For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आधुनिक समय में कैसा हो बाल साहित्य ?

आधुनिकीकरण की तरफ बढ़ती दुनिया, हर तरफ नयी नयी तकनीक के अनगिन अजूबे, बच्चों की रंग बिरंगी कल्पनाएँ, नित नए सपने, अनेकानेक जिज्ञासाएं, और जानने के लिए विस्तृत संसार,  ऐसे में कैसा हो बाल साहित्य, जो बच्चों की काल्पनिकता के अनुरूप होने के साथ साथ इतना रोचक हो कि बच्चों के दिलों में अपनी जगह बना सके?

आज बचपन कई प्रतिभाओं के बोझ को ढो रहा है, आधुनिक युग में तथाकथित शिक्षित माता पिता अपनी इच्छाओं के बोझ तले अपने मासूम बच्चों पर प्रतिस्पर्धा के लिए अनावश्यक रूप से दबाव डाल रहे हैं, किसी को अपने घर में नन्हा  ए. आर. रहमान जैसा सुर सम्राट  चाहिए, तो किसी को सरोज खान जैसी नृत्यांगना. ५-६ वर्ष के बच्चों को विदेशी भाषाएँ भी स्कूलों में सिखाई जा रही है. ऐसे में निश्चित तौर पर आम अभिभावकों की भी प्राथमिकता यह तो कतई नहीं कि बच्चे स्कूली किताबों के इतर पारंपरिक कविताओं या साहित्य में रूचि लें.

वहीं ई-लर्निंग नें बाल शिक्षा को बहुत सुलभ बनाया है, और नयी ऊंचाइया भी दी हैं, कोई भी विषय अंतरजाल पर सर्च इंजन में डालो और बच्चों के लिए अनगिनत कार्टून फ़िल्में, विषय आधारित रचनाएं आसानी से पा लो. ऐसे में बाल साहित्य आधारित रचनाओं का समाचीन होने के साथ ही प्रस्तुतीकरण के आधुनिक मापदंडों पर खरा उतरना इस क्षेत्र के रचनाकारों के लिए नयी चुनौती है.

बाल रचनाकारों के लिए विषय-वस्तु का आकाश बहुत बड़ा है, तकनीक से लेकर परियों की दुनिया तक, और हर उम्र के बच्चे के लिए भी ज़रुरत अलग है, जहां नन्हों मुन्नों को शरारतें पसंद हैं, वहीं उनके लिए नैतिक शिक्षाप्रद कहानियों और गीतों की भी ज़रुरत है. एक ओर  जहां उनके मन में इंसानियत की बाल-सुलभ आधारशिला को हिलने नहीं देना है, वहीं उनमें संस्कृति, देशभक्ति, और जिम्मेदारी की नींव भी रखनी है.

पर जब तक बाल साहित्य के प्रस्तुतीकरण को बाल हृदय को आकर्षित करने वाला नहीं बनाया जाएगा, वो बच्चों की पहुँच से दूर ही रहेगा. और सम्पूर्ण भारत देश में एक विस्तृत क्षेत्र तक उत्कृष्ट रचनाएं पहुंचे, इसलिए उनका विविध भाषाओं में अनुवाद होना भी ज़रूरी है.

बाल साहित्य समूह में लेखक लिखते तो है, पर उसे पाठक नहीं मिलते, शायद बड़े लोगों को बच्चों की रचनाओं के पाठन में उतनी रूचि नहीं. इस समूह की रचनाओं के पाठक छोटे बच्चे बनें जहां उन्हें नयी नयी कहानियाँ और कवितायेँ पड़ने को मिले, इसके लिए इस समूह को बालानुरूप बनाना भी बहुत ज़रूरी है...

इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए मुझे लगता है, कि बाल साहित्य समूह सिर्फ रचना लेखन और संकलन तक सीमित न रहकर, अपने पंखों को फैलाए और प्रस्तुतीकरण को भी समान रूप से आवश्यक तत्व समझ कर समाहित करे, ताकि शिक्षण संस्थानों में नन्हे मुन्नों के स्मार्ट क्लास रूम्स के मोनिटर पर आने वाले समय में हमारे मंच की साईट खुले और बाल साहित्य को बड़े स्तर पर अनिवार्य स्वीकार्यता मिले.

