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ये न सोचों कि खुशियों में बसर होती है,

कई महलों में भी फांके की सहर होती है !

उसकी आँखों को छलकते हुए आँसूं ही मिले,

वो तो औरत है, कहाँ उसकी कदर होती है

कहीं मासूम को खाने को निवाला न मिला,

कहीं पकवानों से कुत्तों की गुजर होती है,

वो तो मजलूम था, तारीख पे तारीख मिली,

जहाँ दौलत हो इनायत भी उधर होती है,

दिन गुजरता है काम करते, रात सपनों में,

जिंदगी ग़रीब की ऐसे ही बसर होती है !!अनुश्री!!

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by Satyanarayan Singh on May 9, 2014 at 3:50pm

इस सुन्दर प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीया अनिता जी 


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Comment by गिरिराज भंडारी on April 29, 2014 at 5:35pm

आदरणीया , अच्छी ग़ज़ल कही है , बधाइयाँ ॥ बह्र लिख देना अच्छा होता है , सीखने वालों के लिये !!

Comment by रमेश कुमार चौहान on April 29, 2014 at 2:38pm

ये न सोचों कि खुशियों में बसर होती है,

कई महलों में भी फांके की सहर होती है !----------बहुत खूब
बधाई आदरणीया

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on April 29, 2014 at 1:40pm

दिन गुजरता है काम करते, रात सपनों में,

जिंदगी ग़रीब की ऐसे ही बसर होती है...............वाह! बहुत सुंदर

हार्दिक बधाई स्वीकारें आदरणीया अनीता जी

Comment by Anita Maurya on April 29, 2014 at 10:09am

शिज्जु शकूर ji Shailendra Awasthi ji  vandanaji Mukesh Verma "Chiragh" ji Dr Ashutosh Mishra ji aabhar aap sabka.. वीनस केसरी ji.. kripya margdarshan karen.. abhi taknik ki samajh nahi hai.. bs prayasrat hu.. 

Comment by वीनस केसरी on April 28, 2014 at 9:05pm

सुन्दर ग़ज़ल है
कुछ मिसरे लय से भटक गए हैं ...

Comment by Dr Ashutosh Mishra on April 28, 2014 at 4:51pm

उसकी आँखों को छलकते हुए आँसूं ही मिले,

वो तो औरत है, कहाँ उसकी कदर होती है.....सही बात 

कहीं मासूम को खाने को निवाला न मिला,

कहीं पकवानों से कुत्तों की गुजर होती है,..एक बिडम्बना है 

दिन गुजरता है काम करते, रात सपनों में,

जिंदगी ग़रीब की ऐसे ही बसर होती है.....मगर गरीब सपने भी नहीं देख सकता है  हकीकत यही है .. इस शानदार ग़ज़ल के लिए तहे दिल बधाई आदर्नीएया ..सादर 

Comment by Mukesh Verma "Chiragh" on April 28, 2014 at 3:06pm

आदरणीया अनीता जी
बेहद खूबसूरत ग़ज़ल कही है आपने. कमाल के एहसासों को जमा किया है आपने.
बहुत मज़ा आया पढ़कर. बहुत बहुत मुबारकबाद इस खूबसूरत पेशकश पर

सारे आसार.. एक से बढ़कर एक
तकनीक की बात नहीं करूँगा मैं.. लिखते रहिए..

Comment by vandana on April 28, 2014 at 3:03pm

आदरणीया अनुश्री जी बहुत सुन्दर भाव संयोजन किया है आपने 

Comment by Shailendra Awasthi "AAKASH" on April 28, 2014 at 12:31pm

बहुत खूब अनीता जी.....

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