For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ये किसकी हया को .... (एक रचना)

ये किसकी हया को .... (एक रचना)

ये किसकी हया को  छूकर  आज बादे सबा आयी है
दिल की हसीन  वादियों में ये किसकी सदा आयी है

होने लगी है सिहरन क्यूँ अचानक से इस जिस्म में
किसकी पलक ने अल-सुबह ही आज ली अंगड़ाई है

छोड़ा था इक ख़तूत जो  कभी हमने उस दहलीज़ पे
छू के उसकी आग़ोश  को ये सुर्ख़ हवा आज आयी है

बिन पिये ही मयख़ानों से  क्यूँ रिन्द सब जाने लगे
किसने अपने  रुख़्सार  से  चिलमन आज हटायी है

हमारी  तरह  बेताबियाँ  उस तरफ भी होंगी हिज़्र में
हाले-मुहब्बत देखकर  चांदनी  भी  आज शरमायी है

सुशील सरना
मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 502

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Sushil Sarna on January 8, 2015 at 12:53pm

आदरणीय    harivallabh sharma जी रचना पर आपकी आत्मीय ऊर्जावान प्रशंसा का हार्दिक आभार।

Comment by harivallabh sharma on January 7, 2015 at 8:33pm

आदरणीय Sushil Sarna जी सुन्दर रचना ,अच्छे भावों का रेखांकन  हुआ, बधाई  सादर 

Comment by Sushil Sarna on January 7, 2015 at 7:11pm

आदरणीय    Hari Prakash Dubey जी रचना पर आपकी आत्मीय ऊर्जावान प्रशंसा का हार्दिक आभार।

Comment by Sushil Sarna on January 7, 2015 at 7:10pm

आदरणीय   डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव जी रचना पर आपकी आत्मीय ऊर्जावान प्रशंसा का हार्दिक आभार।

Comment by Sushil Sarna on January 7, 2015 at 7:10pm

आदरणीय  Dr. Vijai Shanker  जी रचना पर आपकी आत्मीय प्रशंसा का हार्दिक आभार।

Comment by Sushil Sarna on January 7, 2015 at 7:09pm

आदरणीय  मिथिलेश वामनकर   जी रचना पर आपकी ऊर्जावान आत्मीय प्रशंसा का हार्दिक आभार।

Comment by Hari Prakash Dubey on January 7, 2015 at 5:48pm

बिन पिये ही मयख़ानों से  क्यूँ रिन्द सब जाने लगे 
किसने अपने  रुख़्सार  से  चिलमन आज हटायी है......बहुत ही सुन्दर ,आनंद आ गया ,हार्दिक बधाई आदरणीय सुशील सरना सर !

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on January 7, 2015 at 1:31pm

सरना जी

छा  गए भाया i बहुत लुभाया i  सादर i

Comment by Dr. Vijai Shanker on January 7, 2015 at 5:23am
बहुत सुन्दर प्रस्तुति , बधाई , आदरणीय सुशील सरना जी , सादर।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 6, 2015 at 10:35pm
सुन्दर। बधाई।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"बहुत सुंदर अभिव्यक्ति हुई है आ. मिथिलेश भाई जी कल्पनाओं की तसल्लियों को नकारते हुए यथार्थ को…"
Friday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय मिथिलेश भाई, निवेदन का प्रस्तुत स्वर यथार्थ की चौखट पर नत है। परन्तु, अपनी अस्मिता को नकारता…"
Thursday
Sushil Sarna posted blog posts
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार ।विलम्ब के लिए क्षमा सर ।"
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया .... गौरैया
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी । सहमत एवं संशोधित ।…"
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .प्रेम
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभार आदरणीय"
Jun 3
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .मजदूर

दोहा पंचक. . . . मजदूरवक्त  बिता कर देखिए, मजदूरों के साथ । गीला रहता स्वेद से , हरदम उनका माथ…See More
Jun 3

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सुशील सरना जी मेरे प्रयास के अनुमोदन हेतु हार्दिक धन्यवाद आपका। सादर।"
Jun 3
Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"बेहतरीन 👌 प्रस्तुति सर हार्दिक बधाई "
Jun 2
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी समीक्षात्मक मधुर प्रतिक्रिया का दिल से आभार । सहमत एवं…"
Jun 2
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
Jun 2
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी स्नेहिल प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
Jun 2

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service