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माँ के चरणों मे कुछ छन्न पकैंया छंद -- (प्रथम प्रयास)

छन्न पकैंया छन्न पकैंया माँ की जोत जलाऊँ |
मेवा कदली लौंग लाइची उनको भोग लगाऊँ ||

छन्न पकैंया छन्न पकैंया छम छम पायल बाजे |
जयकारा मइया का गा कर मेरा मन हर्षाये ||

छन्न पकैंया छन्न पकैंया माँ सपने मे आयीं |
अनुपम रूप सलोना उनका मंद मंद मुस्कायीं ||

छन्न पकैंया छन्न पकैंया नौ दिन की नौरातें |
मइया बैठीं चढ़ चौकी पर कर ली दिल की बातें ||

छन्न पकैंया छन्न पकैंया माता आई द्वारे |
हाथ जोड़ कर नमन करें हम और करें जयकारे ||

मीना पाठक 

मैलिक/अप्रकाशित

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Replies to This Discussion

आपकी रचना में चैत्र- नवरात्री के पावन पर्व पर बहुत सुंदर, सात्विक, मन को शांति पहुंचाने वाले भावों का सजीव चित्रण हुआ है, यहाँ तक की शब्दों के साथ-साथ आपके मन की ख़ुशी भी उभर कर दिखाई दे रही  है. आपको ढेरों बधाई और नवरात्र की असीम शुभकामनाएं आदरणीया मीना दीदी

सादर!

आप को भी ढेरों शुभकामनाएँ प्रिय जितेन्द्र जी, माँ की कृपा आप पर सदैव बरसाती रहे ..

रचना सराहने हेतु बहुत बहुत धन्यवाद ..

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