For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बोगेनविलिया की पंखुड़ियाँ

बोगेनविलिया की पंखुड़ियाँ
शायद खिलने वाली हैं...

तुमने कल की सारी बातें
जल्दी जल्दी चुन चुन कर,
अपनी जेबों में भर ली हैं
कितनी बेतरतीबी से,
कुछ तो खोकर भूल गयी हैं,
पर कुछ गिरने वाली हैं...

उस दिन कितनी कोशिश करके
हमने धूप बिछायी थी,
अल्फ़ाज़ों की कुछ शाखों से
कुछ पत्ते भी टूटे थे,
उन पर ठहरी खामोशी की
बूँदें झरने वाली हैं...

अलसाये नाज़ुक होठों की
हिलती डुलती टहनी पर,
कोहरे वाले मौसम में भी
पीली कलियाँ उगती हैं,
भीनी ख़ुशबू छूकर सारी
बातें खुलने वाली हैं...

बोगेनविलिया की पंखुड़ियाँ
शायद खिलने वाली हैं...

(मौलिक और अप्रकाशित)

Views: 833

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by अरुन 'अनन्त' on January 17, 2014 at 1:40pm

भाई अजय कुमार जी बहुत सुन्दर गीत रचा है आपने पसंद आया बहुत बहुत बधाई स्वीकारें.

Comment by बृजेश नीरज on January 17, 2014 at 7:52am

अच्छा प्रयास है! आपको हार्दिक बधाई!

इस तरह का शब्द-चयन और कहन का ढंग आकर्षित करता है लेकिन भाई कहते समय थोड़ी सावधानी भी बरतने की जरूरत होती है.

Comment by रमेश कुमार चौहान on January 16, 2014 at 10:52pm

बहुत सुंदर, सार्थक प्रयास  के लिये बधाई बधाई


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on January 16, 2014 at 10:22pm

सिटी-कल्चर में पली-बढ़ी रुमानी भावनाओं को सार्थक शब्द देने का प्रयास हुआ है. बोगेनविलिया की जगह हरसिंगार का होना पृष्ठभूमि में कितना अंतर कर देता ?.. है न !

प्रस्तुत गीत में इस सायास प्रयोग के लिए पुनः बधाइयाँ.

Comment by annapurna bajpai on January 16, 2014 at 6:55pm

अति सुंदर रचना , बहुत बधाई आपको आ0 अजय कुमार जी । 

Comment by अजय कुमार सिंह on January 16, 2014 at 2:59pm

आदरणीय श्याम जी, गणेश जी, मीना जी, डॉ प्राची जी, कुन्ती जी, गिरिराज जी ! नवगीत रचना की ओर यह मेरे प्रारम्भिक प्रयासों में से एक है. आप सबकी दृष्टि में यह रचना आयी, मैं इसी को इसकी सार्थकता समझता हूँ. आप सभी का हार्दिक धन्यवाद. आदरणीया कुन्ती जी ने बिम्ब के जिस दोष की ओर इशारा किया है, मैं भी उससे अंशतः सहमत हूँ. साथ ही रचना की इतनी छोटी सी त्रुटि पर ध्यान देने के लिये और उसे सामने लाने के लिये आभारी हूँ. बिम्ब की यह विसंगति मेरे ध्यान में रचना करते हुये भी आयी थी, लेकिन यदि आप सूक्ष्मता से देखें, तो गीत की आत्मा ही प्रिय के मधुर सान्निध्य के रंग से चित्रित है. इस स्थिति में बोगेनविलिया जैसे शुष्क पुष्प में भी खुशबू का अनुभव गीत के मूलभाव से असंगत नहीं जान पड़ता है. इसीलिए मैंने जानबूझकर ही इस बिम्ब का प्रयोग किया है. आशा है, इस बिम्ब के साथ भी रचना स्वीकार्य होगी. -सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 15, 2014 at 9:16pm

आदरणीय अजय भाई , लाजवाब गीत रचना के लिये आपको हार्दिक  बधाइयाँ ॥

Comment by coontee mukerji on January 15, 2014 at 5:21pm

भीनी ख़ुशबू छूकर सारी
बातें खुलने वाली हैं...

