आदरणीय साहित्य-प्रेमियो,
सादर अभिवादन.
ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव, अंक- 40 में आप सभी का हार्दिक स्वागत है.
सर्वप्रथम, आयोजन हेतु निर्धारित तिथियाँ –
15 अगस्त 2014 दिन शुक्रवार से 16 अगस्त 2014 दिन शनिवार
विदित ही है, कि चित्र से काव्य तक छन्दोत्सव आयोजन की रूपरेखा अंक-34 से एकदम से बदल गयी है.
प्रत्येक आयोजन में अब प्रदत्त चित्र के साथ-साथ दो छन्द भी दिये जाते हैं. जिनके मूलभूत नियमों पर लेख मंच के भारतीय छन्द विधान समूह में पहले से मौज़ूद होता है. प्रतिभागियों से अपेक्षा रहती है कि वे प्रदत्त चित्र तथा उसकी अंतर्निहित भावनाओं को दिये गये छन्दों के अनुसार शब्दबद्ध करें.
अबतक निम्नलिखित कुल दस छन्दों के आधार पर रचनाकर्म हुआ है -
अंक 36 - छन्नपकैया तथा कह-मुकरी
पिछला आयोजन, अंक-39, अबतक दिये गये उपरोक्त दस छन्दों में से पाँच छन्दों पर आधारित था.
इस बार का आयोजन शेष पाँच छन्दों पर आधारित होगा.
(चित्र अंतर्जाल के सौजन्य से लिया गया है)
इस बार के आयोजन के लिए उपरोक्त दस छन्दों में से पाँच छन्द निम्नलिखित हैं :
दोहा, कुण्डलिया, चौपई, कामरूप, उल्लाला
दोहा, चौपई, उल्लाला में रचनाकर्म करना है तो इनके पाँच से अधिक छन्द न हों.
कुण्डलिया, कामरूप में रचनाकर्म करना है तो इनके तीन छन्द से अधिक न हों.
एक बार की प्रविष्टि में उपरोक्त पाँच छन्दों में कम-से-कम किसी एक छन्द में रचना हो सकती है और अधिकतम पाँचों छन्दों में रचनाएँ प्रस्तुत की जा सकती है.
इस आयोजन से आयोजन के दौरान संशोधन हेतु कोई अनुरोध स्वीकार्य नहीं होगा । विेशेष जानकारी हेतु अधोलिखित नियमावलियों में देखें.
आयोजन सम्बन्धी नोट :
फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 15 अगस्त 2014 दिन शुक्रवार से 16 अगस्त 2014 दिन शनिवार यानि दो दिनों के लिए खुलेगा.
रचना और टिप्पणियों के लिए खुला रहेगा. केवल मौलिक एवं अप्रकाशित रचनाएँ ही स्वीकार की जायेंगीं.
विशेष :
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अति आवश्यक सूचना :
"ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" के पिछ्ले अंकों को यहाँ पढ़ें ...
मंच संचालक
सौरभ पाण्डेय
(सदस्य प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम
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आपकी आयोजन सम्मत प्रस्तुति का सदा से स्वागत रहा है, आदरणीय.
एक सादर अनुरोध अवश्य है कि आप आयोजन से सम्बन्धित भूमिका और निर्देशों को अवश्य पढ़ जायँ. तत्सम्बन्धी पोस्ट इसी पेज को स्क्रॉल-अप करते जायँ, मिल जायेगा.
सादर
भूल!..........महान ?
वंदे मातरम , आदरणीय सर जी
दोहा
नन्हा बालक ध्वज को, लेकर अपने हाथ ।
दौड़ रहा है हर्ष हो, हर्षित उसके माथ ।।
भारत स्वतंत्र आज है, इसका यही प्रमाण ।
राष्ट्र प्रेम है पल्लवित, जन मन एक समान ।।
चाहे आधा नग्न हो, चाहे नंगा पैर ।
पीड़ा मुखरित है नही, मना रहा वह खैर ।।
आजादी के अर्थ को, जाने क्या नादान ।
खुशी उसे चाहिये, और नही कुछ भान ।।
बालक के उत्साह को, समझ रहें हैं आप ।
देश प्रेम की भावना, मेटे हर संताप ।।
कुण्ड़लिय
झंड़ा अपने देश का, आन बान है शान ।
दांव लगा कर प्राण को, रखना इसका मान ।।
रखना इसका मान, ज्ञान जो हमें सिखावे ।
प्रतिक शांति का श्वेत, हरा हरियाली लावे ।।
कहता अशोक चक्र, देश हो सदा अखण्ड़ा ।
केसरिया का त्याग, विश्व फैलाये झंड़ा ।।
........................................
मौलिक अप्रकाशित
रमेश जी
आपके दोहे और आपकी कुण्डलिया दोनों के भाव उत्तम है i शिल्प में थोडा और श्रम चाहिए i
और परिश्रम करूंगा सादर धन्यवाद
आदरणीय रमेश भाई,
सुंदर छंद विशेषकर कुंडलियाँ की हार्दिक बधाई
सादर अभिनंदन
आजादी के अर्थ को, जाने क्या नादान ।
खुशी उसे चाहिये, और नही कुछ भान ।।
बहुत खूब, सादर बधाई आदरणीय जी
आदरणीय रमेश जी इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई.
आदरणीय रमेश भाई , दोनों छंदों का प्रयास सराहनीय एक विषय के अनुरूप है , आपको प्रस्तुति के लिए बधाई |
नन्हा बालक ध्वज को
खुशी उसे चाहिये, --- इन् पदों की मात्रा गड़बड़ है , और कुंडलिया में शब्द के वास्तविक रूप को बिगाड़ा जाना शायद सही नहीं है |
आदरणीय रमेशजी, आपकी प्रस्तुति और सहभागिता का हार्दिक धन्यवाद.
थोड़ा और समय थोड़ा और सुधार थोड़ा और निखार ले आता.
सादर
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