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सुंदर और उम्द्दा ख्यालात राकेश भाई , खुबसूरत और बेहतरीन अभिव्यक्ति है यह , बागपन साफ़ झलक रहा है | बधाई ...
देश के शहीदों को समर्पित खूबसूरत ग़ज़ल के लिए साधुवाद|
नवीन जी साधुवाद इस अप्रचलित पर सही प्रयोग के लिए. .
खुदा की है ये दस्तकारी मुहब्बत
जमीं पे है किसने उतारी मुहब्बत
उमड़ती घटाएं महकती फिजायें
किसी की तो है चित्रकारी मुहब्बत
तेरी सादगी गुनगुनाती है हर सू
मुहब्बत मुहब्बत हमारी मुहब्बत
तेरे गीत नगमें तेरी याद लेकर
तेरा नाम लेकर संवारी मुहबत
पनपने लगेंगे कई ख्वाब मिल के
जो पलकों में तूने उतारी मुहब्बत
मुहब्बत है सौदा दिलों का दिलों से
न मैं जीत पाया न हारी मुहब्बत
सुनाते हैं जो लैला मजनू के किस्से
वो कहते हैं कितनी हे प्यारी मुहब्बत
चली है जुबां पर मेरा नाम लेकर
वो नाज़ुक सि अल्हड कुंवारी मुहब्बत
बहुत शुक्रिया शेष धार जी हॉंसला अफज़ाई का ...
नवीन भाई ... डाका नही बल्कि मेरे शेर को चार चाँद लगा दिए हैं आपने ...
आदरणीय दिगम्बर साहिब,
इल्म-ए-अरूज़ और फन-ए-ग़ज़ल के साथ साथ क्या मुशायरा लूटने की भी तरबियत ले रखी है आपने कहीं से ? क्या पुरकशिश और पुरनूर आशार कहे हैं, मुशायरा रौशन कर दिया ! सादगी, खुशबयानी और रवानगी से मलबूस आपकी ग़ज़ल का एक एक शेअर दिल को छू लेने वाला है, जिसके लिए मैं दिल की गहराईओं से आपको मुबारकबाद देता हूँ ! मैंने खुद को बहुत रोका, बहुत रोका मगर आपकी दिलकश ग़ज़ल ने आपके सभी आशार पर अपनी नाचीज़ राय देने पर मुझे मजबूर कर दिया !
//खुदा की है ये दस्तकारी मुहब्बत / जमीं पे है किसने उतारी मुहब्बत //
किस सादगी से बात कह दी आपने, गिरह भी खूब बाँधी है - वाह वाह !
//उमड़ती घटाएं महकती फिजायें/किसी की तो है चित्रकारी मुहब्बत //
क्या कहने हैं इस ख्याल के भी - बहुत खूब !
//तेरी सादगी गुनगुनाती है हर सू/मुहब्बत मुहब्बत हमारी मुहब्बत //
वाह वाह वाह - क्या शिद्दत है मोहब्बत मोहब्बत में !
//तेरे गीत नगमें तेरी याद लेकर /तेरा नाम लेकर संवारी मुहबत //
सारा श्रेय किसी को दे देना ये ही तो मोहब्बत है - बहुत आला !
//पनपने लगेंगे कई ख्वाब मिल के/जो पलकों में तूने उतारी मुहब्बत //
अति सुन्दर ! लेकिन पहले मिसरे में ''ख्वाब मिल'' में "ख्वाब" के आखिर में साकिन व्यंजन "ब" और "मिल" के शुरू में साकिन "म" कि मौजूदगी से "ख्वाब मिल" का उच्चारण "ख्वाम्मिल" की तरह हो रहा है - यहाँ आपकी थोड़ी नज़र-ए-सानी दरकार है !
//मुहब्बत है सौदा दिलों का दिलों से/न मैं जीत पाया न हारी मुहब्बत //
एक शेअर में पूरी कहानी हो सकती है - ये तो देखा सुना था ! मगर एक शेयर के २ मिसरे २ कहानियां कह गए हों - ये आपके इस शेअर में ही देखा ! दोनों मिसरे अपने आप में किसी कथार्सिस से कम नहीं हैं - आफरीन दिगम्बर साहिब आफरीन !
//सुनाते हैं जो लैला मजनू के किस्से/वो कहते हैं कितनी हे प्यारी मुहब्बत //
बहुत खूब !
//चली है जुबां पर मेरा नाम लेकर /वो नाज़ुक सि अल्हड कुंवारी मुहब्बत //
हाय हाय हाय - क्या भोलापन और मासूमियत है इस शेअर में और क्या नाज़ुक खयाली है ! ये है तगज्जुल - जिंदाबाद !
योग राज जी ... आपने तो सातवें आसमान पर चड़ा दिया ... भाई ज़मीन पर ही रहने दें ... पता चला गिरने पर हड्डी पसली न टूट गयी ...आपकी जर्रानवाज़ी का शुक्रिया ... कामिल के दोष पर ध्यान दिलाने का भी शुक्रिया ...
वो नाज़ुक सि अल्हड कुंवारी मुहब्बत
सच में!! क्या बात है !!
सुंदर ग़ज़ल
शुक्रिया भास्कर जी ..
मैं तो इस शे’र पर फिदा हो गया
चली है जुबां पर मेरा नाम लेकर
वो नाज़ुक सि अल्हड कुंवारी मुहब्बत
बधाई
धर्मेन्द्र जी .. शेर आपको पसंद आया ... मेरा ग़ज़ल लिखना सार्थक हो गया ...
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