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सुंदरी सवैया - बहादुर मुनिया चुहिया / कुमार गौरव अजीतेन्दु

मुनिया चुहिया सब से मिल के रहती, करती न कभी मनमानी।

वन के पशु भी खुश थे उससे, कहते - "हम बालक हैं, तुम नानी"।
मुनिया इक रोज उठी सुबहे गुझिया व पनीर पुलाव बनाने।
कुछ दोस्त सियार, कँगारु, गधे जुट आय वहाँ पर दावत खाने

चिपु एक बिलाव बड़ा बदमाश, तभी गुजरा मुँह पान चबाते।
पकवान पके समझा जब वो, ठिठका झट लार वहाँ टपकाते।।
मुँह ढाँप घुसा वह पैर दबा छुप के घर में तरमाल चुराने।
मुनिया सहसा पहुँची जब तो चिपु दाँत निकाल लगा डरवाने॥

मुनिया दिखलाकर साहस दौड़ गई, झट बेलन हाथ उठाया।
कस के कुछ बेलन दे चिपु के सिर पे उसको तब मार भगाया।
जब दोस्त जुटे घर में, मुनिया हँस के सबको यह बात बताई।
सुन बात, सभी मिल खूब हँसे कर के उसकी भरपूर बड़ाई॥

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भाई अजीतेन्दुजी, आपका निर्विवाद रचनारत रहना आपकी विशिष्टता है. सुन्दरी सवैया पर आपने इतनी सुन्दर बाल-कविता लिखी है कि इसे बच्चों ही नहीं हर उसको पढ़ना चाहिये जो रचनाकर्म को मात्र भावुक शब्दों का जमावड़ा बना आपबीती थोपने पर आमादा रहता है. यह सही है कि हार्दिक भावनाओं का संप्रेषण ही रचनाकर्म का उत्स है. परन्तु, यह भी सही है कि लेखनकर्म सामाजिक दायित्व के निर्वहन का ही दूसरा नाम है.

छंद के कथ्य की सरसता तो देखते ही बनती है. भाव निखर कर बाहर आये हैं. हर पद में आपका प्रयास दीखता है. 

बाल-रचनाओं की कसौटियों पर हर तरह से खरी उतरती इस छंदबद्ध रचना पर आपको मेरी अतिशय बधाइयाँ तथा हार्दिक शुभकामनाएँ. 

यह सही है कि सवैया वृत के चारों पद समतुकांत होते हैं. जबकि आपने एक छंद के दो-दो पदों का समतुकांत किया है.  परन्तु, यह प्रयोग मेरी समझ में हर तरह से स्वीकार्य है. यह स्पष्ट है कि इस प्रयोग के कारण सवैया के मूलभूत शिल्पगत नियमों का न तो कहीं उल्लंघन होता है, न ही गणों की अवृतियों के साथ कहीं खिलवाड़ हुआ है.

एक बात :

आपके दो पदों में कथ्य-संप्रेषणीयता और वाक्य-संयोजन के परिप्रेक्ष्य में हमने कुछ सुधार की गुंजाइश देखी है. विश्वास है आप इस ओर ध्यान देंगे.

कुछ दोस्त सियार, कँगारु, गधे जुटते उसके घर दावत खाने  = कुछ दोस्त सियार, कँगारु, गधे जुट आय वहाँ पर दावत खाने

पकवान पके समझा जब वो, ठिठका तब लार बड़ी टपकाते   = पकवान पके समझा जब वो, ठिठका झट लार वहाँ टपकाते

इस बाल-कविता (छंद-रचना) पर आपको हृदय से पुनः धन्यवाद और खूब-खूब बधाइयाँ.

शुभेच्छाएँ.. .

आदरणीय गुरुदेव, शाबासी देता हुआ आपका हाथ अपनी पीठ पर महसूस कर रहा हूँ। आपका कहा एक-एक शब्द पारितोषिक सा प्रतीत हो रहा है।

जो मन में आता है लिख देता हूँ। ये तो आपका मेरे प्रति स्नेह है कि आप उसके विविध रंगों को अपनी प्रतिक्रियाओं के माध्यम से व्यक्त कर मुझे अभिभूत कर देते हैं। मेरी रचनाओं की आपके द्वारा की गई विवेचना हमेशा मुझे गर्व का अनुभव करा जाती है। इस रचना के शिल्प को लेकर जो थोड़े-बहुत संशय मन में थे, आपने उनका सहज ही निराकरण कर दिया। आपने यहाँ जो सुझाव दिए, निश्चित रूप से वो रचना के सौंदर्य में वृद्धि कर रहे हैं। उनका रस बढ़ा रहे हैं।

पिछली बाल रचना जो मैंने "मत्तगयन्द सवैया" के रूप में प्रस्तुत की थी, उसके मुकाबले इस "सुन्दरी सवैया" को लिखना अधिक कठिन रहा। आपने प्रोत्साहन देकर मेरी मेहनत को सार्थक कर दिया। आपका ह्रदय से आभारी हूँ। बहुत-बहुत धन्यवाद.......

वाह वाह कुमार गौरव जी ..... 

टॉम एंड जैरी इन सुन्दरी सवैया ............  :))))

क्या खूब नटखट चूहे बिल्ली का प्यारा सा शब्द चित्र उकेरा है...मज़ा आ गया.

आपके नए नए प्रयोग और बाल साहित्य में निरंतर कुछ नया पेश करना मुझे बहुत पसंद आता है... 

इस बहुत सुन्दर प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई और ढेर सारी शुभकामनाएँ 

आदरणीया प्राची दीदी, आपको बाल रचना पर मेरा ये प्रयास पसंद आया...........जानकर बहुत खुशी हुई..........आपका हा्र्दिक आभार.......

स्नेही कुमार जी 

सादर 

आपकी रचना पर मोहर लग चुकी है. बधाई. 

धन्यवाद काकाश्री...............

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