For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कार्यक्रम :- ओबीओ लखनऊ चैप्टर का उदघाटन एवं काव्य गोष्ठी

मुख्य अतिथि :- श्री डंडा लखनवी

अध्यक्ष :- श्री गणेश जी बागी

      साहित्य के साथ लगाव रखने के बावजूद सामान्य जीवन की आपाधापी में साहित्यिक गतिविधियों से दूरी सी ही बनी रहती है। बहुत प्रयासों के बावजूद साहित्यिक गोष्ठियों और आयोजनों में जाना न के बराबर ही रहा। ओबीओ पर आने के बाद से जहाँ रचनाकर्म में कुछ सार्थकता लाने का प्रयास हुआ, वहीं समय निकालकर ऐसे आयोजनों में सम्मिलित होने की प्रवृत्ति भी बढ़ी।

     एक दिन आदरणीय गणेश जी बागी ने मुझे बताया कि वे 18 मई को लखनऊ आ रहे है। उनका विचार था कि क्यों न हम लखनऊ और आस-पास के सदस्य एक साथ कहीं बैठें और एक-दूसरे को सुनें-सुनायें। यह विचार ही अपने आप में अद्भुत है। नेट की आभासी दुनिया में रोज एक-दूसरे की रचनाओं पर टिप्पणी करते, संवाद बनाते बहुत से लोग बहुत करीब लगने लगते हैं। ऐसे लोगों से साक्षात भेंट एक स्वप्न के साकार होने जैसा अनुभव देता है। मैं यह सुनहरा अवसर खोना नहीं चाहता था तो मैंने तुरत प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया।

      ओबीओ के सदस्यों में मैं उस समय तक केवल जी और प्रदीप जी से ही परिचित था, अतः  मैंने सर्वप्रथम इन्हीं दोनों को इसकी सूचना दी। आदरणीय प्रदीप जी ने एक बहुत ही सुंदर सुझाव दिया कि ओबीओ लखनऊ चैप्टर की शुरूआत कर ली जाए। आदरणीय बागी जी से इस संबंध में वार्ता की गयी और उनकी सहमति प्राप्त होते ही हम सब दोगुने उत्साह के साथ तैयारी में लग गए। 

      आयोजन में कितने लोग उपस्थित होंगे इसको लेकर शंका बनी हुई थी। केवल भाई ने राजभवन के सामने निर्माण भवन परिसर में स्थित डिप्लोमा इंजीनियर्स संघ के भवन में कक्ष संख्या 5 बुक कराया था। जब हम लोग उसे देखने गए तो हम लोगों को वह कमरा छोटा लगा। हमारे लिए यह विकट समस्या थी। काफी हाथ-पैर मारे गए लेकिन कुछ बेहतर समाधान न मिल सका।

     आखिर वह दिन भी आ गया। उत्साह और शंका के बीच झूलते मैं, केवल भाई व प्रदीप जी आयोजन स्थल पर पहुंचे। ‘होइहै वही जो राम रचि राखा’। वहां पहुंचने पर पता चला कि सभागार में संघ का कोई कार्यक्रम चल रहा है और हम लोगों ने जो कमरा बुक कराया था उसमें कोई साहब अपना सामान लॉक करके चले गए हैं। हमें तुरत दूसरा कमरा उपलब्ध कराया गया जो पहले वाले कमरे से बेहतर था। हम तीनों प्रसन्न थे। 

      दिनांक 18.05.2013 का दिन हमारे लिए एक नई अनुभूति लेकर आया। इस कार्यक्रम में श्री गोबर गणेश, श्री डंडा लखनवी, डा. तुकाराम वर्मा, श्रीमती अन्नपूर्णा बाजपेयी, श्री गणेश जी बागी, श्री आदित्य चतुर्वेदी, श्री बृजेश नीरज, श्री केवल प्रसाद, श्री प्रदीप सिंह कुशवाहा, मो. आरिफ, राजर्षि त्रिपाठी, श्री आशुतोष बाजपेयी, श्री संदीप मिश्र आदि उपस्थित हुए। हम लोगों ने जिनको आमंत्रित किया था उनमें कई लोग उस दिन विभिन्न कारणों से उपस्थित नहीं हो सके।

      इस कार्यक्रम में श्रीमती अन्नपूर्णा बाजपेयी की उपस्थिति अत्यंत महत्वपूर्ण रही क्योंकि वे कानपुर से चलकर सिर्फ इस आयोजन में शिरकत करने के लिए उस दिन लखनऊ आयी थीं जो उनके साहित्य और ओबीओ के प्रति लगाव का द्योतक है। हास्य-व्यंग्य के प्रसिद्ध कवि श्री डंडा लखनवी ने मुख्य अतिथि के रूप् में उपस्थित होने का हम लोगों के आग्रह को स्वीकार कर लिया था तथा डा. तुकाराम वर्मा जी ने अपनी तमाम व्यस्तताओं के बावजूद इस कार्यक्रम को पूरा समय दिया। 

