For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

 2122   2122   2122   2122

ज़ुल्फ़ जब उसने बिखेरी बज़्मे-ख़ासो-आम में  

फ़र्क़ बेहद कम रहा उस वक़्त सुब्हो-शाम में

 

झाँककर परदे से उसने इक नज़र क्या देख ली 

जी नहीं लगता हमारा अब किसी भी काम में

 

सिर्फ़ ख़ाकी, खादी पर उठती रही हैं उंगलियाँ

मुझको तो नंगे नज़र आये हैं सब हम्माम में   

 

मान-मर्यादा, ज़रो-ज़न, इज्ज़तो, ग़ैरत तमाम

क्या नहीं गिरवी पड़ी है ख्व़ाहिशे-ईनाम में

 

एक दिन में मुफलिसों का दर्द क्या समझेंगे आप 

कुछ महीने तो गुज़ारें आके ख़ासो-आम में

 

हैफ़ ‘साहिल’ तू ने भी तोड़ा भरोसे का भरम  

बिक गईं ख़ुद्दारियाँ तेरी भी सस्ते दाम में

"मौलिक व अप्रकाशित"

Views: 541

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by vijay nikore on June 20, 2014 at 8:27am

बहुत ही सुन्दर गज़ल।  बधाई, आदरणीय सुशील जी।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 19, 2014 at 8:53am

मतले से शुरु हुआ अंदाज़ आगे एकदम से रंग बदल जाता है. बहुत खूब भाईजी.

एक दिन में मुफलिसों का दर्द क्या समझेंगे आप 

कुछ महीने तो गुज़ारें आके ख़ासो-आम में...........  यह शेर अच्छा हुआ है.

दाद कुबूल करें.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on June 16, 2014 at 10:07pm

बहुत शानदार अशआर हुए हैं आ० सुशिल ठाकुर जी 

एक और जहां मतले की मुलायमियत नें बाँध लिया ..वही परदे वाले शेर भी बहुत पसंद आया 

और खाकी और मुफलिसों वाले शेर का अंदाज़ भी बेमिसाल लगा ..बहुत खूब 

हर शेर पर अलग अलग बधाई क़ुबूल कीजिये


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 16, 2014 at 9:34am

एक दिन में मुफलिसों का दर्द क्या समझेंगे आप 

कुछ महीने तो गुज़ारें आके ख़ासो-आम में---वाह्ह्ह्हह ,सभी अशआर लाजबाब हुए आ० सुशील जी बेहतरीन ग़ज़ल ...आपकी ग़ज़ल की बहर में अंत में २१२  होना चाहिए 

 दिली दाद कबूलें |

Comment by MAHIMA SHREE on June 15, 2014 at 4:02pm

वाह लाजवाब ,.. हर शेर अपने आप में जबरदस्त है बधाई आपको

Comment by Meena Pathak on June 12, 2014 at 11:58pm

लाज़वाब..उम्दा..बेहतरीन .. बधाई बधाई बधाई 

Comment by annapurna bajpai on June 12, 2014 at 7:48pm

बहुत खूब , वाह !!! क्या कहने सुंदर गजल हेतु बधाई । 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 12, 2014 at 6:30pm

आदरणीय सुशील भाई , बहुत खूब सूरत ग़ज़ल कही है , दिली बधाई स्वीकार करें ।

हैफ़ ‘साहिल’ तू ने भी तोड़ा भरोसे का भरम  

बिक गईं ख़ुद्दारियाँ तेरी भी सस्ते दाम में ------ लाजवाब ! बधाइयाँ ॥

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on June 12, 2014 at 11:40am

ज़ुल्फ़ जब उसने बिखेरी बज़्मे-ख़ासो-आम में  

फ़र्क़ बेहद कम रहा उस वक़्त सुब्हो-शाम में..... क्या कहने

झाँककर परदे से उसने इक नज़र क्या देख ली 

जी नहीं लगता हमारा अब किसी भी काम में... दीवानगी का खूब बयां हुआ

 मान-मर्यादा, ज़रो-ज़न, इज्ज़तो, ग़ैरत तमाम

क्या नहीं गिरवी पड़ी है ख्व़ाहिशे-ईनाम में.....कटु सत्य 

एक दिन में मुफलिसों का दर्द क्या समझेंगे आप 

कुछ महीने तो गुज़ारें आके ख़ासो-आम में......बिलकुल सही कहा सियासतदानों के लिए

बेहतरीन गजल के लिए हार्दिक बधाई आ० भाई साहिल जी l

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लघुकथा पर आपकी उपस्थित और गहराई से  समीक्षा के लिए हार्दिक आभार आदरणीय मिथिलेश जी"
24 minutes ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आपका हार्दिक आभार आदरणीया प्रतिभा जी। "
1 hour ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"लेकिन उस खामोशी से उसकी पुरानी पहचान थी। एक व्याकुल ख़ामोशी सीढ़ियों से उतर गई।// आहत होने के आदी…"
4 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"प्रदत्त विषय को सार्थक और सटीक ढंग से शाब्दिक करती लघुकथा के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय…"
5 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदाब। प्रदत्त विषय पर सटीक, गागर में सागर और एक लम्बे कालखंड को बख़ूबी समेटती…"
6 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीय मिथिलेश वामनकर साहिब रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर प्रतिक्रिया और…"
6 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"तहेदिल बहुत-बहुत शुक्रिया जनाब मनन कुमार सिंह साहिब स्नेहिल समीक्षात्मक टिप्पणी और हौसला अफ़ज़ाई…"
6 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीया प्रतिभा जी प्रदत्त विषय पर बहुत सार्थक और मार्मिक लघुकथा लिखी है आपने। इसमें एक स्त्री के…"
8 hours ago
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"पहचान ______ 'नवेली की मेंहदी की ख़ुशबू सारे घर में फैली है।मेहमानों से भरे घर में पति चोर…"
10 hours ago
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"पहचान की परिभाषा कर्म - केंद्रित हो, वही उचित है। आदरणीय उस्मानी जी, बेहतर लघुकथा के लिए बधाइयाँ…"
11 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी प्रदत्त विषय पर बहुत बढ़िया लघुकथा हुई है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
11 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-126 (पहचान)
"आदरणीय मनन कुमार सिंह जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर"
11 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service