इस विषय में सभी सुधिजनों की राय सादर आमंत्रित है.. 

Views: 2339

Replies to This Discussion

एक अच्छी परिचर्चा की ज़मीन के लिए हार्दिक धन्यवाद, डॉ.प्राची. आदर्श से इतर यथार्थ की ज़मीन से उपजी बातों के कुछ विन्दु उभर कर बाहर आ सके तो इस परिचर्चा की महती उपलब्धि होगी. विश्वास है, मंच पर के कई-कई संवेदनशील रचनाकारों को यह विषयवस्तु आंदोलित करे.

मैं इन विन्दुओं पर पुनः आऊँगा.

सादर

आदरणीय सौरभ जी !

इस परिचर्चा को शुरू करने का एक मात्र उद्देश्य बाल-साहित्य समूह को समयानुरूप आधुनिक बनाने के लिए प्रयास की पृष्ठ भूमि तैयार करना है। आपकी सकारात्मक सोच और यथार्थ परक तत्वों को समाहित करने की  आवश्यकता के प्रति मौन स्वीकृति से इस समूह की एडमिन होने के नाते मुझे बहुत संतोष मिला है। 
लेकिन इस परिचर्चा की सफलता तभी है , जब सभी संवेदनशील रचनाकार, पाठक जन, और सदस्य खुल कर इस परिचर्चा में भाग लें, ताकि कुछ महत्वपूर्ण बिंदु  उभर कर सामने आ सकें, जिनके क्रियान्वयन से इस 'बाल-साहित्य' समूह को नयी ऊंचाइयों मिलें।
आपके महत्वपूर्ण बिन्दुओं से सम्बंधित सुझावों का इस परिचर्चा में सदैव स्वागत रहेगा।
हार्दिक आभार।
सादर।  
अधुनि समय में बाल साहित्य कैसा हो, विषय पर कलम उठा कर आपने नेक काम किया है,डॉ प्राची जी ।बच्चे समाज और देश के भावी कर्णधार है, हम उनको क्या परोसरहे है, इस पैर उनमे संस्कार के बीज का पोषण निर्भर करता है । आज बच्चो को अच्छा साहित्य पढ़ने के लिए प्रेरित करने के बजाय कई घरो में खास तौर से महिलाए किटि पार्टियों में जाने के लिए उनको दिनभर टेलीविजन पर कार्टून देखते रहने के लिए अनुमति दे देती है । इसके अतिरिक्त बाल साहित्य को अधिक लोग न पढ़ते है न लिखते है । ओ बी ओ पर भी जो रचनाकार बाल साहित्य, धार्मिक साहित्य, और सामाजिक सरोकार जैसे स्तम्भ में लिखते है, उनकी रचनाए बहुत कम सदस्य पढ़ते और टिपण्णी करते है । जो पढ़ते नहीं वे अपने बच्चो को तो क्या प्रेरित कर बाल साहित्य पढ़ते होंगे । इस ओर विशेष ध्यान देने की महती आवश्यकत है ।

इस परिचर्चा में आपने विचार रखने के लिए आपका स्वागत है आदरणीय लक्ष्मण जी..

"आज बच्चो को अच्छा साहित्य पढ़ने के लिए प्रेरित करने के बजाय कई घरो में खास तौर से महिलाए किटि पार्टियों में जाने के लिए उनको दिनभर टेलीविजन पर कार्टून देखते रहने के लिए अनुमति दे देती है।" ......और कार्टून भी बच्चे कौन से देख रहे हैं, इस पर नज़र रखनी भी बहुत ज़रूरी है...इसके अलग मनोवैज्ञानिक दुष्प्रभाव होते हैं बच्चे के आचरण और निर्माण पर. 

बच्चों को अच्छा साहित्य पड़ने के लिए प्रेरित किया जाना बहुत आवश्यक है. 

आपको यह आलेख लिखा जाना सार्थक लगा, इस हेतु आपका आभार.

