For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

प्यार में शर्त-ए-वफ़ा पागलपन

प्यार में शर्त-ए-वफ़ा पागलपन
मुद्दतों हमने किया, पागलपन

हमने आवाज़ उठाई हक की
जबकि लोगों ने कहा, पागलपन

जाने वालों को सदा देने से
सोच क्या तुझको मिला, पागलपन

लोग सच्चाई से कतरा के गए
मुझ पे ही टूट पड़ा, पागलपन

जब भी देखा कभी मुड़ कर पीछे
अपना माज़ी ही लगा, पागलपन

खो गए वस्ल के लम्हे "श्रद्धा"
मूंद मत आँख, ये क्या पागलपन

Views: 696

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by aleem azmi on December 9, 2010 at 5:54pm
bahut umda jiti tareef karu kam hai
Comment by Bhasker Agrawal on December 8, 2010 at 3:52pm
wese प्यार में शर्त-ए-वफ़ा पागलपन hai..sach hai ye
Comment by Bhasker Agrawal on December 8, 2010 at 3:50pm
dil choone wali kavita !!
Comment by Abhinav Arun on December 6, 2010 at 1:18pm
वाह श्रद्धा जी बहुत खूब ! यूं ही लिखते रहिये |कमेन्ट के लिए लिंक का इस्तेमाल कर सकती हैं |आपकी अगली रचनाओं की प्रतीक्षा है |
Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on November 20, 2010 at 5:10pm
श्रद्धा जी ‘बागी’ भाई ने मौका देखकर चौका मार दिया है। अब मेरे लिखने के लिए कुछ नहीं बचा। चलिए कोई नहीं।
Comment by Shrddha on November 20, 2010 at 11:56am
Main abhi nayi hun to samjhne ki koshish mein hun .. koi mujhe samjhaaye ki yahan comment ka reply kaise karun ? photo kaise judun

Dharmendra ji guru banegen kya ?
Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on November 20, 2010 at 12:33am
जहाँ जा रहा हूँ
तुम्हें पा रहा हूँ

ये मैं सो रहा हूँ
या जग सा रहा हूँ

तुम्हें पढ़ रहा या
शहद खा रहा हूँ

अमर लेखनी की
ग़ज़ल गा रहा हूँ

हुँ इतने नशे में
नशा खा रहा हूँ
Comment by Dr. Umeshwar Shrivastava on November 19, 2010 at 9:15pm
वाह श्रद्धा जी ! देखन में छोटे लगे घाव करे गंभीर!
Comment by Mazhar Masood on November 19, 2010 at 9:09pm
बहुत अछी कोशिश है आप की ,उम्मीद है आगे भी आप हम लोगों को अपने कलाम से नवाजें गी
Comment by Hilal Badayuni on November 19, 2010 at 7:21pm
हमने आवाज़ उठाई हक की
जबकि लोगों ने कहा, पागलपन
bahhut khoob shraddha ji

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आ. रचना बहन, तर की बंदिश नहीं हो रही। एक तर और दूसरा थर है।"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आ. भाई अमित जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल से मंच का शुभारम्भ करने के लिए बहुत बहुत बधाई।"
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"कर्म किस्मत का भले खोद के बंजर निकला पर वही दुख का ही भण्डार भयंकर निकला।१। * बह गयी मन से गिले…"
4 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आदरणीय चेतन जी नमस्कार बहुत अच्छा प्रयास तहरी ग़ज़ल का किया आपने बधाई स्वीकार कीजिये अमित जी की…"
4 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आदरणीय संजय जी नमस्कार बहुत ही ख़ूब ग़ज़ल कही आपने बधाई स्वीकार कीजिये एक से एक हुए सभी अशआर और गिरह…"
4 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आदरणीय अमित जी नमस्कार बेहतरीन ग़ज़ल हुई आपकी बधाई स्वीकार कीजिये मक़्ता गिरह ख़ूब, हर शेर क़ाबिले तारीफ़…"
4 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"2122 1122 1122 22/112 घर से मेले के लिए कौन यूँ सजकर निकलाअपनी चुन्नी में लिए सैकड़ों अख़्तर निकला…"
4 hours ago
Rachna Bhatia replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, तरही ग़ज़ल कहने के लिए हार्दिक बधाई।"
4 hours ago
Rachna Bhatia replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"वाह वाह, आदरणीय संजय शुक्ला जी लाजवाब ग़ज़ल कही आपने। हार्दिक बधाई।"
4 hours ago
Rachna Bhatia replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आदरणीय यूफोनिक अमित जी, बेहतरीन ग़ज़ल कहने के लिए हार्दिक बधाई। आदरणीय, केवल संज्ञान…"
4 hours ago
Rachna Bhatia replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"2122 1122 1122 22 /112 1 जिसकी क़िस्मत में शनि राहु का चक्कर निकला  उसके अल्फ़ाज़ में शर…"
4 hours ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"बहुत बहुत शुक्रिय: आदरणीय नादिर ख़ान भाई"
5 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service