For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

इसी रास्ते से गुजरते रहे हम

दुआ जानते थे सो करते रहे हम

 

अब आये कभी गम तो फिर देख लेंगे   

यही सोच कर बस संवरते  रहे हम

 

उठाते  बिठाते जगाते रहे है

मुकद्दर को झोली में भरते रहे हम

 

कोई है जो अन्दर, यही देखता है

कब उसकी निगाहों में गिरते रहे हम

 

समझ लें जो खुद को यही बस बहुत है

‘जो मैं हूँ’ , उसीसे तो डरते  रहे हम

 

मौलिक और अप्रकाशित 

Views: 396

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on August 11, 2013 at 10:43pm

कहन का कुछ अलहदा अंदाज़. बधाई कुबूल करें डॉक्टर साहब.

Comment by hemant sharma on August 7, 2013 at 9:43pm

बहुत सुन्दर गजल   बधाई ...

Comment by राज़ नवादवी on August 7, 2013 at 7:53pm

कोई है जो अन्दर, यही देखता है

कब उसकी निगाहों में गिरते रहे हम

 

समझ लें जो खुद को यही बस बहुत है

‘जो मैं हूँ’ , उसीसे तो डरते  रहे हम

- आदरणीय डॉक्टर साहेब, ये दो अशआर ख़ास तुअर पे अच्छे लगे! इरशाद! 

-

Comment by विजय मिश्र on August 7, 2013 at 12:31pm
अपनी नैतिकता के प्रति निष्ठा है जिनमें ,उन्हें इसीप्रकार सतत सतर्क रहना होता है और कुछ है अंदर ,जिन्हें भुगतना भी होता है . सुंदर रचना केलिए हार्दिक बधाई .

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by अरुण कुमार निगम on August 6, 2013 at 10:52pm

आदरणीय ललित कुमार सिंह जी, बढ़िया गज़ल के लिए बधाई.

अब आये कभी गम तो फिर देख लेंगे   

यही सोच कर बस संवरते  रहे हम

इस अश'आर पर खासतौर से दाद कबूल कीजिए...............वाह !!!!!!!!!!!!!!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Rana Pratap Singh on August 6, 2013 at 9:00pm

आदरणीय डा ० साहाब खोबसूरत ग़ज़ल के लिए दिल से दाद कबूलिये..मुन्दर्ज़ा अशआर बहुत पसंद आये

कोई है जो अन्दर, यही देखता है

कब उसकी निगाहों में गिरते रहे हम

 

समझ लें जो खुद को यही बस बहुत है

‘जो मैं हूँ’ , उसीसे तो डरते  रहे हम

यह शेर मुझे समझ में नहीं आया..आप क्या कहना चाहते हैं|

उठाते  बिठाते जगाते रहे है

मुकद्दर को झोली में भरते रहे हम

Comment by Shyam Narain Verma on August 6, 2013 at 4:36pm
बहुत ही सुन्दर! हार्दिक बधाई आपको!
Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on August 6, 2013 at 12:12pm

आदरणीय डा. ललित जी,

सुंदर रचना पर, हार्दिक बधाई

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"स्वागतम"
3 hours ago
धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

देवता चिल्लाने लगे हैं (कविता)

पहले देवता फुसफुसाते थेउनके अस्पष्ट स्वर कानों में नहीं, आत्मा में गूँजते थेवहाँ से रिसकर कभी…See More
5 hours ago
धर्मेन्द्र कुमार सिंह commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय,  मिथिलेश वामनकर जी एवं आदरणीय  लक्ष्मण धामी…"
6 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185

परम आत्मीय स्वजन, ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 185 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
Wednesday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, प्रस्तुति पर आपसे मिली शुभकामनाओं के लिए हार्दिक धन्यवाद ..  सादर"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

आदमी क्या आदमी को जानता है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२२ कर तरक्की जो सभा में बोलता है बाँध पाँवो को वही छिप रोकता है।। * देवता जिस को…See More
Tuesday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Monday
Sushil Sarna posted blog posts
Nov 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Nov 5
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
Nov 5

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Nov 2

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service