For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

अरे ओ नौजवानों ,
अब उठो और
खुद से ये पूछो |
दिया जिसने तुम्हे है सब कुछ
उसी के दिल -
-से आज तुम पूछो
कभी हमसे भी पूछो ,
और लोगों से भी पूछो |
किया तुमने है क्या
उस माँ की खातिर
जिसने तुम्हे ममता परोसी है |
आँचल से लिपटकर जिसके
दुनिया ये सोती है |
जिसका जीवन बना आदर्श
आज फिर , ममता वो रोई है |
जिसने सभी के चेहरों पर
मुस्कान है लायी ,
वो ममता आज फिर
खुद हंस-हंस के रोई है |
जिसने खुद जगकर
हमको सुलाया है ,
उसी माँ की इन आँखों से
आज फिर नींद गायब है |
किया हमने है क्यों ऐसा
कि "ममता" खुद ही रोई है |
जिन सपनो को उसने
तिल-तिल पिरोया है
उन्ही सपनो कि गहराई में आज
मेरी माँ फिर से खोयी है |
क्यों ये ममता आज फिर
ज़ोरों से रोई है !

--अक्षय ठाकुर "परब्रह्म"

Views: 573

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Akshay Thakur " परब्रह्म " on February 6, 2011 at 12:52am
Thanks Shradhha Ma'am :)
Comment by Akshay Thakur " परब्रह्म " on January 21, 2011 at 11:10pm
Dhanyavaad Sir :)
Comment by आशीष यादव on January 21, 2011 at 3:16pm

माता से बढ़ कर कौन है इस दुनिया में| सुन्दर भावों से प्रदर्शित किया आपने| माँ पर ही मेरी ये रचना देख लीजियेगा|

http://www.openbooksonline.com/profiles/blogs/5170231:BlogPost:20628

 

Comment by Abhinav Arun on January 21, 2011 at 12:41pm

माँ ईश्वर की श्रेष्ठ कृति

और कविता में व्यक्त आपके श्रेष्ठ भाव

आपकी साहित्यिक गंभीरता और परिपक्वता को दर्शाते है

बधाई !!!

Comment by GOPAL BAGHEL 'MADHU' on January 21, 2011 at 9:00am
Bahuta sundara bha'va prava'ha hae A'pakii prathama kavita' mem'.
Dhiire dhiire chhanda va vya'karan'a mem' sudha'ra la'te chalem'. Likhate chalem' .. Gati pakr'em va phira gun'avatta' sudha'te va manjate chalem'. Kuchha kaviyom' se nikat'ata' bana'ye ralhem' ..Sama'lochana' kara'te rahem'..sahate rahem'..samajhatr rahem'..

Ka'vya jagata mem' susva'gata! Maim' kuchha du'ra Canada mem' hu'n para hrdaya se sable nikat'a hu'n.
Comment by Akshay Thakur " परब्रह्म " on November 18, 2010 at 6:25pm
गणेश जी भाई एवं नवीन भाई - बहुत बहुत धन्यवाद | :)

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on November 17, 2010 at 6:39pm
जिन सपनो को उसने
तिल-तिल पिरोया है
उन्ही सपनो कि गहराई में आज
मेरी माँ फिर से खोयी है |
क्यों ये ममता आज फिर
ज़ोरों से रोई है !

वाह वाह अक्षय जी,बहुत मार्मिक विषय को आपने उठाया है, जिस दिन माँ की ममता तड़प कर रो दी उस दिन हमारा जीवन व्यर्थ हो जायेगा |
बेहतरीन काव्य कृति पर बधाई स्वीकार कीजिये |

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Tuesday
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Sunday
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Sunday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Sunday
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27
Shyam Narain Verma commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: ग़मज़दा आँखों का पानी
"नमस्ते जी, बहुत ही सुंदर प्रस्तुति, हार्दिक बधाई l सादर"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service