For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

एक ग़ज़ल आपके हवाले

उल्टा सीधा बोल रही है दुनिया मेरे बारे में,
अखबारों ने छापा क्या कुछ, पढना मेरे बारे में.  
.

इस दुनिया में मिल न सकेंगे अगली बार मिलेंगे हम,
अर्श को जो भी अर्ज़ी भेजो, लिखना मेरे बारे में.
.

उनकी ज़ात से वाक़िफ़ हूँ, वो बाज़ नहीं आने वाले,
सर पर लेकर घूम रहे हैं फ़ित्ना मेरे बारे में.     
.

अपने दिल में एक दीया तुम मेरे नाम जला रखना, 
आँधी जाने सोच रही है क्या क्या मेरे बारे में.
.

मज्लिस से बाहर कर बैठे, उनकी जान में जाँ आई,
लेकिन अब भी सब करते हैं चर्चा मेरे बारे में.  
.

तुमको मैंने कब तुम माना, तुम थे मेरा असली “मैं”,
झूठ कहा था तुमने मुझसे कितना मेरे बारे में.  
.

सतरंगी से ताने बाने, रब्त बुने कुछ मैंने भी,
उसने भी क्या डाल रखा था करघा मेरे बारे में.
.

जोड़ा ‘नूर’ के हर्फ़ों को तो मेरा अक्स उभर आया,
इतना कैसे जान गया वो पगला मेरे बारे में.
.
निलेश "नूर"
मौलिक व् अप्रकाशित 

Views: 637

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 23, 2015 at 3:23pm

:)


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 23, 2015 at 3:08pm

तब इन बागान में गुलमोहरों के साये थे
मिलेगी शाख पुरानी.. टहल के देखते हैं..

बात  इतनी सी है.. :-)) ..

Comment by Nilesh Shevgaonkar on April 23, 2015 at 2:42pm

शुक्रिया आ. सौरभ सर.
आज लगता है आप कोई दफ्न शह्र ज़िन्दा कर के ही मानेंगे. 
बहुत बहुत आभार 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 23, 2015 at 2:33pm

उनकी ज़ात से वाक़िफ़ हूँ, वो बाज़ नहीं आने वाले,
सर पर लेकर घूम रहे हैं फ़ित्ना मेरे बारे में.  ..............    वाह !

अपने दिल में एक दीया तुम मेरे नाम जला रखना,
आँधी जाने सोच रही है क्या क्या मेरे बारे में....................... बहुत खूब !

मज्लिस से बाहर कर बैठे, उनकी जान में जाँ आई,
लेकिन अब भी सब करते हैं चर्चा मेरे बारे में. ....................... कौन न करे ?!!! .. :-))

तुमको मैंने कब तुम माना, तुम थे मेरा असली “मैं”,
झूठ कहा था तुमने मुझसे कितना मेरे बारे में.......................... वाह !

जोड़ा ‘नूर’ के हर्फ़ों को तो मेरा अक्स उभर आया,
इतना कैसे जान गया वो पगला मेरे बारे में. ...............................ज़वाब नहीं !!

दिल से दाद लीजिये, आदरणीय.

Comment by Nilesh Shevgaonkar on October 25, 2014 at 7:32pm

शुक्रिया आलोक भाई 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on October 25, 2014 at 7:32pm

शुक्रिया डॉ. साहब 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on October 25, 2014 at 7:32pm

शुक्रिया जितेन्द्र जी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on October 25, 2014 at 7:32pm

शुक्रिया सोमेश जी 

Comment by Nilesh Shevgaonkar on October 25, 2014 at 7:31pm

शुक्रिया आदित्य जी 

Comment by Alok Mittal on October 24, 2014 at 2:01pm

वाह वाह शानदार

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"बहुत बहुत शुक्रिय: आदरणीय संजय शुक्ला जी "
12 minutes ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आदरणीय अमित जी, अच्छी ग़ज़ल हुई। बधाई स्वीकार करें। "
19 minutes ago
Sanjay Shukla replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"जो दुआओं के गुहर जेब में भर कर निकलाबस वही शख़्स मुक़द्दर का सिकंदर निकला /1 इक न इक रोज़ जियूँगा…"
25 minutes ago
Euphonic Amit and अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी are now friends
7 hours ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"ग़ज़ल ~2122 1122 1122 22/112 तोड़ कर दर्द की दीवार वो बाहर निकला  दिल-ए-मुज़्तर से मिरे एक…"
8 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक ..रिश्ते
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे रचे हैं। हार्दिक बधाई।"
Tuesday
Sushil Sarna posted blog posts
Sunday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 167 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है ।इस बार का…See More
Saturday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Apr 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Apr 29
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service