अगर हम अच्छे समाज अच्छे देश की कल्पना करते हैं तो शुरुआत हमें बच्चों से करनी होगी एक ईमारत भी खड़ी  करते हैं तो उसकी नीव को पहले मजबूत बनाते हैं।आज जो हमारा सामजिक ढांचा दिन प्रति  दिन बिगड़ रहा है  उसमे कही न कहीं अभिभावक भी जिम्मेदार हैं शिक्षण संस्थाएं जिम्मेदार हैं शिक्षण सामग्री जिम्मेदार है ये चर्चा शुरू करके आपने प्राची इसी ओर  अपनी और हम सभी की जिम्मेदारियों को जागरूक किया है।सही लिखा है आज कल एक दूसरे  से आगे बढ़ने की होड़ में बचपन ख़त्म सा होता जा रहा है दिन रात बच्चों पर पढ़ाई का वजन बस मशीन या रोबोट कहिये तैयार किये जा रहे हैं इस समूह में बच्चों का ज्ञान वर्धक साहित्य जिससे बच्चा खेल खेल में सीखे पोस्ट कर सकते हैं ,मैंने अभी कुछ दिन पहले नन्हे बच्चों के लिए कवितायेँ लिखी थी जिसमे उन्हें कुछ ज्ञान भी मिलता है पोस्ट करुँगी ,आपका आलेख विचारणीय है मेरा पूरा समर्थन है ।बहुत बहुत बधाई आपको इस आलेख के लिए 

इस आलेख की वैचारिकता  को आपका समर्थन समृद्ध कर रहा है आदरणीया राजेश कुमारी जी, इस हेतु आपका हार्दिक आभार.

"इस समूह में बच्चों का ज्ञान वर्धक साहित्य जिससे बच्चा खेल खेल में सीखे पोस्ट कर सकते हैं"

आप अपने लिखी हुई बाल कवितायेँ ज़रूर पोस्ट करें , उनका इंतज़ार रहेगा. सादर.

''जहां नन्हों मुन्नों को शरारतें पसंद हैं, वहीं उनके लिए नैतिक शिक्षाप्रद कहानियों और गीतों की भी ज़रुरत है. एक ओर  जहां उनके मन में इंसानियत की बाल-सुलभ आधारशिला को हिलने नहीं देना है, वहीं उनमें संस्कृति, देशभक्ति, और जिम्मेदारी की नींव भी रखनी है.''

प्राची जी, आपके उपरोक्त कथन से मैं पूर्णतया सहमत हूँ. इस आधुनिकता की दुनिया में बच्चों को किस तरह के साहित्य की आवश्यकता है इस ओर हम सभी का ध्यान आकर्षित करने का बहुत धन्यबाद.  

उपरोक्त कथन पर आपकी सहमति के लिए आभार आदरणीया शन्नो जी. 

मैं अपने बचपन को याद करूँ तो सबसे पहले याद आती है 'पराग' की। जब तक बाल साहित्‍य पढ़ता रहा उसके स्‍तर की बाल-मन पर सकारात्‍मक प्रभाव   डालनें वाली कोई पृत्रिका मैनें नहीं देखी। तत्‍समय ही चंदामामा भी आती थी जो कहानियों की दृष्टि से तो लाजवाब होती थी लेकिन प्रभावोत्‍पदक नहीं। बाद में नंदन और चंपक आईं जिनमें यदा-कदा कुछ न कुछ ऐसा मिल जाता था जो लुभावना होने के साथ ही प्रभावोत्‍पादक भी होता था। बाल्‍यकाल में गीताप्रेस गोरखपुर की लगभग सभी ऐसी पुस्‍तकें पढ़ीं जो बच्‍चों के लिये थीं और उनका प्रभाव भी जीवन पर पाया। हम मन की अपनी एक विशिष्‍ट मानसिकता होती है फिर भी मैं आश्‍वस्‍त हूँ कि मेरे आयु-वर्ग के सभी व्‍यक्ति उस समय के बाल साहित्‍य से सकारात्‍मक ऊर्जा पाये होंगे।  आज के समय के बाल-साहित्‍य में आवश्‍यक हो गया है कि वह धर्म जाति रंग आदि को अलग रखते हुए बात करे।

//मैं आश्‍वस्‍त हूँ कि मेरे आयु-वर्ग के सभी व्‍यक्ति उस समय के बाल साहित्‍य से सकारात्‍मक ऊर्जा पाये होंगे।//

यह पंच लाइन है, सर. अवश्य-अवश्य-अवश्य.

