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"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-56

परम आत्मीय स्वजन,

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" के 56 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का मिसरा -ए-तरह  मशहूर शायर जनाब कैफ भोपाली साहब की ग़ज़ल से लिया गया है | पेश है मिसरा ए- तरह ....

 

"दिलों के खेल में खुद्दारियाँ नहीं चलतीं "

1212  1122  1212   22

मुफाइलुन फइलातुन मुफाइलुन फेलुन/फइलुन

(बह्र: बह्र मुजतस मुसम्मन् मख्बून मक्सूर)
रदीफ़ :- नहीं चलतीं 
काफिया :- आरियाँ (खुद्दरियाँ, दुश्वारियां, तैय्यारियाँ आदि )

 

मुशायरे की अवधि केवल दो दिन है | मुशायरे की शुरुआत दिनाकं 27 फरवरी  दिन शुक्रवार लगते ही हो जाएगी और दिनांक 28 फरवरी  दिन शनिवार समाप्त होते ही मुशायरे का समापन कर दिया जायेगा.

नियम एवं शर्तें:-

  • "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" में प्रति सदस्य अधिकतम एक ग़ज़ल ही प्रस्तुत की जा सकेगी |
  • एक ग़ज़ल में कम से कम 5 और ज्यादा से ज्यादा 11 अशआर ही होने चाहिए |
  • तरही मिसरा मतले को छोड़कर पूरी ग़ज़ल में कहीं न कहीं अवश्य इस्तेमाल करें | बिना तरही मिसरे वाली ग़ज़ल को स्थान नहीं दिया जायेगा |
  • शायरों से निवेदन है कि अपनी ग़ज़ल अच्छी तरह से देवनागरी के फ़ण्ट में टाइप कर लेफ्ट एलाइन, काले रंग एवं नॉन बोल्ड टेक्स्ट में ही पोस्ट करें | इमेज या ग़ज़ल का स्कैन रूप स्वीकार्य नहीं है |
  • ग़ज़ल पोस्ट करते समय कोई भूमिका न लिखें, सीधे ग़ज़ल पोस्ट करें, अंत में अपना नाम, पता, फोन नंबर, दिनांक अथवा किसी भी प्रकार के सिम्बल आदि भी न लगाएं | ग़ज़ल के अंत में मंच के नियमानुसार केवल "मौलिक व अप्रकाशित" लिखें |
  • वे साथी जो ग़ज़ल विधा के जानकार नहीं, अपनी रचना वरिष्ठ साथी की इस्लाह लेकर ही प्रस्तुत करें
  • नियम विरूद्ध, अस्तरीय ग़ज़लें और बेबहर मिसरों वाले शेर बिना किसी सूचना से हटाये जा सकते हैं जिस पर कोई आपत्ति स्वीकार्य नहीं होगी |
  • ग़ज़ल केवल स्वयं के प्रोफाइल से ही पोस्ट करें, किसी सदस्य की ग़ज़ल किसी अन्य सदस्य द्वारा पोस्ट नहीं की जाएगी ।

विशेष अनुरोध:-

सदस्यों से विशेष अनुरोध है कि ग़ज़लों में बार बार संशोधन की गुजारिश न करें | ग़ज़ल को पोस्ट करते समय अच्छी तरह से पढ़कर टंकण की त्रुटियां अवश्य दूर कर लें | मुशायरे के दौरान होने वाली चर्चा में आये सुझावों को एक जगह नोट करते रहें और संकलन आ जाने पर किसी भी समय संशोधन का अनुरोध प्रस्तुत करें | 

मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....

फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 27 फरवरी  दिन शुक्रवार  लगते ही खोल दिया जायेगा, यदि आप अभी तक ओपन
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मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह 
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

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Replies to This Discussion

लाजवाब ग़ज़ल आ० राजेश कुमारी जी। हरेक शेअर दिल को छूने वाला हुआ है, हार्दिक बधाई। पुछल्ले के लिए एक्स्ट्रा दाद। 

जी, इन्तजार करते करते अब जाकर ग़ज़ल मुकम्मल हुई आप जैसे ग़ज़ल गो से अब तारीफ़ पाना  ग़ज़ल की आदत बन गई है पुरानी डांट के जख्म भरते हुए से लगते हैं :)))))) आपका तहे दिल से शुक्रिया आदरणीय.  

महज अनाज किसी पेट की जरूरत हो

वहाँ पे फूलों भरी क्यारियाँ नहीं चलतीं

बताओ आज यहाँ कौन राह नामुमकिन 

जहाँ पे मर्द चलें नारियाँ नहीं चलतीं 

.बहुत खूब , हार्दिक बधाई ! सादर 

 

गुमनाम पिथौरा गढ़ी जी ,इस होंसलाफ्जाई का तहे दिल से शुक्रिया |

बहुत खूब राजेश कुमारी जी। ग़ज़ल के लिए दाद कुबूल कीजिए

आ० धर्मेन्द्र जी ,आप से दाद पाकर ग़ज़ल धन्य हुई तहे दिल से आभारी हूँ .

महज अनाज किसी पेट की जरूरत हो

वहाँ पे फूलों भरी क्यारियाँ नहीं चलतीं

बताओ आज यहाँ कौन राह नामुमकिन

जहाँ पे मर्द चलें नारियाँ नहीं चलतीं

प्रणाम! आदरनीया..इन दो शेरों ने आपने जिस खुबसूरती से हक़ीकी  बयां की है...लाजवाब है..हार्दिक बधाई!!

तमाम रात जहाँ चाँद की सजे महफ़िल   

दिये बुझाने की तैय्यारियाँ नहीं चलतीं

 

खिले सुकून भरा अम्न प्यार का गुलशन

झुकी कमर पे जहाँ आरियाँ नहीं चलतीं   , बहुत खूब आदरणीया राजेश जी , बढिया ग़ज़ल कही है , हार्दिक बधाइयाँ ।

पुछल्ला के लिये विशेष बधाई ॥

आ० गिरिराज जी ,ग़ज़ल पर आपसे दाद पाना मायने रखता है मेरा लिखना सफल हुआ आपका दिल से बहुत बहुत आभार |

तमाम रात जहाँ चाँद की सजे महफ़िल
दिये बुझाने की तैय्यारियाँ नहीं चलतीं

वाह्ह्ह्ह्ह ..

बहुत ही प्यारी और खूबसूरत ग़ज़ल... गिरह बहुत ही शानदार हुई है.. और पुछल्ले का तो कहना ही क्या... बहुत बहुत मुबारकबादें..आदरणीया राजेश कुमारी जी.

आ० नगैच रोशन जी ,आपको बहुत दिनों बाद ओबिओ पर देखा सबसे पहले तो स्वागत आपका . आपकी इस उत्साहित करती प्रतिक्रिया की तहे दिल से शुक्रगुजार हूँ |

तमाम रात जहाँ चाँद की सजे महफ़िल   

दिये बुझाने की तैय्यारियाँ नहीं चलतीं

 

खिले सुकून भरा अम्न प्यार का गुलशन

झुकी कमर पे जहाँ आरियाँ नहीं चलतीं  

 

जफ़ा ,फरेब पे टिकती न प्यार की दुनिया  

दिलों के खेल में खुद्दारियाँ नहीं चलतीं  

 

महज अनाज किसी पेट की जरूरत हो

वहाँ पे फूलों भरी क्यारियाँ नहीं चलतीं  

बहुत शानदार ग़ज़ल आदरणीया राजेश दी बहुत २ बधाई 

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