हैप्पी इंडिपेंडेंस डे , आज़ादी की वर्षगांठ मुबारक | आतिशबाजियां छुड़ाते और एक दूसरे को मिठाई खिलाते हुए लोग चिल्ला रहे थे और एक दूसरे को इंडिपेंडेंस डे की शुभकामना भी दे रहे थे |
और सामने की मिठाई की दुकान पर छोटू दौड़ दौड़ कर लोगों को पानी दे रहा था और टेबल साफ़ कर रहा था |
( मौलिक और अप्रकाशित )
Comment
आभार सौरभ पाण्डेयजी..
आपकी लघुकथा से गुजरना हुआ, आदरणीय..
विषय अच्छा उठाया है आपने कथा का माहौल नहीं बन पाया. आपकी अन्य लघुकथाओं का इंतज़ार रहेगा.
आभार गिरिराजजी..
आदरणीय , लघुकथा के शिल्प के विषय मे मै नही जानता , बाल श्रमिक का विषय अच्छा उठाया है , बधाई ॥
आभार अरुणजी एवम रवि प्रभाकरजी..
प्रिय मित्रवर,
आपका प्रयास सराहनीय है। मैनें आपकी अन्य लघुकथाएं ‘थप्पड़’ और ‘पढाई लिखाई’ भी पढ़ी है।
उनके मुकाबले मुझे यह एक ‘रूटीन’ लघुकथा लगी। विषय और प्रस्तुति में कोई नयापन नहीं लगा।
अन्यथा ना लें.... प्रयास जारी रखें। सादर ।
आदरणीय आपकी लघुकथा का विषय चिंतनीय अवश्य है किन्तु क्या ऐसा इंडिपेंडेंस डे के दिन होता है.
आदरणीय विनय जी ..हो गया वतन आजाद मेरा पर लोग अभी भी मुक्त नहीं सोते थे भूखे ही तब भी सोते हैं भूखे ही अब भी ..आपकी रचना चिंतन के liyए विवश करती है ..इस शानदार रचना पर हार्दिक बधाई सादर
आभार सुभ्रांशुजी , आपसे सहमत लेकिन बड़े शहरों एवम महानगरों में अब ये सब आम हो गया है..
आदरणीय विनय जी, सुन्दर कथा है.
एक आजादी जिसकी चाह में बच्चा काम किये जा रहा है..
लेकिन अब भारत में ऎसी आजादी की वर्षगांठ नहीं मनती है जिसमें रात के ११ बजे तक दुकाने खुली रह्ती हो.अमुमन इस दिन दुकाने बन्द रह्ती हैं. ..अलबत्ते नये साल के आने के पहले रात को दुकाने जरुर खुली रहती हैं...जब शोर कानों को चीरता हुआ दिमाग पर चढता है.
सादर.
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