For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

जीभ से जो पेट तक है आग का दरिया ...(ग़ज़ल)

ग़ज़ल
२१२२ ,२१२२ ,२१२२ ,२

बेबसी की इंतिहा जब आह सुनती है 
आँसुओं से बैठ कर फिर वक़्त बुनती है.

मरहले दर मरहले बढ़ती रही वो धुँध  
जिंदगी क्यों, ये न जाने राह चुनती है. 

जीभ से जो पेट तक है आग का दरिया
फलसफों को भूख जिसमें रोज़ धुनती है. 

वो थका है कब हमारा इम्तिहाँ ले कर
रेत है जो भाड़ की हर वक़्त भुनती है .

तू भले ही हो न हो पर राहत ए जाँ अब 
दर्द की तस्बीह तेरा नाम गुनती है . 

-ललित मोहन पंत 
3. 03 सुबह 
27 . 11 . 2013

"मौलिक व अप्रकाशित" 

Views: 669

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by dr lalit mohan pant on March 12, 2014 at 3:03am

Saurabh Pandey जी आपकी दाद का शुक्रिया  … धुनना मैंने दरिया के सन्दर्भ में कहा है  आग में भुनती है और दरिया में धुनती है  … 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 7, 2013 at 7:23pm

बहुत बढिया..  दाद कुबूल करें, ललित मोहनजी.

वैसे इस पोस्ट पर आप भी पलट कर शायद नहीं आये हैं.  सो पाठकीय संवाद की कोई गुंजाइश बनी दीख नहीं रही मुझे. वर्ना पूछता कि आग में कोई चीज़ भुनती है या धुनती है. धुनने का अपना खास मायना है. वैसे काफ़िये की भी समस्या भारी ही है, सो, शाब्दिक चमत्कार के लिहाज़ से बढिया प्रयोग है. .. :-))

शुभ-शुभ

Comment by वीनस केसरी on December 3, 2013 at 2:49am

वाह बहुत खूब

Comment by अरुन 'अनन्त' on December 1, 2013 at 4:17pm

आदरणीय ललित सर बेहतरीन ग़ज़ल कही है आपने सभी शेर बेहद सुन्दर बन पड़े हैं अंतिम शेर में तकाबुले रदीफ़ का दोष जान पड़ता है कृपया एक बार जाँच लें. खास कर इस शेर हेतु विशेष तौर से दाद कुबूल फरमाएं.

जीभ से जो पेट तक है आग का दरिया
फलसफों को भूख जिसमें रोज़ धुनती है.  वाह वाह वाह


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 30, 2013 at 3:17pm

आदरणीय , लाजवाब गजल कही है , आपको हार्दिक बधाई !!!!!

Comment by राजेश 'मृदु' on November 30, 2013 at 2:06pm

जय हो आदरणीय, बहुत ही अच्‍छी लगी आपकी प्रस्‍तुति, सादर

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on November 30, 2013 at 9:56am

तू भले ही और कितने इम्तहाँ ले ले 
रेत है जो भाड़ की हर वक़्त भुनती है ...........क्या बात है, गजब का शेर

दमदार गजल हुयी , दिली दाद कुबुलिये आदरणीय ललित जी

Comment by annapurna bajpai on November 29, 2013 at 10:40pm

सुंदर गजल बहुत बधाई । आपको । 

Comment by Sushil Sarna on November 29, 2013 at 7:16pm

wah bahut khoob...haardik badhaaee

Comment by Shyam Narain Verma on November 29, 2013 at 11:50am
बहुत ही सुन्दर! हार्दिक बधाई आपको!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आ. भाई शिज्जू शकूर जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। गिरह भी खूब हुई है। हार्दिक बधाई।"
21 minutes ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"उन्हें जो आँधियों से याद आया मुझे वो शोरिशों से याद आया याद तो उन्हें भी आया और शायर को भी लेकिन…"
47 minutes ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"तुम्हें अठखेलियों से याद आया मुझे कुछ तितलियों से याद आया इस शेर की दूसरी पंक्ति में…"
1 hour ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"कहाँ कुछ मंज़िलों से याद आया सफ़र बस रास्तों से याद आया. मतले की कठिनाई का अच्छा निर्वाह हुआ।…"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आ. भाई चेतन जी , सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। हार्दिक बधाई। "टपकती छत हमें तो याद आयी"…"
2 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"उदाहरण ग़ज़ल के मतले को देखें मुझे इन छतरियों से याद आयातुम्हें कुछ बारिशों से याद आया। स्पष्ट दिख…"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
2 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"सहमत"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आ.भाई जयहिंद जी, सादर अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। गुणीजनो के सुझावों से यह और निखर गयी है। हार्दिक…"
2 hours ago
Gurpreet Singh jammu replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"मुशायरे की अच्छी शुरुआत करने के लिए बहुत बधाई आदरणीय जयहिंद रामपुरी जी। बदलना ज़िन्दगी की है…"
10 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"आदरणीय शिज्जु "शकूर" जी, पोस्ट पर आने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
11 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion र"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185
"पगों  के  कंटकों  से  याद  आयासफर कब मंजिलों से याद आया।१।*हमें …"
14 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service