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मिस्टेक न हो जाए

इससे पहले कभी 
कहा नही जाता था 
तो बम के साथ हम 
फट जाते थे कहीं भी
और उड़ा देते थे चीथड़े 
इंसानी जिस्मों के...

अब कहा जा रहा है 
मारे न जायें अपने आदमी 
सो पूछ-पूछ कर 
जवाब से मुतमइन होकर 
मार रहे हैं हम...

बस समस्या भाषा की है 
उन्हें समझ में नही आती
हमारी भाषा 
हमें समझ में नही आती 
उनकी बोली 


हेल्लो हेल्लो 
क्या करें हुज़ूर..

एक तरफ आपका फरमान 

दूजे टारगेट की बेचैनियाँ 
इसके चलते 'मिस्टेक' हो सकती है...

अपने लोगों को तो ज़ुरूर पता होना चाहिए

पैगम्बर की माँ का नाम 

और रटी होनी चाहिए कुरआन की आयतें 


काश, दुनिया को ओने-कोने में बसे 
हमारे आदमी सभी 
अरबी बोल पाते...अरबी समझ पाते...

(मौलिक अप्रकाशित )

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 1, 2013 at 4:49pm

आपकी कविताओं का अंदाज़ अलहदा है, आदरणीय अनवर साहब.. और मैं आपके इस अंदाज़ का फ़ैन हूँ.

भाषण कविता नहीं होता, तो चीख भी कविता नहीं होती. आपने कई-कई बार इस तथ्य को सार्थकता से प्रस्तुत किया है.

जिस संवेदना और वैचारिक स्पष्टता की आवश्यकता प्रस्तुत कविता को थी आपने आत्मीयता और दायित्व के साथ इनसे कविता को संतुष्ट किया है. ऐसी शाब्दिक और वैचारिक ताकत ही रचनाकर्म में यथार्थ प्रस्तुतियों की संवाहक है. जो है सो है को शिद्दत से आपने उभारा है.

बहुत-बहुत बधाई स्वीकारें आदरणीय.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 27, 2013 at 7:32am

आदरणीय , बहु अच्छा विषय चुना , बहुत अच्छी बात लिखी है !! बहुत बहुत बधाई !!

Comment by राजेश 'मृदु' on September 26, 2013 at 3:03pm

बहुत बढि़या प्रस्‍तुति है, सादर


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 25, 2013 at 10:28pm

बहुत संवेदनशील मुद्दे पर आपकी कलम चली ये समस्या हम सभी की है अतः हल भी मिलकर ही सोचना चाहिए दहशत गर्दों का कोई धर्म ही नहीं होता 

Comment by Meena Pathak on September 25, 2013 at 6:50pm

अति सुन्दर रचना .. बधाई आप को 

Comment by Saarthi Baidyanath on September 25, 2013 at 5:12pm

विषय अच्छा लगा ... रचना अद्वितीय है ..! खूब ..बहुत खूब :)

Comment by रविकर on September 25, 2013 at 9:14am

गजब प्रस्तुति-
आभार आदरणीय-

बम गोली भी मारते, पूंछ पूंछ कर नाम |
रहिये सभी सचेत अब, हिन्दु-सिक्ख-इस्लाम |
हिन्दु-सिक्ख-इस्लाम , धर्म की पढ़ो किताबें |
पढ़ लो श्लोक कलाम, अन्यथा गर्दन दाबे |
बड़ा मार्मिक लेख, पोल अनवर ने खोली |
पढ़कर चेहरा-धर्म, फटे अब से बम गोली ||

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