परम आत्मीय स्वजन,
"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" के 33 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का तरही मिसरा जनाब अकबर इलाहाबादी की गज़ल से लिया गया है |
अवधि : 23 मार्च दिन शनिवार से दिनांक 25 मार्च दिन सोमवार तक
अति आवश्यक सूचना :-
मुशायरे के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है....
मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह
(सदस्य, प्रबंधन समूह)
ओपन बुक्स ऑनलाइन
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जैसे ही मैंने बोला शादी नहीं करूँगा,
साले ने मुझको चाँटा बत्ती बुझा के मारा,.. इस शेर के होने पर हृदय से बधाई, भाई अरुन अनन्तजी.
उसको पता चला जब मैं हो गया दिवाना,
मनमोहनी ने धोखा मुझको रिझा के मारा,.. . मनमोहनी ने रिझा-रिझा के धोखा मारा. .. हा हा हा हा..
इस प्रयास पर बधाई बनती है. लेकिन थोड़ी और संज़ीदा कोशिश कैसी होती यह आपको भी मालूम है, अरुन भाई.
आदरणीय गुरुदेव श्री सादर प्रणाम आपके कथन से पूर्णतया सहमत हूँ यह ग़ज़ल आप सब की रचनाएं पढ़ते पढ़ते लिखी थी कुछ ज्यादा मसक्कत और कोशिश नहीं की. आपकी टिपण्णी उर्जा का श्रोत है आदरणीय आशीष और स्नेह यूँ ही बनाये रखें. सादर
भाई अरुण शर्मा जी वाह बहुत बढ़िया अशार सच है ओ बी ओ पर सबने हँसा के मारा. मजा आगया खूब दाद कुबुलें.
हार्दिक आभार आदरणीय अशोक सर
आदरणीय भ्राताश्री मुझे बिहार में होने वाली शादियों का अनुभव तो नहीं शायद पिछले जनम की बात रही होगी ओ बी ओ पर पेश करने का मौका मिला.
बासी रखी मिठाई मुझको खिला के मारा,
मोटी छुपाके घर में पतली दिखा के मारा,.....वाह वाह क्या बात है..
जैसे ही मैंने बोला शादी नहीं करूँगा,
साले ने मुझको चाँटा बत्ती बुझा के मारा,...अन्धेरे में पता कैसे चला साले ने ही मारा......
हाहाहा हार्दिक आभार मित्र साला ही सबसे करीब था उस समय.
Bhai Jee, Saala to shadi ke baad hotaa naa :-)))))))))
हहाहाहा आदरणीय सर साले तो सपोज यानी की माना हुआ है.
वहां भी गणित लगा रहे थे...माना कि वो साला था. हा हा हा...
सुन्दर गज़ल लिखी है अरुण शर्मा जी
बासी रखी मिठाई मुझको खिला के मारा,
मोटी छुपाके घर में पतली दिखा के मारा,.........ये तो बहुत ज्यादती है , ऐसा धोखा (:))))))) )
जैसे ही मैंने बोला शादी नहीं करूँगा,
साले ने मुझको चाँटा बत्ती बुझा के मारा,......... उस पर साले का चाँटा
आया बहुत दिनों के मैं बाद ओ बी ओ पर
ग़ज़लों के माहिरों ने मुझको हँसा के मारा.............हाहाहा ऐसा ही हो रहा है..हाहाहा इस बार तो मिज़ाहिया गज़लों नें बहुत
हँसाया है
हार्दिक दाद पेश है , क़ुबूल फरमाएं
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