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"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक - 28 (Now Closed)

आदरणीय साहित्य प्रेमियो,

सादर वन्दे |

किसी देश का भविष्य उसकी नयी पीढ़ी पर निर्भर करता है. हर देश के मूल समाज का अपना विशिष्ट जीवन शैली हुआ करती है जो उस भूमि के विशिष्ट संस्कारों से ही संचालित होती है. यही संस्कार उस देश की सभ्यता का वाहक होते हैं. अतः नागरिकों, विशेषकर युवाओं, का वैचारिक रूप से उस देश की परंपरा के अनुरूप संयत होना और उस देश की मूल सामाजिकता के अनुसार सुदृढ़ होना अत्यंत आवश्यक है. वैचारिक रूप से संयत समाज के युवा कभी छिछली जीवन शैली के प्रति आकर्षित नहीं हो सकते.

संस्कृति का मतलब उत्तम स्थिति है. मनुष्य बुद्धि के प्रयोग से अपने चारों ओर की प्राकृतिक परिस्थिति को निरन्तर सुधारता और उन्नत करता रहता है. प्रत्येक जीवन-पद्धति, रीति-रिवाज, रहन-सहन, आचार-विचार, नवीन अनुसन्धान और आविष्कार, जिससे मनुष्य पशुओं के जीवन के दर्जे से ऊँचा उठता है तथा सभ्य बनता है, संस्कृति कहलाती है. इसतरह, सभ्यता से मनुष्य के भौतिक क्षेत्र की प्रगति सूचित होती है जबकि संस्कृति से मानसिक क्षेत्र की प्रगति सूचित होती है.

ओबीओ लाईव महा-उत्सव के 28 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है. पिछले 27 कामयाब आयोजनों में रचनाकारों ने 26 विभिन्न विषयों पर बड़े जोशोखरोश के साथ बढ़-चढ़ कर कलमआज़माई की है. जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर नव-हस्ताक्षरों, के लिए अपनी कलम की धार को और भी तेज़ करने का अवसर प्रदान करता है.

इस आयोजन के अंतर्गत कोई एक विषय या एक शब्द के ऊपर रचनाकारों को अपनी रचनाएँ प्रस्तुत करना होता है. इसी सिलसिले की अगली कड़ी में प्रस्तुत है :

"OBO लाइव महा उत्सव" अंक - 28
 

विषय - सभ्यता और संस्कृति 

आयोजन की अवधि-  8 फरवरी-13 दिन शुक्रवार से 10 फरवरी-13 दिन रविवार तक

तो आइए मित्रो, उठायें अपनी कलम और दिये गये विषय को केन्द्रित कर दे डालें अपने भावों को एक काव्यात्मक अभिव्यक्ति ! बात बेशक छोटी हो लेकिन ’घाव गंभीर’ करने वाली हो तो पद्य-समारोह का आनन्द बहुगुणा हो जाए. आयोजन के लिए दिए विषय को केन्द्रित करते हुए आप सभी अपनी अप्रकाशित पद्य-रचना पद्य-साहित्य की किसी भी विधा में स्वयं द्वारा लाइव पोस्ट कर सकते है. साथ ही अन्य साथियों की रचनाओं पर लाइव टिप्पणी भी कर सकते हैं.

उदाहरण स्वरुप साहित्य की कुछ विधाओं का नाम सूचीबद्ध किये जा रहे हैं --

तुकांत कविता
अतुकांत आधुनिक कविता
हास्य कविता
गीत-नवगीत
ग़ज़ल
हाइकू
व्यंग्य काव्य
मुक्तक

शास्त्रीय-छंद  (दोहा, चौपाई, कुंडलिया, कवित्त, सवैया, हरिगीतिका इत्यादि)

अति आवश्यक सूचना : OBO लाइव महा उत्सव अंक- 28 में सदस्यगण आयोजन अवधि के दौरान अधिकतम तीन स्तरीय प्रविष्टियाँ ही दे सकेंगे. नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटा दिया जाएगा. यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.

(फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 8 फरवरी-13 दिन शुक्रवार लगते ही खोल दिया जायेगा ) 

यदि आप किसी कारणवश अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो  www.openbooksonline.com पर जाकर प्रथम बार sign up कर लें.


महा उत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...
"OBO लाइव महा उत्सव" के सम्बन्ध मे पूछताछ
मंच संचालक
सौरभ पाण्डेय (Saurabh Pandey)
(सदस्य प्रबंधन टीम)

ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम.

