For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

मिलते ही धूप का ठण्डा हो जाना

तुम्हारा मुझसे मिलना 
मिलते ही धूप का ठण्डा हो जाना
ये बडा ही अनौखा विज्ञान था मेरे लिये 

जिसे मैं आज तक नहीं समझा हूँ
.
काँटों से भरे रास्तों पर
तुम्हारे साथ साथ दूर तक चले जाना
तलवों में बने काँटों के निशान
एक असीम आनन्द देते थे
ये कैसा विज्ञान था पता नहीं 
.
क्या तुम्हें याद है 
जब साथ साथ की थी हमने नदी की सैर
छेद हुयी टूटी नौका में बैठकर
और लिया था डूबने का आनन्द
ये कैसे सम्भव हुआ था 
इस विज्ञान से भी अनभिज्ञ ही हूँ मैं
.
पर तुम्हारे दूर जाने के बाद
धूप मुझे जलाती है 
काँटे घाव देते हैं
उफनती हुयी नदी मुझे डराती है
तुम्हारे साथ में और आज में
अन्तर हो गया है
बहुत अन्तर हो गया है 

उमेश कटारा
मौलिक व अप्रकाशित
 

Views: 448

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by umesh katara on February 26, 2015 at 9:14am

somesh kumar जी आभार

Comment by umesh katara on February 26, 2015 at 9:14am

maharshi tripathi जी आभार

Comment by umesh katara on February 26, 2015 at 9:14am

Hari Prakash Dubey जी आभार

Comment by umesh katara on February 26, 2015 at 9:14am
Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on February 25, 2015 at 10:52am

मिलन और विरह को बहुत सुंदर भाव दिए आपकी रचना में. बहुत-बहुत बधाई आदरणीय उमेश जी.

Comment by Hari Prakash Dubey on February 25, 2015 at 10:52am

आदरणीय उमेश कटारा जी ,सुन्दर रचना बधाई आपको !

Comment by maharshi tripathi on February 24, 2015 at 10:54pm

अच्छी भावपूर्ण रचना पर ,,बधाई स्वीकार करें आ. उमेश जी |

Comment by somesh kumar on February 24, 2015 at 9:55pm

शायद प्रेम की शक्ति और विश्वास जागृत करता है ये साथ |सीधी पर भावपूर्ण कविता |

Comment by umesh katara on February 24, 2015 at 8:24pm
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on February 24, 2015 at 12:30pm

आ० कटारा जी

आपकी कवितायेँ निरंतर निखर रही है i आपके श्रम और संवेदना की पूंजी है यह i आपको बधाई i

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Apr 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Apr 29
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service