     कार्यक्रम की तैयारी के दौरान ही लखनऊ के प्रसिद्ध हास्य कवि श्री आदित्य चतुर्वेदी से न केवल भेंट हुई वरन उनसे हमारा सान्निध्य भी बढ़ा। इस कार्यक्रम की तैयारी में उन्होंने पूरा समय व सहयोग दिया और ओबीओ की गतिविधियों से आकर्षित होकर उन्होंने इसकी सदस्यता भी ग्रहण की। अब हमारी तिकड़ी बढ़ कर चौकड़ी बन चुकी थी।

      उपस्थित लोगों के बीच वर्तमान साहित्यिक परिदृश्य पर गम्भीर चर्चा हुई। श्री गणेश जी बागी ने साहित्य के विकास में इंटरनेट की भूमिका पर प्रकाश डाला। श्री केवल प्रसाद ने उपस्थित लोगों को ओबीओ से परिचित कराते हुए उसकी सदस्यता तथा रचनायें पोस्ट करने के नियमों से अवगत कराया। इस अवसर पर डा. तुकाराम वर्मा ने रचनाकर्मियों को उपयोगी साहित्य के सृजन की सलाह दी। उनका कहना था कि वही साहित्य समचीन व उपयोगी माना जाता है जो देश व समाज के उत्थान की बात करता हो। श्री डंडा लखनवी ने साहित्यिक विधाओं की उपयोगिता पर कहा कि किसी भी विधा में रचना करते समय उसके नियमों को पूर्ण पालन किया जाना चाहिए। उनका कहना था कि केवल लकीर पीटने से काम नहीं चलने वाला बल्कि साहित्य की परंपरा को सवंर्द्धित व विकसित करने की आवश्यकता है।

     इसके उपरान्त काव्य गोष्ठी प्रारम्भ हुई। काव्य गोष्ठी का आरंभ श्री गोबर गणेश की रचनाओं से हुआ। उन्होंने वर्तमान परिस्थितियों पर कटाक्ष करती हुई अपनी चुटीली रचनायें सुनायीं-

‘खेल में भी अब खेल होने लग गया

क्रिकेट के पिच पर भी भ्रष्टाचार होने लग गया

चैके छक्के पर अब ताली कौन बजाए क्योंकि

खिलाड़ी भी सट्टेबाजों के हाथों की कठपुतली बन गया’

श्रीमती अन्नपूर्णा बाजपेयी ने ओबीओ के इस आयोजन में वरिष्ठ रचनाकारों की उपस्थिति पर धन्यवाद व्यक्त करते हुए अपनी रचना सुनायी-

‘सौभाग्य ये हमारा है

आज आपका साथ पाया है

मिलते रहें यूं ही सदा

बगिया फलती फूलती रहे सदा।‘

उनकी रचनाओं में जहां नारी की पीड़ा साफ झलकती थी वहीं वर्तमान सामाजिक व्यवस्था से उत्पन्न दर्द भी स्पष्ट परिलक्षित हो रहा था।

मो. आरिफ ने जहाँ अपनी गज़ल से श्रोताओं का मन मोह लिया वहीं मैंने भी अपनी अतुकांत कविताओं से योगदान दिया।

       इस पूरे आयोजन व उसकी तैयारी के दौरान श्री प्रदीप सिंह कुशवाहा का उत्साह देखते ही बनता था।

      बहुत अच्छा स्वास्थ्य न होने के बावजूद उन्होंने अपनी सक्रियता और उत्साह में कोई कमी नहीं आने दी। उन्होंने मूँछ की महिमा बखान करते हुए अपनी रचना सुनायी-

‘मूँछ की भी अजब कहानी 

खिले आनन दिखे  जवानी

कद लम्बा और चौड़ा सीना 

पहने उस पर कुरता झीना 

चलता  राह रोबीली चाल 

काला टीका औ उन्नत भाल 

कभी तलवार कभी मक्खी कट 

छोटी बड़ी कभी सफा चट’

 

और फिर उनकी काव्य सरिता जो बही तो पूरे वेग के साथ बही और सारे तटबंधों को भेदती बहुत देर बाद जाकर रूकी।

 

श्री राजर्षि त्रिपाठी ने अपनी रचना के माध्यम से वर्तमान व्यवस्था पर सटीक कटाक्ष किया-

‘उन्होंने लूट ली अस्मत खुलेआम क्या करे

वो चीखती चिल्लाती सरेआम क्या करे

श्री केवल प्रसाद ने ‘लखनऊ’ का बखान कुछ इन शब्दों में किया -

‘जन्नत सा खुशनुमा ये लखनऊ है हमारा

ये चमन है हमारा

हम सुमन हैं वतन के

ये गोमती सुनहरी

मंगल करे हमारा’