आदरणीय तिलक जी, आपका हार्दिक स्वागत है इस चर्चा में, जो आधुनिक समय में बाल साहित्य के स्वरुप को इस मंच पर और समृद्ध करने के लिए शुरू की गयी है.

बाल पत्रिकाओं  पराग नंदन बालहंस जैसी पत्रिकाओं में वो जादुई तत्व होते थे जो मनोरंजन, ज्ञान, के साथ ही बाल हृदयों में चरित्र निर्माण की नींव कब और कैसे सुदृढ़ कर जाते थे....ये जादू ही था, कि हम झूम उठते थे इन पत्रिकाओं को पा कर. 

बाल साहित्य लेखन की उस सकारात्मक ऊर्जा को अपनी टिप्पणी के माध्यम से इस चर्चा में आप ले कर आये, और आगे बढने से पहले (ओल्ड इस गोल्ड )को भी याद जरूर रखा जाए और आज के समय में उन  सकारात्मक मूल उद्देश्य परक सार्थक शिक्षाप्रद और प्रभाव छोड़ने वाली गुणात्मकता को पुनः लेखन में लाया जाए, ऐसी प्रेरणा को इस चर्चा में समाहित करने के लिए आपका हार्दिक आभार.

सादर.

तिलक जी, आपके कमेन्ट से मन में बचपन कुलबुला उठा...यही किताबें तो मैं भी बचपन में फुर्सत के समय पढ़ती थी व 'चुन्नू-मुन्नू' और 'बालभारती' भी :) 

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Admin replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-121
"स्वागतम"
4 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a discussion

पटल पर सदस्य-विशेष का भाषयी एवं पारस्परिक व्यवहार चिंतनीय

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178 के आयोजन के क्रम में विषय से परे कुछ ऐसे बिन्दुओं को लेकर हुई…See More
6 hours ago
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178
"नीलेश जी, यक़ीन मानिए मैं उन लोगों में से कतई नहीं जिन पर आपकी  धौंस चल जाती हो।  मुझसे…"
Saturday
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178
"आदरणीय मैं नाम नहीं लूँगा पर कई ओबीओ के सदस्य हैं जो इस्लाह  और अपनी शंकाओं के समाधान हेतु…"
Saturday
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178
"आदरणीय  बात ऐसी है ना तो ओबीओ मुझे सैलेरी देता है ना समर सर को। हम यहाँ सेवा भाव से जुड़े हुए…"
Saturday
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178
"आदरणीय, वैसे तो मैं एक्सप्लेनेशन नहीं देता पर मैं ना तो हिंदी का पक्षधर हूँ न उर्दू का। मेरा…"
Saturday
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178
"नीलेश जी, मैंने ओबीओ के सारे आयोजन पढ़ें हैं और ब्लॉग भी । आपके बेकार के कुतर्क और मुँहज़ोरी भी…"
Saturday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178
"नमन, ' रिया' जी,अच्छा ग़ज़ल का प्रयास किया आपने, विद्वत जनों के सुझावों पर ध्यान दीजिएगा,…"
Saturday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178
"नमन,  'रिया' जी, अच्छा ग़ज़ल का प्रयास किया, आपने ।लेकिन विद्वत जनों के सुझाव अमूल्य…"
Saturday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178
"आ. भाई लक्ष्मण सिंह 'मुसाफिर' ग़ज़ल का आपका प्रयास अच्छा ही कहा जाएगा, बंधु! वैसे आदरणीय…"
Saturday

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178
"आपका हार्दिक आभार आदरणीय लक्ष्मण भाई "
Saturday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-178
"आदाब, 'अमीर' साहब,  खूबसूरत ग़ज़ल कही आपने ! और, हाँ, तीखा व्यंग भी, जो बहुत ज़रूरी…"
Saturday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service