For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

         
वो नदी जो गिरि

कन्दराओं से निकल

पत्थरों के बीच से

बनाती राह

 

कितनो की मैल धोते

कितने शव आँचल मे लपेटे

अन्दर कोलाहल समेटे

अपने पथ पर,

 

कोई पत्थर मार

सीना चीर देता 

कोई भारी चप्पुओं से

छाती पर करता प्रहार

लगातार,

 

सब सहती हुई

राह दिखाती राही को

तृप्त करती तृषा सब की

अग्रसर रहती अनवरत

तब तक, जब तक खो न दे

आस्तित्व,अपने 

प्रियतम से मिल कर ||

मीना पाठक 
मैलिक अप्रकाशित 

Views: 809

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by mrs manjari pandey on June 15, 2014 at 9:47pm
आदरणीया मीना पाठक जी सुन्दर चित्रण . बधाई स्वीकारें

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 9, 2014 at 5:42pm

उत्सर्ग के भाव को यथोचित बिम्ब और आवश्यक शब्द मिले हैं.

प्रस्तुति हेतु शुभकामनाएँ, आदरणीया


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 8, 2014 at 9:46pm

सब सहती हुई

राह दिखाती राही को

तृप्त करती तृषा सब की

अग्रसर रहती अनवरत

तब तक, जब तक खो न दे

आस्तित्व,अपने 

प्रियतम से मिल कर ||---नदी के स्वरुप उसके निःस्वार्थ प्रेम ,उपकार ,बलिदान को कितनी सुन्दरता से पिरोया है शब्दों में बहुत सुन्दर ,हार्दिक बधाई आपको आ० मीना जी 

Comment by Meena Pathak on June 7, 2014 at 5:32pm

आदरणीय Sharadindu सर जी ..आप की उत्साहवर्धन करती टिप्पणी हेतु हृदयतल से आभार | सादर नमन 

Comment by Meena Pathak on June 7, 2014 at 5:32pm

आदरणीय आशुतोष जी बहुत बहुत आभार | सादर 

Comment by Dr Ashutosh Mishra on June 7, 2014 at 12:22pm

आदरणीया मीना जी ...नदी पर आपने बहुत ही बेहतरीन चितन किया है ,,,रचना नदी की ही तरह बहती हुई ..इस शानदार रचना पर हार्दिक बधाई स्वीकार करें ..सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by sharadindu mukerji on June 7, 2014 at 3:32am
रचना और रचना के विषयवस्तु के साथ मन स्वत: प्रवाहित होने लगता है. यहीं आपकी लेखनी की सार्थकता है आदरणीया मीना जी.
//....अंदर कोलाहल समेटे
अपने पथ पर// आप मुझे ऐसी ही पंक्तियों के माध्यम अपनी भावनाओं से हमेशा चमत्कृत करती रहती हैं. अनंत साधुवाद.
सादर
Comment by Meena Pathak on June 6, 2014 at 10:25am

बहुत बहुत आभार आदरणीय भ्रमर जी | सादर 

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on June 5, 2014 at 10:57pm

बहुत सुन्दर रचना सुन्दर भाव। तभी तो याद आता है नदी न संचै नीर परमारथ के कारने साधुन धरा शरीर
भमर ५

Comment by Meena Pathak on June 5, 2014 at 10:13pm

प्रिय गीतिका बहुत बहुत आभार | सस्नेह 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185

परम आत्मीय स्वजन, ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 185 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
yesterday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, प्रस्तुति पर आपसे मिली शुभकामनाओं के लिए हार्दिक धन्यवाद ..  सादर"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

आदमी क्या आदमी को जानता है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२२ कर तरक्की जो सभा में बोलता है बाँध पाँवो को वही छिप रोकता है।। * देवता जिस को…See More
Tuesday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Monday
Sushil Sarna posted blog posts
Nov 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Nov 5
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
Nov 5

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Nov 2
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Nov 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Oct 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Oct 31

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service