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हंसी में उड़ा गयी

आँख से आँख वो ऐसे कुछ लड़ा गयी ।
नज़र पे अज़ीब सी कशिश वो चढ़ा गयी ।

झोकें सी गुज़री जब मेरे करीब से ,
साँसों को थामकर  धड़कनें  बढ़ा गयी ।

आरज़ू बड़ी थी पर कुछ भी न कह सका ,
बोलने के वक्त आवाज़ लड़खड़ा गयी ।

के घायल खड़ा रहा बनके शिकार मै ,
तीरे नज़र मेरे जिगर पे गड़ा गयी ।

लगा एक पल जैसे कयामत करीब हो ,
मेरी बायीं आँख तभी फड़फड़ा गयी ।

मुड़ के मेरी ओर फिर यूँ मुस्करायी ,
ज्यूँ मेरी बेबसी हंसी में उड़ा गयी ।

मौलिक व अप्रकाशित
नीरज

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Comment

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Comment by Neeraj Nishchal on November 26, 2013 at 6:40pm

भाई अरुण जी बहुत बहुत हूँ शुक्रगुज़ार आप का ।
तहे दिल से प्रकट करता हूँ आभार आपका ।

Comment by अरुन 'अनन्त' on November 23, 2013 at 3:54pm

नीरज भाई बहुत ही सुन्दर प्रयास है एक अच्छी कोशिश के लिए ढेरों बधाई सही दिशा में जा रहे हैं प्रयासरत रहें. इस कोशिश पर बधाई स्वीकारें.

Comment by Neeraj Nishchal on November 22, 2013 at 8:34pm

बहुत बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीया मीना पाठक जी ।

Comment by Meena Pathak on November 22, 2013 at 6:36pm

बहुत सुन्दर ! बधाई आ० नीरज जी 

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