डा. आशुतोष बाजपेयी ने अपने सनातनी छंदों से श्रोताओं का मन जीत लिया। उनके द्वारा किए गए छंदों के सस्वर पाठ ने कार्यक्रम को पूरे शबाब पर पहुंचा दिया। अपनी प्रस्तुति का प्रारम्भ उन्होंने प्रभु के आहवाहन से किया।

‘यह भक्त पुकार रहा तुमको सुन लो विनती यह है मन से 
कुछ और परीक्षण नाथ न हो न निराश करो इस जीवन से 
नित गर्व किया करता तुमपे कि दयामय हो शुचि कन्चन से 
तव पूजन वन्दन चन्दन से प्रभु मुक्त करो इस बन्धन से’

 

श्री आदित्य चतुर्वेदी ने राजनैतिक व्यवस्था पर भरपूर चोट किया. उनकी व्यंग्य की धार कुछ यों बही -

‘एक माफिया राजनीति से

बाहर आया

पूछने पर बताया

राजनैतिक क्रियाकलापों से

इस कदर ऊब गया

भ्रष्टाचार की नैया मैं भी

पार कर लेता

मगर क्या बताऊं

किनारे ही डूब गया।‘

उनकी रचनाओं में हास्य के पुट के साथ व्यंग्य की अत्यंत तीखी धार देखने को मिली।

वहीं श्री डंडा लखनवी जी का कहना था कि, 

‘हास्य व्यंग्य खिचड़ी नहीं, भैया रेडीमेड

हास्य विटामिन जानिए, व्यंग्य सर्जिकल ब्लेड।‘

उनकी रचनाओं ने जहां सामाजिक व्यवस्था पर चोट की वहीं कुछ सीख भी देती गयीं।

डा0 तुकाराम वर्मा ने छंद के रस से श्रोताओं को सराबोर कर दिया। वहीं अपने गीत की फुहारों से श्रोताओं को भिगोया-

‘अपने पर जो किए भरोसा, वही जगत के नूर बने

उनके क्रियाकलाप निराले, सामाजिक दस्तूर बने।‘

श्री गणेश जी बागी के छंदों और नवगीत से जहां श्रोता मंत्रमुग्ध हुए-

‘सुनो परमेश्वर मेरे, अरज इतनी हमारी है

कभी जाना न मधुशाला, यही विनती हमारी है’

वहीं उनके भोजपुरी गीतों और गज़लों से माहौल रसमय हो गया-

‘भईल बियाह कमात नईखs काहे,
घरही में रहेलs लजात नईखs काहे,

तीज के त्यौहार बा नया लुगा चाही,
सोहाग सिंगार कईसे मेहंदी लगाईं,
दोसरो के देख शौकियात नईखs काहे,
भईल बियाह कमात नईखs काहे’

      यह कार्यक्रम कई मायनों में सार्थक रहा। एक तरफ जहां आभासी दुनिया से निकलकर हम ओबीओ के कई साथी पहली बार आपस में मिले वहीं इस आयोजन के बहाने कई नए साथी भी मिले। कई वरिष्ठ साहित्यकारों का आशीष प्राप्त हुआ।

      लखनऊ की धरती पर ओबीओ ने दस्तक दी है जिसकी अनुगूंज बहुत दूर तक सुनायी देगी।

***********************************************

Views: 4079

Reply to This

Replies to This Discussion

फेसबुक पर एक समूह है काव्यालय। मैंने इस रिपोर्ट को फेसबुक पर अपने प्रोफाइल व कई साहित्यिक समूहों पर लिंक किया था। काव्यालय पर इस रिपोर्ट को जो प्रतिक्रिया प्राप्त हुई वह उत्साहवर्धक है। कई नए व्यक्ति अगले आयोजन में सम्मिलित होने की इच्छा व्यक्त कर चुके हैं।

प्रिय ब्रजेश जी 

सस्नेह 

आपके प्रयासों को बधाई 

आदरणीय बृजेश जी  सादर,  सर्वप्रथम लखनऊ चैपटर के लिए ढेरो शुभ कामनाओं सहित सजीव और सुन्दर रिपोर्ट साझा करने के लिए बहुत बहुत हार्दिक बधाई.

 

आदरणीय आपका हार्दिक आभार!

आदरणीय सिंह साहब जी 

सादर आभार स्नेह हेतु. 

