब्दों के लिए ।
Comment by kanta roy on May 18, 2015 at 9:58pm
आदरणीय जितेन्द्र पस्टारिया जी हृदय तल से आभार आपको कथा पसंद करने के लिए
Comment by kanta roy on May 18, 2015 at 9:56pm
बहुत बहुत आभार आपको आदरणीया प्रतिभा त्रिपाठी जी रचना को पसंद करने के लिए
Comment by kanta roy on May 18, 2015 at 9:53pm
आभार आपको आदरणीय पंकज जी कथा पसंद करने के लिए
Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on April 19, 2015 at 8:12pm

सुन्दर लघुकथा पर बधाई आदरणीया कांता जी!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 19, 2015 at 9:08am

कहानी वही है किन्तु लघु कथा का  सकारात्मक,प्रेरणास्पद  अंत मन को भा गया काश सब को ये सद्बुद्धि और हिम्मत पहले ही आ जाए  ..तो ऐसे अनाचारी चरित्रों का अनावरण पहले ही हो जाए .अच्छी लघु कथा .हार्दिक बधाई कांता रॉय जी 


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 18, 2015 at 7:12pm

इस विषय पर काफी कुछ कहा सुना गया है इसलिए जो प्रभाव उत्पन्न होना चाहिए वो नहीं हो पा रहा है. बात स्पष्ट रूप से निकल कर बाहर आ रही है इसके लिए बधाई आपको.

एक बात : केचुल आवरण की जगह केवल केचुल कहने से भी बात बन रही है.

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