For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अमरीका में भारतीय संस्कृति और शास्त्र-ज्ञान.....(विजय निकोर)

अमरीका में भारतीय संस्कृति और शास्त्र-ज्ञान

 

यह हमारा सौभाग्य है कि यहाँ अमरीका में, केनाडा में और युरोप के देशों मे हमें अपनी संस्कृति पर अच्छे व्याख्यान मिल जाते हैं। मूलत: २ संस्थाएँ श्रेयस्कर हैं...(१) राम कृष्ण मिशन, और (२) चिन्म्या मिशन जो कई दशकों से भारतीय संस्कृति को यहाँ यथायोग्य स्थान देने का प्रयास कर रहे हैं। यह व्याख्यान केवल रविवार को छुट्टी के दिन ही नहीं, सारे सप्ताह उपलब्ध हैं। उदाहरणार्थ... हर सोमवार और शनिवार को श्री भगवदगीता पर और विवेक्चूड़ामणि पर शिक्षा देने के लिए चिन्मया मिशन के आचार्य हमारे घर और हमारे मित्र के घर आते है, मंगलवार और शुक्र्वार को राम कृष्ण मिशन के आचार्य राम कृष्ण Gospel और कर्मयोग पर शिक्षा दे रहे हैं।

 

परन्तु व्याख्यान की उपलब्धि ही काफ़ी नहीं है, श्रोता भी चाहिएँ.... और कैसे कहूँ कि इस दिशा में निराशा ही दिखती है। खेद की बात है कि शहर में हास्य-व्यंग की शाम हो तो लगभग १००० भारतीय लोग ३० से ७० डालर की टिकट लेने के लिए टूट पड़ते हैं, परन्तु भगवदगीता, विवेकचूड़ामणि, कर्मयोग की कक्षा जो कि निशुल्क होती है, उसके लिए ६-७ लोगों से अधिक नहीं आते।

 

चिन्मया मिशन की ओर से बाल विहार स्कूल् हैं जहाँ पर मैं और मेरी जीवन साथी कई वर्षों से बच्चों को भारतीय संस्कृति और हिन्दी भाषा सिखाते हैं। पर यहाँ भी भारतीय जनसंख्या में से केवल ८-१०% बच्चे आते हैं। लेकिन जो आते हैं, उनको पढ़ाने में नीरा जी को और मुझको बहुत ही आनन्द आता है ... इतना कि हम हर रविवार को बाल विहार स्कूल की प्रतीक्षा करते हैं।

 

यह लिखने का अभिप्राय यह था कि भारतीय संस्कृति का ज्ञान यहाँ पर उपलब्ध है, पर उसका लाभ उठाने वाले बहुत ही कम हैं।

हालीवुड (कैलिफ़ोरनिया) में जुलाई में स्वामी जी के व्याख्यान के लिए कई दिन केवल ८-१० लोग आए थे, और उनमें से केवल हम तीन (मैं, मेरी जीवन साथी और मेरी बेटी) भारतीय थे।

 

फ़रवरी २०१३ में स्वामी विवेकानन्द जी की १५० वीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में मैंने कई शहरों में उनके जीवन पर लगभग ३० व्याख्यान दिए थे। प्रत्येक अवसर पर लगभग २५-३० और कभी ५० श्रोता भाग लेते थे, और जब वह प्रश्न पूछते थे तो मुझको बहुत आनन्द आता था। क्या आप अनुमान लगा सकते हैं कि प्राय: इनमें से १ भी भारतीय श्रोता नहीं होता था।

 

ऐसा क्यूँ है ? क्या हम अपनी संस्कृति के विषय में सब कुछ जानते हैं, इसलिए? कदाचित नहीं। मेरे विचार में इसके लिए २ कारण हैं...(१) Complacency आत्मसन्तोष towards our own heritage and values, और (२) पाश्चात्य संस्कृति को अधिक मान देना। इसके कारण भारतीय बच्चे जब यहाँ पर बड़े होते हैं तो उनमें से काफ़ी न इधर के होते हैं न उधर के।

हम निराश नहीं हो रहे, अपितु भारतीय जनसंख्या को प्रोत्साहित कर रहे हैं कि वह और उनके बच्चे इस प्राप्यता का लाभ उठाएँ। आशा है, प्रत्येक वर्ष पहले से अधिक लोग भाग लेंगे।

--------

-- विजय निकोर

(मौलिक और अप्रकाशित)                                         

