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भारत -मेरी कल्पना

सुबह हो हमारी अपनों के बीच रहकर हो 
हमारे ख्वाब और कोलाहल वाले नभचर हों 
चहचहाती चिड़ियों के आनंदित लम्हें हों 
सुगन्धित वायु से परिपूर्ण सब पुष्प सुनहरे हों 
हमारी जिद है ,भारत की सुबह बनाने की 
जिद है हमारे दिल में ,एक भारत बनाने की |
लहलहाते हुए सब खेत और खलिहान गाते हों 
न फ़िल्मी दुनिया के सब अपमान गाते हों 
एकसाथ मिलकर हमसब राष्ट्रगान गाते हों 
सुबह उठकर सभी अपने प्रभु गुणगान गाते हों 
जिद है सुबह-ए-शाम वीरगान गाने की 
जिद है हमारे दिल में ,एक भारत बनाने की |
भेदभाव न करके सब एकसाथ रहते हों 
पिता को पिताजी और माँ को माँ कहते हों 
बराबर भागीदारी में सुख-दुःख सहते हो 
अपने पराये में भी एहमियत समझते हों 
हमारी जिद है, भारत में ये पैगाम पहुचाने की 
जिद है हमारे दिल में ,एक भारत बनाने की |
सभी धर्म की आड़ में दानव न बनते हों
ज्ञान ले लिया हो पर कभी रावण न बनते हों 
मित्रता का झांसा देकर दरिन्दे न बनते हों 
असफल हों फिर भी आत्महत्या न बनते हों 
जिद है ,हिन्दुस्ता को अपने स्वर्ग बनाने की 
जिद है हमारे दिल में ,एक भारत बनाने की ||
********************************************
"मौलिक वा अप्रकाशित "

Views: 612

Comment

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Comment by maharshi tripathi on April 9, 2015 at 6:17pm

आ,  डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी ,रचना पर आपने प्रतक्रिया दे,,मैं आपका आभारी हूँ,,,आ.आपसब की छत्रछाया में में अवश्य पद्य रचना में सफल हो जाऊंगा ,,,,अपना आशीष सदैव  बनाये रखें |

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on April 9, 2015 at 5:59pm

प्रिय महर्षि

आप सौरभ जी की टीप को  समझे i उन्होंने संकेत में काफी कुछ कह दिया है  i आपके पास भाव है शब्दों में पिरोना धीरे से आयेगा . मेरी शुभ कामनाएं . स्नेह .

Comment by maharshi tripathi on April 9, 2015 at 4:54pm

आ. शिज्जु "शकूर" जी रचना आपको पसंद आई ,,आपका आभार सादर |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on April 8, 2015 at 10:21am

आदरणीय महर्षि त्रिपाठी जी भावाभिव्यक्ति हेतु बहुत बहुत बधाई


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 7, 2015 at 11:55pm

आपकी कल्पना सात्विक है, इसके लिए आप साधुवाद के पात्र हैं.

आप पद्य रचनाओं के मूल को समझें.

शुभेच्छाएँ

Comment by maharshi tripathi on April 7, 2015 at 5:53pm

रचना पर उत्साहवर्धक ,टिप्पणी देने हेतु आप सभी का आभार | 

Comment by Dr. Vijai Shanker on April 7, 2015 at 10:26am
वाह ! भावपूर्ण सुन्दर प्रस्तुति , आदरणीय महर्षि त्रिपाठी जी , बधाई , सादर।
Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on April 7, 2015 at 10:22am

सभी धर्म की आड़ में दानव न बनते हों
ज्ञान ले लिया हो पर कभी रावण न बनते हों            बहुत सुन्दर!

जिद है ,हिन्दुस्ता को अपने स्वर्ग बनाने की 
जिद है हमारे दिल में ,एक भारत बनाने की ||
सुंदर रचना पर बधाई भाई महर्षि जी!

Comment by Shyam Narain Verma on April 7, 2015 at 10:07am
वाह ! बहुत खूब | सुन्दर प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई

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