For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

रूबरू होता हूँ मैं उससे आजकल जब भी,
देखता हूँ उसे हैरत भरी निगाहों से,
उसके चेहरे पे घिरी रहती है एक मायूसी,
और निगाहों में कोई तल्ख़ सी उदासी भी,
उसकी मानो तो, हक़ीकत यही उदासी है,
और उसके लिये हर ख्वाब महज़ धोखा है,
मुझसे कहता है वो, कि "तुम भी बदल जाओगे,
तुमसे जब ज़िन्दगी के सच का सामना होगा।"
है वो वाक़िफ़ बग़ैर-शक़ बड़े तज़ुर्बों से,
और देखा है ज़माने को भी मुझसे ज्यादा,
उसने महसूस किये हैं तमाम दर्द-ओ-अलम,
और बेशक़ उसे ख़बर है हर हक़ीकत की;
मुझको  उसकी हक़ीकतों पे कोई शक़ भी नहीं,
और दावा भी नहीं वक़्त के तज़ुर्बे का,
उसकी बातें भी सब कि सब ज़रूर सच होंगी,
और होगी नहीं यूँ बेसबब उदासी भी।
मैं मग़र कैसे कहूँ- मैं भी एक इन्सां हूँ,
बेख़बर, बेअसर, बेजान कोई बुत तो नहीं,
देखता भी हूँ, और महसूस भी कर सकता हूँ,
और समझता भी हूँ मैं ज़िन्दगी जीने का सबक़।
फ़र्क़ ग़र है, तो फ़क़त ये है, कि उसकी राहें
सबके क़दमों के निशानों पे चला करती हैं;
मैं मग़र पूछता हूँ ख़ुद से ही अपनी मंज़िल,
और रखता हूँ हौसला भी नयी राहों का....

"मौलिक व अप्रकाशित"

Views: 710

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by अजय कुमार सिंह on January 2, 2014 at 7:26pm

आदरणीय सौरभ पाण्डेय जी, आपकी सार्थक टिप्पणी ने मेरी रज-तुल्य रचनाओं को कनक-सम कर दिया है। मेरी अभिव्यक्तियों की कसमसाहट की धीमी आँच आपकी अँगुलियों को छू सकी; भाग्यशाली हूँ। सभी नवोद्भित रचनाओं को अपने शैशव से तरुणाई की प्रायः असमाप्य यात्रा में आप जैसे गुणी और अनुभवी अग्रजों की पारखी दृष्टि के प्रोत्साहन का अवलम्ब कहाँ मिल पाता है! मेरी रचनायें अनुग्रहीत हैं। सादर।

Comment by अजय कुमार सिंह on January 2, 2014 at 7:12pm

आदरणीय अरुन शर्मा 'अनन्त' जी,  आदरणीय CHANDRA SHEKHAR PANDEY जी,

आपको मेरा प्रयास पसन्द आया; आभारी हूँ।

आप सबका रचना को पसन्द करना ही इसकी सार्थकता है। सादर धन्यवाद।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 26, 2013 at 8:40pm

भाई अजयजी. बग़ावत के तज़ुर्बे से .. !!?
बढ़िया. !

सही कहिये, भाईजी, तो ओबीओ के मंच पर संभवतः आपकी कोई पहली रचना ही देख-पढ़ रहा हूँ. आपके रचना-सामर्थ्य के क्रोड़ में सतत पकती हुई कस्तुरी के मनहर सुवास से मुग्ध हुआ मैं अबतक अतिरेक में हूँ.  उनमन.. उन्मन.. उन्मन.. !

हठात्.. ! इस प्रस्तुति की असह्य वाचालता ने उन नम्र-निवेदनों से सुलभ हुई भाव-दशा की अगाध शांति से झकझोर दिया है.

ख़ैर, रचना आपकी है. एक पाठक की हार्दिक शुभकामनाएँ संप्रेषित हैं.
शुभ-शुभ

Comment by अरुन 'अनन्त' on December 23, 2013 at 12:14pm

शानदार अभिव्यक्ति आदरणीय अजय जी बहुत बहुत बधाई आपको

Comment by CHANDRA SHEKHAR PANDEY on December 21, 2013 at 7:13pm

बेहद सुन्दर अभिव्यक्ति है। आपकी रचनाएं अपनी रवानी के लिए ही जानी जाती हैं। बहुत बधाई

Comment by अजय कुमार सिंह on December 20, 2013 at 10:40pm
आदरणीया कुन्ती जी - कविता में निहित भाव के अनुसार - "कोई अन्य जो मुझसे ज्यादा अनुभव रखता है, मैंने उसका अनुसरण करने को नकार दिया क्योंकि मुझे स्वयं के हौसलों पर ज्यादा विश्वास है?" यद्यपि स्पष्ट रूप से कविता में सम्प्रेषण का अभाव है जिसके कारण कविता आप तक नहीं पहुँच सकी, तथापि मुझे विश्वास है कि इस स्पष्टीकरण से आपको कुछ सहायता मिलेगी। सादर।
Comment by अजय कुमार सिंह on December 20, 2013 at 10:26pm
कविता को पसन्द करने के लिए आप सभी गुनीजनों का आभारी हूँ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 20, 2013 at 8:13pm

शायद इसी को पीढ़ियों का गेप कहते हैं पर बेहतर है की बड़ों के तजुर्बे से सीख लो भले ही आपका पथ अलग हो किन्तु तजुर्बे बहुत काम आते हैं आपको सही गलत का फेंसला लेने में मदद करते हैं ....बढ़िया रचना बधाई आपको 

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on December 20, 2013 at 1:33pm

अजय  कुमार जी

आपकी रचना ने मन मुग्ध कर दिया i कोई शब्द-आडम्बर नहीं i अभिव्यक्ति में गति है , लय  है और एक रवानी भी i विषय की गंभीरता को आपने शिद्दत से निभाया है i अतुकांत लिखनेवाले नए कवियों को आपसे सीखना चाहिए i  आशिर्वाद i

Comment by coontee mukerji on December 20, 2013 at 1:32pm

पूरी रचना में आपने कहना क्या चाहा है भाई अजय कुमार जी.. . .....?             

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"स्वागतम"
4 hours ago
धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

देवता चिल्लाने लगे हैं (कविता)

पहले देवता फुसफुसाते थेउनके अस्पष्ट स्वर कानों में नहीं, आत्मा में गूँजते थेवहाँ से रिसकर कभी…See More
6 hours ago
धर्मेन्द्र कुमार सिंह commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय,  मिथिलेश वामनकर जी एवं आदरणीय  लक्ष्मण धामी…"
7 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185

परम आत्मीय स्वजन, ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 185 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
Wednesday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, प्रस्तुति पर आपसे मिली शुभकामनाओं के लिए हार्दिक धन्यवाद ..  सादर"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

आदमी क्या आदमी को जानता है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२२ कर तरक्की जो सभा में बोलता है बाँध पाँवो को वही छिप रोकता है।। * देवता जिस को…See More
Tuesday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Monday
Sushil Sarna posted blog posts
Nov 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Nov 5
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
Nov 5

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Nov 2

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service