Views: 937

Replies to This Discussion

भारतीय अध्यात्म और वांगमय समझने और साधने की दृष्टि से तनिक कठोर पृष्ठभूमि लिए हुए है |भारतीय जीवन दर्शन सामान्यतः मौज -मस्ती ,फूहर जीवन पद्धति आदि की वर्जना करती है जो एक उमर तक सामान्यजीवियों को नहीं भाता |और वहाँ ही क्यूँ यहाँ भी गहन विषय में अभिरुचि दिखाने वालों की संख्या लगभग नगण्य ही है और क्षीणतर होती जा रही है |सभी अब हल्के -फुल्के जीना चाहते हैं, कमाया -उड़ाया और खुश हुए ,यही ध्येय होता जा रहा हैं |ज्ञानवर्धन या ज्ञान का परिमार्जन आज के सौ में एक की ही बात रह गयी है |
वो जन्म से कुछ अलग होते हैं ,प्रकृति जिसे भिन्नताओं के साथ उत्पन्न करती है और वे ही इस ज्ञान प्राप्ति केलिए ईश्वरीय सद्पात्र होते हैं जिनकी जिज्ञासाएँ उत्कट होती हैं ,वही इन अभेद्यों को भेदना चाहते है |धर्म के प्रति आकर्षण लगभग सम्पूर्ण विश्व में सभी भाषा भाषीयों में घटी है|
विजयजी ! आप भी सामान्य से अलग प्रकृति के लोग हैं ,इसलिए आपको क्षोभ होता है |संदर्भ जीवन्त है और आपने उचित ढंग से प्रस्तुत भी किया |बधाई |

आदरणीय विजय जी,

क्षमा याचना के साथ आपसे अनुरोध है कि मेरे विलम्ब को अन्यथा न लें। न जाने क्यूँ आपकी अमूल्य प्रतिक्रिया का उत्तर देना रह गया। अब आदरणीय गोपाल जी की प्रतिक्रिया आई तो मेरे विलम्ब पर मेरा ध्यान गया।

 

जीवन में वह स्थिति आती है जब दुख-सुख, सुविचार, ज्ञानवर्धन और परिमार्जन ... सभी कुछ भगवान के प्रसाद-से लगते हैं। भगवान की grace के बिना कुछ भी नहीं होता, फिर भी अपने लक्षय को प्राप्त करने के लिए हमें आत्म-केन्द्रित प्रयास करना अनिवार्य है। ज्ञान की उपलब्धि ही प्रयाप्त नहीं, हम उसका प्रयोग कैसे करते हैं, यह उपलब्धि से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है। 

 

सराहना के लिए और अपने विचार साझे करने के लिए आपका हार्दिक आभार, विजय जी।

 

सादर,

विजय

   आदरणीय विजय निकोर सर:

जब से मैंने जाना है की आप दोनों बाल विहार में अपनी संस्कृति की शिक्षा देते हैं तब से मन में अनेक जिज्ञासाएं...वहाँ के बच्चे कितनी रूचि लेते हैं,ऐच्छिक रूप से यह शिक्षा लेते हैं या अनिवार्य विषय के रूप में होता है,ये 'बाल विहार 'है किस तरह का स्कूल,नाम तो भारतीय जैसा लगता है आदि अनेक बातें। लेकिन कितना पूछूँ आपसे!

व्याख्यान के बारे में जब आपने लेख डाले थे तब से लगता है कि वहां रह रहे अधिकाकांश भारतीयों  की सोच आप जैसी होती होगी,अपनी संस्कृति और धर्म के पर गर्व करते हुए उसके  वाहक  की तरह होंगे,तभी तो इतने गहन व्याख्यान वहां सम्भव हो पाते होंगे!लेकिन आपके इस लेख से स्पष्ट हो रहा है कि यहाँ,वहाँ नहीं  बल्कि व्यक्ति विशेष की अभिरुचि,सोचने की दिशा और आत्मसंयम की है।

आपके इस लेख ने मेरी कई जिज्ञासाओं को सहलाया है आदरणीय।

बाल विहार के जो 8/10% बच्चे आपकी कक्षाओं में आते हैं वही तो हमारी संस्कृति के भावी स्तम्भ हैं...उनके लिए मैं हार्दिक शुभकामनायें,साधुवाद प्रेषित करती हूँ

जो व्याख्यान आपने दिए (स्वामी विवेकानन्द पर आधारित),वो please कुछ व्याख्यान सम्भव  हों तो यहाँ भी प्रस्तुत करिये न आदरणीय.

भारत में भी भारतीयता की दिनोदिन अधोगति ही हो रही है...बड़ा चिंतनीय विषय है .