आदर्णिय बृजेश जी ,नमस्कार , अभी अभी मैंने लखनऊ चेप्टर की रिपोर्ट पढ़ी . बहुत अफ़सोस हो रहा है कि ह्मारे ही आंगन में इतना सफ़ल आयोजन

हो गया और हम ही भाग न ले सके . ........लेकिन मुझे बहुत खुशी भी हो रही है कि भविष्य में भी ऐसा आयोजन होता रहेगा और हमें बड़े गुरूजनों से बहुत कुछ सिखने का मौका मिलेगा .

आप सभी को मेरी और डाक्टर शरदिंदु जी की तरफ़ से इस सफ़ल आयोजन के लिये हार्दिक बधाई .

शुभ्कामनाएँ सहित

कुंती .

आदरणीया कुंती जी आपका आभार!
इस बात का दुख हम लोगों को भी रहा कि आप दोनों इस आयोजन में उपस्थित नहीं हो सके। काव्य गोष्ठियों का आयोजन हर माह होगा। आशा है उन आयोजनों में आप लोगों की उपस्थिति से हम लाभान्वित हो सकेंगे।
जून माह का आयोजन शीध्र ही आयोजित किया जाना है। आयोजन स्थल तय होती ही इसकी सूचना आपको प्रेषित की जाएगी।
सादर!

आदरणीय, उत्तराखण्ड की यात्रा से वापस आकर आपका रिपोर्ट पढ़कर मन प्रफुल्लित हो गया. इसी यात्रा के कारण लखनऊ वासी होते हुए भी उक्त कार्यक्रम में भाग नहीं ले सका...यह एक विडम्बना है. लेकिन इसी यात्रा के कारण हिमालय की गहन प्रशांति के साथ ही आदरणीया डॉ प्राची जी से मिलने का सौभाग्य भी हुआ...यह हमारी ( मेरी और कुंती की ) प्राप्ति भी है. ओ.बी.ओ. के लखनऊ  चैप्टर की ज्योति से दिग्विदिक आलोकित होता रहे ऐसी मेरी प्रार्थना है. आप सब महानुभावों का आभार कि दारुण जेठ में भी आपने साहित्य की निर्मल शीतल धारा से लखनऊवासियों को स्नान कराया. सादर.

आदरणीय शरदेन्दु जी आपका हार्दिक आभार! आगामी आयोजन में आपकी उपस्थिति प्रार्थनीय है।

शुभकामनायें-

आदरणीय आपका आशीष मिलना हमारे लिए सौभाग्य की बात है!

आदरणीय नीरज जी , नमस्कार

अभी मैंने लखनऊ में आयोजित काव्य समारोह की रिपोर्ट पढ़ी ./ बहुत ही रोचक समारोह का चित्रण हुआ है / समारोह में उपस्थित सभी कविगण को मेरी बहुत -२ बधाइयाँ/

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"आदरणीय गिरिराज जी इस बह्र की ग़ज़लें बहुत नहीं पढ़ी हैं और लिख पाना तो दूर की कौड़ी है। बहुत ही अच्छी…"
4 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहते हो बात रोज ही आँखें तरेर कर-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. धामी जी ग़ज़ल अच्छी लगी और रदीफ़ तो कमल है...."
4 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"वाह आ. नीलेश जी बहुत ही खूब ग़ज़ल हुई...."
4 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आदरणीय धामी जी सादर नमन करते हुए कहना चाहता हूँ कि रीत तो कृष्ण ने ही चलायी है। प्रेमी या तो…"
5 hours ago
बृजेश कुमार 'ब्रज' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आदरणीय अजय जी सर्वप्रथम देर से आने के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ।  मनुष्य द्वारा निर्मित, संसार…"
5 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"आदरणीय जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय । हो सकता आपको लगता है मगर मैं अपने भाव…"
20 hours ago
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"अच्छे कहे जा सकते हैं, दोहे.किन्तु, पहला दोहा, अर्थ- भाव के साथ ही अन्याय कर रहा है।"
23 hours ago
Aazi Tamaam posted a blog post

तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या

२१२२ २१२२ २१२२ २१२इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्यावैसे भी इस गुफ़्तगू से ज़ख़्म भर…See More
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"परम् आदरणीय सौरभ पांडे जी सदर प्रणाम! आपका मार्गदर्शन मेरे लिए संजीवनी समान है। हार्दिक आभार।"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . . . विविध

दोहा सप्तक. . . . विविधमुश्किल है पहचानना, जीवन के सोपान ।मंजिल हर सोपान की, केवल है  अवसान…See More
Tuesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"ऐसी कविताओं के लिए लघु कविता की संज्ञा पहली बार सुन रहा हूँ। अलबत्ता विभिन्न नामों से ऐसी कविताएँ…"
Tuesday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

छन्न पकैया (सार छंद)

छन्न पकैया (सार छंद)-----------------------------छन्न पकैया - छन्न पकैया, तीन रंग का झंडा।लहराता अब…See More
Tuesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service