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शादी से पहले – शादी के बाद

प्रो. सरन घई, संपादक – “प्रयास”, संस्थापक, विश्व हिंदी संस्थान, कनाडा

 

शादी से पहले हमको कहते थे सब आवारा,

शादी हुई तो वो ही कहने लगे बेचारा।

 

कुछ हाल यों हुआ है शादी के बाद मेरा,

जैसे गिरा फ़लक से टूटा हुआ सितारा।

 

सब लोग पूछते हैं दिखता हूँ क्यों दुखी मैं,

कैसे बताऊँ उनको, बीवी ने फिर है मारा।

 

शादी हुई है जब से, तब से ये हाल मेरा,

जिस ओर खेता नैया, खो जाता वो किनारा।

 

फिरता था तितलियों में भंवरा बना चमन में,

अब ना वो तितलियाँ हैं, ना बाग ना बहारा।

 

कभी पीटती कड़्छुल से, कभी पीटती बेलन से,

कभी हाथ से पकड़ के, कभी खींच कर के मारा।

 

कभी झाड़ुओं से पीटा, कभी झाड़ियों में पीटा,

कभी इधर आ के मारा, कभी उधर जा के मारा।

 

तकदीर वाले हैं वो जो घर में पिट रहे हैं,

हमको तो हमारी ने, सड़को-सड़क है मारा।

 

ये दासतां ’सरन’ की कुछ भी नयी नहीं है,

हर मर्द मार खाता, कह पाता ना बिचारा।

 

अब धीरे-धीरे तेवर उनके बदल रहे हैं,

लगने लगा है उनको, बिगड़ूँगा ना दोबारा।

 

क्या हाल ये हुआ है, सब लोग पूछते हैं,

खुद ही सुधर गये हो या बीवी ने सुधारा?

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Comment

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 12, 2013 at 12:44am

आदरणीय सरन घईजी, आपकी कथ्यात्मकता तो भाई ग़ज़ब की है ! .. वाह !  सही कहिये भाईजी, मजा आ गया .

सुधीजनों की सलाहों पर अवश्य ध्यान दीजियेगा.

सादर 

Comment by Ashok Kumar Raktale on April 4, 2013 at 9:14pm

ये दासतां ’सरन’ की कुछ भी नयी नहीं है,

हर मर्द मार खाता, कह पाता ना बिचारा।.......... हम तो डूबे सनम... तुमको भी ले डूबेंगे.....

आदरणीय सरन घई जी सादर बहुत सुन्दर हास्य प्रस्तुत करती रचना. हार्दिक बधाई स्वीकारें.

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on April 4, 2013 at 3:49pm

वाह वाह आदरणीय सर जी वाह
क्या हास्य पिरोया है आपने
थोडा और संयत किया होता तो बढ़िया मज़ाहिया ग़ज़ल हो जाती
बहरहाल बहुत बहुत बधाई आपको

Comment by coontee mukerji on April 4, 2013 at 2:35pm

प्रो सरन जी , आप बहुत बहादुर है . आपका साहस सराहनीय है.वैसे इस रचना में एक छुपा सन्देश भी है.मनोरंजक भी है. बहुत बहुत

बधाई

Comment by विजय मिश्र on April 4, 2013 at 1:45pm

शरण जी , सुंदर सरल शब्दों में सजी कविता मगर इतनी प्रतारणा के बाद शरणागत हुए ,अच्छा होता पहले ही पतिधर्म का पाठ पढ़ लेते मेरी तरह ,इतनी दुर्दशा तो न होती . बधाई स्वीकारे इस सरस कविता केलिए .


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on April 4, 2013 at 12:54pm

आदरणीय प्रो० सरन घई जी,

पत्नी द्वारा सुधार के लिए सताए जाने का सुन्दर वर्णन किया है...मजेदार रोचक हास्य है.

अब धीरे-धीरे तेवर उनके बदल रहे हैं,

लगने लगा है उनको, बिगड़ूँगा ना दोबारा।.........फिर तो चिंता की बात नहीं है, अब -हाहाहा 

 

क्या हाल ये हुआ है, सब लोग पूछते हैं,

खुद ही सुधर गये हो या बीवी ने सुधारा?..............हाहाहा 

शिल्पगत सुधार की थोड़ी सी आवश्यकता महसूस हुई. मात्रा गणना के अनुसार साधेंगे तो रचना निखर उठेगी.

सादर 

Comment by ram shiromani pathak on April 4, 2013 at 11:40am

आदरणीय, प्रो0शरण घई जी,  सुप्रभात!  सुन्दर प्रयास हास्य रंग लाई है।  सादर,


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 4, 2013 at 11:29am

हास्य तड़का के साथ प्रस्तुत रचना अच्छी लगी, कथ्य और भाव भी ठीक ठाक हैं, शिल्प पर और समय देने की आवश्यकता जान पड़ती है । 

इस प्रस्तुति पर हार्दिक बधाई आदरणीय सरन साहब । 

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on April 4, 2013 at 10:37am

आदरणीय, प्रो0शरण घई जी,  सुप्रभात!  सुन्दर प्रयास हास्य रंग लाई है।  सादर,

कृपया ध्यान दे...

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