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हम कहीं भी महफ़ूज नहीं है

वो कभी भी, कहीं भी, हमारी हत्या कर सकते हैं

हम इंसान हैं

वो आतंकवादी

 

पर वो नहीं जानते

कि हम पर चलाई गई हर गोली

उनके धर्म की छाती में जाकर धँसती है

 

हम फिर पैदा हो जायेगें

सौ मरेंगे तो हजार और पैदा हो जायेंगे

 

पर उनका धर्म एक बार मर गया

तो हमेशा हमेशा के लिए खत्म हो जायेगा

 

धर्म जान लेने या देने से नहीं

जान बचाने से फैलता है

 

और ख़ुदा, भगवान, जीसस, वाहेगुरू

किसी भी धर्म को

इस धरती पर दूसरा मौका नहीं देते 

--------------------

(स्वरचित एवं अप्रकाशित)

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Comment

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Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on April 25, 2013 at 7:32pm

आदरणीय Yogi Saraswat जी, ram shiromani pathak जी, vijay nikore जी, SANDEEP KUMAR PATEL जी, Kewal Prasad जी, rajesh kumari जी, Ashok Kumar Raktale जी, आप सबने इस रचना को पढ़ा और सराहा इसके लिए आप सबका आभारी हूँ।

Comment by Ashok Kumar Raktale on April 18, 2013 at 8:08am

पर उनका धर्म एक बार मर गया

तो हमेशा हमेशा के लिए खत्म हो जायेगा

 

धर्म जान लेने या देने से नहीं

जान बचाने से फैलता है..............बिलकुल सही कहा है.

आदरणीय धर्मेन्द्र जी सादर,  बहुत अच्छी नसीहत दी है. उत्तम रचना के लिये हार्दिक बधाई स्वीकारें.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on April 17, 2013 at 8:20pm

धर्मेन्द्र जी आज आपकी रचना का मिजाज कुछ अलग ही है दिल की गहराइयों से निकले शब्द पन्नो पे उतर आये हैं बहुत ही अच्छी बाते लिखी हैं हार्दिक बधाई पर इन हत्यारों का ना कोई धर्म ना कोई जमीर होता है इनका हिसाब बस भगवान् की अदालत में ही होता होगा । 

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 17, 2013 at 6:22pm

आदरणीय, धर्मेद्र कुमार सिंह जी,
’और ख़ुदा, भगवान, जीसस, वाहेगुरू
किसी भी धर्म को
इस धरती पर दूसरा मौका नहीं देते ’दहशतगर्दों का कोई मजहब नहीं होता है। अच्छी रचना । बधाई स्वीकारें। सादर,

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on April 17, 2013 at 5:15pm
बहुत सुन्दर सर जी
काश ये बात जान लेने वाले समझ पाते
बहुत बहुत बधाई हो आपको इस सुन्दर रचना हेतु
सादर प्रणाम
Comment by vijay nikore on April 17, 2013 at 1:53pm

आदरणीय धर्मेन्द्र जी:

 

बहुत अच्छे, सच्चाई से भरपूर ज़ोरदार भाव हैं।

बधाई।

 

सादर,

विजय निकोर

Comment by ram shiromani pathak on April 17, 2013 at 12:18pm

 आदरणीय बहुत सुन्दर रचना बन पड़ी है!हार्दिक बधाई 

Comment by Yogi Saraswat on April 17, 2013 at 12:13pm

धर्म जान लेने या देने से नहीं

जान बचाने से फैलता है

 

और ख़ुदा, भगवान, जीसस, वाहेगुरू

किसी भी धर्म को

इस धरती पर दूसरा मौका नहीं देते

बहुत बढ़िया ! सुन्दर सन्देश देती हुई रचना

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