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Replies to This Discussion

आदरणीया राजेश दी 

रचना को आपने समय दिया लिखना सार्थक हुआ / मैंने यंहा डिगा रहा  को डटा रहा के सन्दर्भ में प्रयोग किया है .. क्या अब भी उसे बदलने की आवश्यकता है क्योंकि मेरे हिसाब से तो मायने सही निकल रहा है / आपका मार्गदर्शन मिला इसकी तहे दिल से आभारी हूँ / स्नेह बनाए रखें सादर 

प्रिय महिमा जी डिगना = हिलना
डटना =जमा रहना

आपकी पारखी दृष्टि का हृदय से आभार, आदरणीया राजेशजी.. .

विश्वास है, महिमाजी को तथ्य स्पष्ट हो चुका होगा.

जी आदरणीया राजेश दी .. इसी सन्दर्भ में प्रयोग किया है 

मैं अब समझा गयी आपका तात्पर्य / आभारी हूँ 

 

भारत-भू की संस्कृति तो प्रकृति–सी रंगीली है- सही कहा आपने महिमा श्रीजी-बधाई  
दुनिया मे न इसका कोई सानी, यह  अजब निराली है

आदरणीय लक्ष्मण सर

आपकी प्रतिक्रिया हमेशा उत्साह बढाती है .. रचना पे आपकी सकरात्मक विचार पाकर बहुत ख़ुशी हुयी / स्नेह बनाये रखे . आपका हार्दिक आभार / सादर  

उतार और चढाव तो

प्रकृति के  नियम हैं  

पर जो हर झंझावातो में

डिगा रहा नहीं

वही संस्कृति हमारी है....... बहुत खूब.

 

आततायी कई आये

लुटे और चले गए

आदरणीया महिमा श्री जी सादर, सुन्दर रचना कई विदेशी आक्रमणों के बाद भी हमारी संस्कृति कायम रही किन्तु अब संचार माध्यमो से हो रहे हमले शायद ज्यादा तीव्र हैं.सादर बधाई स्वीकारें.

 

रंगीली संस्कृति हुई, संस्कारों में बींध,

पूर्वजों ने है पाला,स्वेद कणों से रीन्ध/

रंगीली संस्कृति हुई, संस्कारों में बींध,

पूर्वजों ने है पाला,स्वेद कणों से रीन्ध/

आदरणीय अशोक सर 

 वाह!! प्रतिक्रिया स्वरुप आपकी ये सुंदर दोहे ने मन प्रसन्न कर दिया /  सही कहा आपने आदरणीय आज संचार माध्यमो से हो रहे हमले पहले की मुकाबले ज्यादा गंभीर हैं क्योंकि ये सीधे  सांस्कृतिक  चेतना को गहरे रूप चोट करती है और मानसिकता को बिना प्रयास के बदल देती है ये सायबर हमला अभीतक सबसे खरनाक हमला है जो मीठे जहर की तरह असरदार है ..

आपकी उत्साह्वार्दक प्रतिकिया के लिए ह्रदय से आभारी हूँ /  स्नेह बनाए रखे /

सुन्दर सरल अभिव्यक्ति के लिए सादर बधाई आपको

आदरणीय संदीप जी 

बहुत- धन्यवाद रचना को समय देने के लिए 

आततायी कई आये

लुटे और चले गए

जो रहने की ठानी

गंगा –यमुना संस्कृति के

नए स्तंभ बन गए

भारत –भू की संस्कृति

तो गुणग्राही है

वेश –भूषा –भाषा की तो

यह अनूठी त्रिवेणी है

यह पूरब का सूरज है

जो कभी डूबता नहीं

हिमालय सा अडिग

सभ्यता हमारी है

उतार और चढाव तो

प्रकृति के  नियम हैं  

पर जो हर झंझावातो में

डिगा रहा

वही संस्कृति हमारी है

 परम सनेही महिमा जी 

सादर लें सम्मान 

मत्रमुग्ध रचना ने 

बढ़ाया भारत का मान 

वंदे मातरम 

जय हो 

आदरणीय प्रदीप  सर ,सादर प्रणाम 

काफी दिनों के बाद आपकी प्रतिकिया पा कर मन प्रफुल्लित है / आप बड़ो का स्नेह और आशीर्वाद से ह्रदय ख़ुशी से भर  जाता है /

यंहा एक से एक गुणीजन है जिनकी रचनाएं मन्त्र मुग्ध कर देती हैं / मैंने तो बस एक छोटी सी कोशिश की .आपको आपको अच्छी लगी इसका मान बढ़ गया / सदा स्नेह बनाये रखे . आपका हार्दिक आभार / सादर 

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