आपको बारम्बार आभार इस प्रोत्साहित करने वाले लेख को प्रस्तुत करने के लिए

सादर

शुभ शुभ

आदरणीया विन्दु जी:

जैसे मैंने विजय मिश्र जी से क्षमा माँगी है, वैसे ही आपसे भी उत्तर में विलंब के लिए क्षमा याचना कर रहा हूँ। आशा है, आप माफ़ कर देंगी।

 

आपने "बाल-विहार" के विषय में पूछा। यह स्कूल  बच्चों को भारतीय संस्कृति का ज्ञान देने के लिए हर रविवार को यहाँ अटलांटा शहर में कक्षा १ से १२ तक पढ़ाने का प्रयास करते हैं। दो संस्थाएँ हैं जो इस ओर समय दे रही हैं... (१) विश्व हिन्दु परिषद, और (२) चिन्मय मिशन। मेरी जीवन साथी नीरा जी और मैं चिन्मय मिशन स्कूल से सम्बन्धित हैं, और हम दोनों कई वर्षों से बच्चों को पढ़ाने का आनन्द ले रहे हैं।

 

बाल-विहार की शिक्षा अनिवार्य नहीं है, स्वैच्छिक है, परन्तु बहुत कम माता-पिता अपने बच्चों के लिए हर रविवार को इसके लिए समय निकालते हैं। जब हमारे बच्चे बड़े हो रहे थे तो इस प्रकार के स्कूल यहाँ पर नहीं थे... काश यह तब भी होते !

 

बच्चे व्याख्यान में और श्लोकों में बहुत रूचि लेते हैं, और इसीलिए उन्हें पढ़ाने में हमें बहुत आनन्द आता है।

 

आपने यह जानने के लिए और इस आलेख को ध्यान से पढ़ने में समय दिया, आपका हार्दिक आभार आदरणीया विन्दु जी।

 

सादर,

विजय

आदरणीय निकोर जी

बड़ी मार्मिक समस्या उठायी है  आपने i  काम्प्लीसेंसी से  अधिक है उदासीनता  i काहिलीपन i  कौन जाए ? ज्ञान  अच्छा किसे लगता है ? हमारी रचनाये हमारे घरवाले ही नहीं पढ़ना चाहते i हम है कि बाहर पाठक तलाशते है i सच्चाई यह है की सीखने या जानने की ललक ही लोगो में नहीं है  i Eat, drink and be merry ही  जीवन का उद्देश्य रह गया है i हम केवल अरण्य रोदन ही कर सकते है और करते है  i  फ़िलहाल आपकी चिंता वाजिब है  i यह लोगो के कान  तक पहुंचे  i आमीन i

आदरणीय गोपाल नारायन जी:

 

आपने सही कहा, " सच्चाई यह है की सीखने या जानने की ललक ही लोगो में नहीं है । ...Eat, drink and be merry ..."

यह ललक केवल शूरू करने की बात है, क्यूँकि एक बार शूरू हो जाए तो ज्ञान का आनन्द हमें और जानने के लिए प्रेरित करता है।

कठिनाई तो यह है कि लोग प्राय: इस ओर बढ़ने से, शूरू करने से, कतराते हैं।

 

लेख को मान देने के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय गोपाल नारायन जी।

 

सादर,

विजय

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहा दसक- गाँठ
"आ. भाई चेतन जी, सादर अभिवादन। दोहों पर आपकी उपस्थिति से प्रसन्नता हुई। हार्दिक आभार। विस्तार से दोष…"
7 hours ago
Chetan Prakash commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post दोहा दसक- गाँठ
"भाई, सुन्दर दोहे रचे आपने ! हाँ, किन्तु कहीं- कहीं व्याकरण की अशुद्धियाँ भी हैं, जैसे: ( 1 ) पहला…"
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post दोहा सप्तक
"बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय लक्ष्मण धामी जी "
Sunday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post दोहा सप्तक
"आ. भाई सुरेश जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं । हार्दिक बधाई।"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"सादर नमस्कार आदरणीय।  रचनाओं पर आपकी टिप्पणियों की भी प्रतीक्षा है।"
Mar 1
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"आपका हार्दिक आभार आदरणीय उस्मानी जी।नमन।।"
Feb 28
Manan Kumar singh replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"आपका हार्दिक आभार आदरणीय तेजवीर सिंह जी।नमन।।"
Feb 28
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"बहुत ही भावपूर्ण रचना। शृद्धा के मेले में अबोध की लीला और वृद्धजन की पीड़ा। मेले में अवसरवादी…"
Feb 28
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"कुंभ मेला - लघुकथा - “दादाजी, मैं थक गया। अब मेरे से नहीं चला जा रहा। थोड़ी देर कहीं बैठ लो।…"
Feb 28
TEJ VEER SINGH replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"आदरणीय मनन कुमार सिंह जी, हार्दिक बधाई । उच्च पद से सेवा निवृत एक वरिष्ठ नागरिक की शेष जिंदगी की…"
Feb 28
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"बढ़िया शीर्षक सहित बढ़िया रचना विषयांतर्गत। हार्दिक बधाई आदरणीय मनन कुमार सिंह जी।…"
Feb 28
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-119
"रचना पटल पर उपस्थिति और विस्तृत समीक्षात्मक मार्गदर्शक टिप्पणी हेतु हार्दिक धन्यवाद आदरणीय तेजवीर…"
Feb 28

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service