For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

एकलव्य - पंकज त्रिवेदी

प्रायश्चित करना चाहिए 
गुरु द्रोण को...
जिन्होंने अपने ज्ञान को 
सीमित रखा उन महाराजा के 
वंशजों के लिए और 
ज्ञान से वंचित रहने लगा 
वो वनवासी !

जिसने सिर्फ मिट्टी के 
गुरु को स्थापित किया 
और धनुर्विद्या में 
महारत हांसिल की |

* * *

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 477

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on July 8, 2014 at 4:17pm

सही कहा आदरणीय पंकज त्रिवेदी जी 

ज्ञान को एक वर्ग/वंश विशेष के लिए ही सीमित रखना किसी तरह उचित नहीं..

ज्ञान से वंचित रहने लगा 
वो वनवासी !

जिन्होंने सिर्फ मिट्टी के................मुझे लगता है यहाँ जिसने होना चाहिए...क्योंकि ऊपर की पंक्ति में एक वचन में बात कही गयी है.
गुरु को स्थापित किया 
और धनुर्विद्या में 
महारत हांसिल की |

इस रचना पर मेरी हार्दिक बधाई स्वीकारिये..आपकी प्रस्तुतियों का इंतज़ार रहता है आदरणीय 

सादर.

Comment by Pankaj Trivedi on July 5, 2014 at 9:56pm

मीना जी, 

मेरे होने न होने से कोइ फर्क नहीं पड़ता... 

लोग आते हैं, मिलते हैं, बिछड़ते हैं... चक्रव्यूह सी ज़िंदगी फिर भी चलती है...   

Comment by अरुन 'अनन्त' on June 30, 2014 at 5:42pm

सटीक अभिव्यक्ति पंकज जी

Comment by Pankaj Trivedi on June 30, 2014 at 5:08pm

आदरणीय डॉ. गोपाल नारायण श्रीवास्तव जी. श्री जीतेन्द्र 'गीत' जी, आदरणीय श्री लक्ष्मण जी और सम्माननीय मीना पाठक जी,

आप सभी के शब्दों से मेरी रचना का बहुमान हुआ है... बहुत दिनों बाद आया हूँ यह बात सही है... कभी कभी विद्वानों की विद्वता हम जैसे गँवार के पल्ले नहीं पड़ती.... इसलिए सोचा कुछ कहने से बेहतर दूर हो जाना ही ठीक.. !  बहुत से मित्रों के आग्रह का सम्मान करना चाहिए... आप सभी के स्नेह-आशीर्वाद के लिए आभारी हूँ .. 

Comment by Meena Pathak on June 30, 2014 at 2:28pm

आदरणीय त्रिवेदी जी...बहुत दिनों के बाद आप का आगमन हुआ ओबीओ पर...बहुत बहुत स्वागत और रचना हेतु बधाई | सादर 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on June 30, 2014 at 11:33am

गुरु द्रोण के चरित्र पर सुन्दर रचना के लिए बधाई | गुरु द्रोण को जब अपनी अज्ञानता का आभास हुआ तब तक बहत देर हो चुकी थी |

अंत में उन्होंने इतना ही कहा कि मै मोह वश गुरु नहीं रहकर शिक्षित ही रह गया | अब मुझे लोग मेरे संसार से चले जाने के बाद ही 

गुरु कहने वह भी इसलिए कि मेरे शिष्य मुझे गुरु मानते है | 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on June 29, 2014 at 9:34am

कहाँ कर पाता है कोई प्रायश्चित, बस कहानियां बन जाती है जो सिर्फ पढ़ी जाती रही है. बधाई आदरणीय पंकज जी

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on June 28, 2014 at 12:50pm

आदरणीय

अंगूठा मांग  लिया  i बड़े लोगो का प्रायश्चित ऐसा ही होता है i

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service