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फ़रिश्ता हूँ न कोई देवता हूँ

फ़रिश्ता हूँ न कोई देवता हूँ
खिलौना हूँ मैं मिट्टी से बना हूँ

दग़ा खाने में तू रहता है आगे
दिले-नादान मैं तुझसे ख़फ़ा हूँ

सिला मुझको भलाई का भला दे
ज़ियादा कुछ नहीं मैं माँगता हूँ

मैं जबसे लौटा हूँ दैरो-हरम से
पता सबसे ख़ुदा का पूछता हूँ

मेरा चेहरा किताबे-ज़िन्दगी है
ज़ुबां से मैं कहाँ कुछ बोलता हूँ

"मौलिक व अप्रकाशित"

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 7, 2014 at 4:50am

आप ग़ज़ल के मिसरों का वज़्न १२२२ १२२२ १२२ भी लिख देते तो हमारे उन सदस्यों के लिए सहुलियत होती जो ग़ज़ल पर अभ्यास कर रहे हैं.

आपके शेर सीधे-सादे मगर खूब सच्चे हुए हैं.  बधाई आदरणीय.

Comment by annapurna bajpai on June 4, 2014 at 7:59am

सुंदर गजल के लिए बधाई स्वीकारें । 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 3, 2014 at 9:37pm

मेरा चेहरा किताबे-ज़िन्दगी है
ज़ुबां से मैं कहाँ कुछ बोलता हूँ ----------- बहुत खूब आदरणीय सुशील भाई , पूरी गज़ल के लिये और इस शे र के लिये ढेरों दाद ॥

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on May 31, 2014 at 12:01pm

मेरा चेहरा किताबे-ज़िन्दगी है
ज़ुबां से मैं कहाँ कुछ बोलता हूँ...वाह! बहुत बढ़िया दिली बधाई स्वीकारें आदरणीय शुशील जी

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on May 31, 2014 at 11:35am

फ़रिश्ता हूँ न कोई देवता हूँ 
खिलौना हूँ मैं मिट्टी से बना हूँ---वाह ! मनुज मिटटी का बना इश्वर का नया खिलोना ही है | मिटटी में ही मिल जाना है | सुन्दर भाव रचना के लिए बधाई 

Comment by vandana on May 31, 2014 at 6:06am


मेरा चेहरा किताबे-ज़िन्दगी है 
ज़ुबां से मैं कहाँ कुछ बोलता हूँ

वाह बहुत बढ़िया आदरणीय 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on May 30, 2014 at 2:55pm

मेरा चेहरा किताबे-ज़िन्दगी है 
ज़ुबां से मैं कहाँ कुछ बोलता हूँ.वाह .इस बेहतरीन ग़ज़ल के इस बिशेस शेर के लिए तहे दिल बधाई सादर 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on May 30, 2014 at 12:05pm

मेरा चेहरा किताबे जिन्दगी है ----बहुत खूब i  अति सुदर i

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