बोगेनविलिया की पंखुड़ियाँ
शायद खिलने वाली हैं.......ध्यान रखने  वाली बात बोगन वेलिया  से खुशबू  नहीं आती है.....किसी और फूल का नाम रखियेगा. आपकी यादें सार्थक हो जाएगी....बहुत ही सुंदर  रचना है.


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on January 15, 2014 at 3:44pm

बहुत सुन्दर सरस मनमोहक नवगीत हुआ है 

उस दिन कितनी कोशिश करके
हमने धूप बिछायी थी,
अल्फ़ाज़ों की कुछ शाखों से
कुछ पत्ते भी टूटे थे,
उन पर ठहरी खामोशी की
बूँदें झरने वाली हैं............................स्मृतियों को शब्द चित्र में कैद कर के स्वप्न बुनना..बहुत सुन्दर !

हार्दिक बधाई इस सुन्दर नवगीत पर 

Comment by Meena Pathak on January 15, 2014 at 2:59pm

अलसाये नाज़ुक होठों की
हिलती डुलती टहनी पर,
कोहरे वाले मौसम में भी
पीली कलियाँ उगती हैं,
भीनी ख़ुशबू छूकर सारी
बातें खुलने वाली हैं...

बोगेनविलिया की पंखुड़ियाँ
शायद खिलने वाली हैं................ बहुत सुन्दर रचना .. बहुत बहुत बधाई आप को 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - आँखों की बीनाई जैसा
"आदरणीय नीलेश भाई , खूबसूरत ग़ज़ल के लिए बधाई आपको "
1 hour ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी's blog post ग़ज़ल (जो उठते धुएँ को ही पहचान लेते)
"आदरणीय बाग़पतवी भाई , बेहतरीन ग़ज़ल कही , हर एक शेर के लिए बधाई स्वीकार करें "
1 hour ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा दशम -. . . . . शाश्वत सत्य
"आदरणीय शिज्जू शकूर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय । आपके द्वारा  इंगित…"
4 hours ago
Mayank Kumar Dwivedi commented on Mayank Kumar Dwivedi's blog post ग़ज़ल
"सादर प्रणाम आप सभी सम्मानित श्रेष्ठ मनीषियों को 🙏 धन्यवाद sir जी मै कोशिश करुँगा आगे से ध्यान रखूँ…"
5 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on Sushil Sarna's blog post दोहा दशम -. . . . . शाश्वत सत्य
"आदरणीय सुशील सरना सर, सर्वप्रथम दोहावली के लिए बधाई, जा वन पर केंद्रित अच्छे दोहे हुए हैं। एक-दो…"
8 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय सुशील सरना जी उत्सावर्धक शब्दों के लिए आपका बहुत शुक्रिया"
8 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय निलेश भाई, ग़ज़ल को समय देने के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया। आपके फोन का इंतज़ार है।"
8 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"मोहतरम अमीरुद्दीन अमीर 'बागपतवी' साहिब बहुत शुक्रिया। उस शे'र में 'उतरना'…"
8 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय सौरभ सर,ग़ज़ल पर विस्तृत टिप्पणी एवं सुझावों के लिए हार्दिक आभार। आपकी प्रतिक्रिया हमेशा…"
8 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
शिज्जु "शकूर" commented on शिज्जु "शकूर"'s blog post ग़ज़ल: मुराद ये नहीं हमको किसी से डरना है
"आदरणीय गिरिराज भंडारी जी, ग़ज़ल को समय देने एवं उत्साहवर्धक टिप्पणी के लिए आपका हार्दिक आभार"
8 hours ago
Sushil Sarna posted blog posts
9 hours ago
Nilesh Shevgaonkar posted a blog post

ग़ज़ल नूर की - आँखों की बीनाई जैसा

आँखों की बीनाई जैसा वो चेहरा पुरवाई जैसा. . तेरा होना क्यूँ लगता है गर्मी में अमराई जैसा. . तेरे…See More
9 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service