For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कुछ दोहे (जवाहर लाल सिंह)

माली ऐसा चाहिए, किसलय को दे प्यार

खरपतवारहि छांटके, कलियन देहि निखार.

नित उठ देखे बाग़ को, नैना रहे निहार 

सिंचन, खुरपी चाहिए, मन में करे विचार

हवा ताजी तन में लगे, करे भ्रमर गुंजार,

दिल में यूं खुशियाँ भरे, होवे जग से प्यार

कर्म सबहि तो करत हैं, गर न करे प्रचार

लोग न जानहि पात हैं, जाने बस करतार     

दीपक ऐसा चाहिए, घर में करे प्रकाश

तन मन जारे आपनो, किन्तु नेह की आश.

उजियारा लेते रहें, बुझने न दें ज्योति  

समय समय पर तेल दें, कभी उभारें बाति  

(मौलिक व अप्रकाशित)

जवाहर लाल सिंह 

Views: 744

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on May 18, 2014 at 8:00pm

हार्दिक आभार आदरणीय भ्रमर जी 

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on May 18, 2014 at 12:13pm

हवा ताजी तन में लगे, करे भ्रमर गुंजार,

दिल में यूं खुशियाँ भरे, होवे जग से प्यार

सुन्दर दोहे। अब मेरा नाम आये और प्यार न हो ये कैसे हो ?
जवाहर भाई बस कल्पना सपना
भ्रमर ५

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on May 14, 2014 at 6:19pm

श्रद्धेय सौरभ सर, सादर अभिवादन!

आप तो जैसे अन्तर्यामी है सर, यह कथ्य बिल्कुल ही आँखों देखी पर आधारित है जो एक दिन  प्रात: भ्रमण (मोर्निंग वाक) के दौरान ही जेहन में आई थी. आप बिल्कुल सही कह रहे हैं, मैं इस मंच पर रेगुलर नहीं हूँ, कोशिश करूंगा कि रेगुलर रहूँ क्योंकि सीखने का यह सर्वोत्तम मंच है. विभिन्न ब्यस्तताओं और बेहतर रचना ही यहाँ प्रस्तुत करूं यह उधेड़बुन बनी रहती है. पिछले दिनों राजनीतिक विषयों पर ज्यादा लिखता रहा ...पर आपका मेरे प्रति स्नेह निश्चित ही मेरे उत्साह को बढ़ता है, सादर! पुन: आभार!

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on May 14, 2014 at 6:09pm

आदरणीय अरुण शर्मा जी, सादर अभिवादन!

आपकी सुधारात्मक सुझाव से मन हर्षित हुआ है कोशिश जरी रहेगी और आपलोगों के मार्गदर्शन की आवश्यकता को भी महसूस करता रहूँगा ..सादर!

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on May 14, 2014 at 5:58pm

आदरणीय जितेन्द्र 'गीत' जी, सादर अभिवादन!

आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया का हार्दिक आभार!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 13, 2014 at 12:24pm

भाई जवाहरजी, बहुत दिनों के बाद इस मंच पर दोहा छन्द में आपकी रचनायें देख रहा हूँ. सर्वप्रथम तो इसकी बधाई स्वीकार करें,आदरणीय. कथ्य के लिहाज से आपके दोहे आँखों देखी पर आधारित हैं. यह आपकी जागरुकता का भी परिचायक है. प्रस्तुतियों पर हार्दिक शुभकामनाएँ.

अनुज अरुन अनन्तभाई के कहे पर अवश्य ध्यान दीजिये, जिन्होंने इस छन्द की प्रारम्भिक शर्तों पर बातें कही हैं.

आपकी प्रस्तुतियों के शिल्प और इसकी भाषा पर मैं बातें करना उचित नहीं समझता.
कारण कि, आप मंच के पुराने सदस्य हैं. लेकिन यह भी उतना ही सही है कि आप न तो रेगुलर रहे हैं, न ही इस मंच पर अबतक प्रस्तुत हुई कई-कई दोहा प्रस्तुतियों पर हुई सार्थक चर्चाओं और प्रतिक्रियाओं को आपने देखा है, या, न ही उनमें भाग ही लिया है.
आप नेट पर अक्सर इतने उपलब्ध न होते तो मैं ऐसा कत्तई नहीं कहता परन्तु आप नेट का भरपूर उपयोग करने वाले नेटीजनों में से हैं. अतः, भाईजी, आप यदि वास्तविक प्रयास करें तो रचनाओं पर आवश्यक चर्चा का अर्थ भी है.

मेरी स्पष्टता जिसे आप अनावश्यक धृष्टता भी कह सकते हैं के लिए हृदयतल से क्षमा प्रार्थी हूँ.

लेकिन, आप चूँकि एक उर्वर लेखक और कई-कई विधाओं की रचनाओं के मुखर प्रस्तुतकर्ता हैं इसलिए ऐसा कह रहा हूँ. आगे, आपकी सोच और आपके विचार हम सभी को मान्य हैं.
आपकी प्रस्तुतियों से अच्छे भाव-शब्दों को लेकर उसकी तारीफ़ करने वाले तो नेट पर हैं ही. यहाँ इस मंच पर भी हैं. भाईजी, मैं भी उन्हीं में से हूँ.
शुभेच्छायें

Comment by अरुन 'अनन्त' on May 12, 2014 at 1:14pm

आदरणीय जवाहर सिंह जी बहुत ही भावपूर्ण दोहे रचे हैं आपने शिल्प पर और श्रम की आवश्यकता है कसावट की कमी प्रतीत हो रही है बहरहाल प्रयास रहिये स्वतः स्वतः दुरुस्त हो जायेगा. इस सदप्रयास पर मेरी ओर से बधाई स्वीकारें.

हवा ताजी तन में लगे ? १४ मात्राएँ हो रही हैं देख लीजियेगा.

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on May 12, 2014 at 8:32am

कर्म सबहि तो करत हैं, गर न करे प्रचार

लोग न जानहि पात हैं, जाने बस करतार..........इसी बात की समझ आज के इंसान को नही है

बहुत सुंदर दोहावली, बधाई स्वीकारें आदरणीय जवाहर जी

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on May 9, 2014 at 8:48pm

बहुत बहुत धन्यवाद महिमा बहन!

Comment by MAHIMA SHREE on May 8, 2014 at 8:58pm

हवा ताजी तन में लगे, करे भ्रमर गुंजार,

दिल में यूं खुशियाँ भरे, होवे जग से प्यार.. आदरणीय जवाहर सर , नमस्कार बहुत ही सुंदर दोहावली .बहुत -२ बधाई आपको सादर /

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna posted blog posts
12 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार ।विलम्ब के लिए क्षमा सर ।"
13 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया .... गौरैया
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी । सहमत एवं संशोधित ।…"
13 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .प्रेम
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभार आदरणीय"
Monday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .मजदूर

दोहा पंचक. . . . मजदूरवक्त  बिता कर देखिए, मजदूरों के साथ । गीला रहता स्वेद से , हरदम उनका माथ…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सुशील सरना जी मेरे प्रयास के अनुमोदन हेतु हार्दिक धन्यवाद आपका। सादर।"
Monday
Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"बेहतरीन 👌 प्रस्तुति सर हार्दिक बधाई "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी समीक्षात्मक मधुर प्रतिक्रिया का दिल से आभार । सहमत एवं…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी स्नेहिल प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक ..रिश्ते
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी के भावों को आत्मीय मान से सम्मानित करने का दिल से आभार आदरणीय"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service