For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

ग़ज़ल : इश्क जब इम्तेहान लेता है

मिसरों का वज़्न : २१२२ १२१२ २२ (११२२ १२१२ २२ की छूट ली जा सकती है)

---------------------------------------- 

अच्छे अच्छों की जान लेता है

इश्क जब इम्तेहान लेता है

 

बात सबकी जो मान लेता है

छोड़ सबकुछ मसान लेता है

 

वही जीता है इस नगर में जो

बेचकर घर दुकान लेता है

 

फन वो देता है जिसको भी सच्चा

पहले उसका गुमान लेता है

 

ये निशानी है खोखलेपन की

खुद को खुद ही बखान लेता है

 

जब भी लगता है रोग पैसों का

सबसे पहले थकान लेता है

---------------------------------------

(स्वरचित एवं अप्रकाशित)

Views: 635

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 25, 2013 at 7:33pm

शुक्रिया rajesh kumari जी, स्नेह बना रहे

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 25, 2013 at 7:33pm

शुक्रिया बृजेश कुमार सिंह जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 25, 2013 at 7:33pm

शुक्रिया अरुन शर्मा 'अनन्त' जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 14, 2013 at 6:58pm

बहुत बहुत धन्यवाद संदीप साहब

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 14, 2013 at 6:57pm

बहुत बहुत धन्यवाद विन्ध्येश्वरी जी,

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 14, 2013 at 6:56pm

बहुत बहुत धन्यवाद केवल साहब। यहाँ मेरा अर्थ था कि यदि आप सबकी बात मानकर कुछ खरीदने जायेंगे तो श्मशान ही खरीदना पड़ेगा इसलिए अपना दिमाग लगाना बहुत आवश्यक है। अर्थ आप तक नहीं पहुँचा इसके लिए क्षमा करें।

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 14, 2013 at 6:54pm

बहुत बहुत शुक्रिया बागी जी, मसान से मेरा अर्थ श्मसान ही है। इस विस्तृत टिप्पणी के लिए बहुत बहुत धन्यवाद स्नेह बना रहे।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 13, 2013 at 7:15pm

बढ़िया ग़ज़ल लिखी है धर्मेन्द्र जी दाद कबूलें 

Comment by बृजेश नीरज on April 12, 2013 at 7:12pm

बहुत सुन्दर रचना!

Comment by अरुन 'अनन्त' on April 12, 2013 at 5:13pm

मस्त मस्त मस्त मस्त भाई जी लाजवाब सुन्दर छोटी बहर में कहर बरपा दिया आपने, सभी के सभी अशआर लाजवाब है पर खास इनके वास्ते कुछ ज्यादा दाद कुबूल फरमाएं.

अच्छे अच्छों की जान लेता है .... वाह जी वाह क्या मतला हुआ है

इश्क जब इम्तेहान लेता है

 

ये निशानी है खोखलेपन की

खुद को खुद ही बखान लेता है

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 167 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है ।इस बार का…See More
5 hours ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"यूॅं छू ले आसमाॅं (लघुकथा): "तुम हर रोज़ रिश्तेदार और रिश्ते-नातों का रोना रोते हो? कितनी बार…"
Apr 30
Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-109 (सियासत)
"स्वागतम"
Apr 29
Vikram Motegi is now a member of Open Books Online
Apr 28
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .पुष्प - अलि

दोहा पंचक. . . . पुष्प -अलिगंध चुराने आ गए, कलियों के चितचोर । कली -कली से प्रेम की, अलिकुल बाँधे…See More
Apr 28
अमीरुद्दीन 'अमीर' बाग़पतवी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय दयाराम मेठानी जी आदाब, ग़ज़ल पर आपकी आमद और हौसला अफ़ज़ाई का तह-ए-दिल से शुक्रिया।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दयाराम जी, सादर आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई संजय जी हार्दिक आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। गजल की प्रशंसा के लिए आभार।"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. रिचा जी, हार्दिक धन्यवाद"
Apr 27
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आ. भाई दिनेश जी, सादर आभार।"
Apr 27
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-166
"आदरणीय रिचा यादव जी, पोस्ट पर कमेंट के लिए हार्दिक आभार।"
Apr 27

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service