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क्यों, जीवन पर्यन्त मरीचिकायें आखेट करती है जीवन का ???

रचना पूर्व प्रकाशित होने के कारण तथा ओ बी ओ नियमों के अनुपालन के क्रम मे प्रबंधन स्तर से हटा दी गयी है, लेखक से अनुरोध है कि भविष्य में पूर्व प्रकाशित रचनाएँ ओ बी ओ पर पोस्ट न करें | (08.12.2013 / 22:35)

एडमिन
2013120807

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Comment by Admin on December 6, 2013 at 3:04pm

आदरणीय डॉ ललित मोहन पंत जी, कृपया संलग्न स्क्रीन शॉट का अवलोकन करें, जैसा कि आप को ज्ञात ही है कि ओ बी ओ नियमानुसार यहाँ पर केवल वही रचना प्रकाशित की जा सकती है जो किसी भी वेबसाइट पर प्रकाशित न हुई हो, यह रचना पूर्वप्रकाशित है, जबकि आपने इस रचना के अंत में अप्रकाशित होने की घोषणा कर रखी है, दरअसल आपकी यह रचना "महीने की श्रेष्ठ रचना" हेतु विचारणीय थी किन्तु जांच के  क्रम में यह पूर्व प्रकाशित मिली । 

इस सम्बन्ध में कृपया अपना मंतव्य दें । 

Comment by dr lalit mohan pant on November 28, 2013 at 12:17am

 आ ० डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव  जी SANDEEP KUMAR PATELजी  गिरिराज भंडारी जी annapurna bajpaiजी विजय मिश्रजी Meena Pathakजी Dr.Prachi Singhजी Saurabh Pandey जी ,
आप सबकी उत्साहित करती प्रतिक्रियाओं के प्रति आभारी हूँ  . मैं स्वयं को व्यक्त कर आप सब विज्ञ जन तक पहुँच पाया  यह अनुभूति मुझे हर्षित कर रही है  । ऐसे ही सतत स्नेह कि अभिलाषा में  .... 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 28, 2013 at 12:02am

सुंदर रचना साझा करने के लिए धन्यवाद, आदरणीय


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on November 26, 2013 at 5:24pm

आ० ललित मोहन पन्त जी 

रचना की अंतर्धारा बहुत पसंद आयी 

...अनंत को निहारते हुए उसके सापेक्ष जिजीविषाओं के बौनेपन को देखना और उस पर भी मरीचिका ऐसी की मानव मन जानते बूझते उलझा उलझा सा जैसे खुद ही आखेटक की गिरफ्त में जाने को तैयार...

पंक्ति दर पंक्ति अभिव्यक्त सोच के सुलझेपन और स्पष्टता से गुज़रना बहुत अच्छा लगा 

हार्दिक बधाई इस प्रस्तुति पर .

Comment by Meena Pathak on November 22, 2013 at 7:07pm

आदरणीय ललित जी सुन्दर भावपूर्ण रचना हेतु बधाई स्वीकारें 

Comment by विजय मिश्र on November 22, 2013 at 5:31pm
पंतजी , प्रश्न आपके पाइन के पेड़ से कम ऊँचे नहीं ? आपने अपनी कविता नें प्रत्येक संघर्षशील व्यक्ति का प्रतिनिधित्व किया है जो अपनी आकांक्षा और यथार्थ के कसमकस में समूची उमर गुजार देता है | मानवीय अन्तर्द्वन्द पर एक आत्मीय रचना |अनेक बधाईयाँ|
मैं भी आश्वस्त नहीं मगर लगता है कि इतिहास का वह पात्र सम्पाती था ,जटायु का अनुज जो सूरज छूने चला था |
Comment by annapurna bajpai on November 22, 2013 at 4:49pm

आ0 ललित मोहन पंत जी सुंदर भावों की प्रस्तुति के लिए बधाई । 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 21, 2013 at 5:50pm

आदरनीय, बहुत भाव पूर्ण , सुन्दर रचना !!! सतत जीवन संग्राम मे अपनी ही आकांक्षाओं से जूझते  मन मे उठने वाले सवाल का सुन्दर चित्रण !!!!!  आपको बधाई !!!!                

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on November 21, 2013 at 3:44pm

बहुत सुन्दर आदरणीय सादर बधाई स्वीकारिये

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on November 21, 2013 at 1:24pm

पन्त जी

आपका भाव पक्ष प्रबल है

शुभ  कामनाये i

कृपया ध्यान दे...

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