For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

हिंदी सीखे : वार्ताकार - आचार्य श्री संजीव वर्मा "सलिल"

ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार के सम्मानित सदस्यों,
सादर अभिवादन,
मुझे यह बताते हुए ख़ुशी हो रही है कि आदरणीय आचार्य श्री संजीव वर्मा "सलिल" द्वारा हिंदी विषय पर कक्षा प्रारंभ की जा रही है | आप सब से अनुरोध है कि आचार्य श्री संजीव वर्मा "सलिल" जी के अनुभवों से लाभ उठाये,
धन्यवाद |

Views: 3133

Reply to This

Replies to This Discussion

नवीन जी! यहाँ मेरे साथ आप भी हैं... अभी हिन्दी के तत्वों की चर्चा हो रही है जब छंदों का क्रम आएगा तब आप से ही सीखेंगे हम सब. पूज्य गुरु जी से पी प्रेम-प्रसादी में से एक-एक चुटकी दें तो भी हम धन्य हो सकेंगे.
Aacharya ji saadar abhiwadan.
आशीष जी! आपका सस्नेह स्वागत. इस बार प्रस्तुत सामग्री से सम्बंधित कोइ प्रश्न हो तो बताइए.
सादर प्रणाम !
कक्षा अच्छी लगी .
सादर
सुनील गज्जाणी
नन्हे बिटवा भाई
चिरंजीव भवः
बहुत अच्छा प्रयास है
थोडा थोडा याद आ रही व्याकरण धीरे धीरे सीख जाऊंगी
धन्यवाद
आशीर्वाद के साथ
आपकी गुड्डोदादी चिकागो अमेरिका
से
आचार्य जी को सादर प्रणाम.
अपितु मेरा प्रश्न थोड़ा अलग हटकर है, परन्तु इसका सम्बन्ध भी संभवतः हिंदी भाषा से ही है. चूंकि यह प्रश्न, मेरे अंतर्मन में बहुत दिनों से धमाचौकड़ी मचा रहा है, इसलिए पूछना चाहता हूँ.

"मुक्तिका, क्षणिका, छंद, दोहा, रुबाई, कविता और गीत की परिभाषाएं स्पष्ट करें. इनके अतिरिक्त भी यदि हिंदी काव्य-लेखन की और भी कुछ विधाएं हों तो कृपा करके उनसे भी हम सबका परिचय करवाएं."

शिष्य का अग्रिम धन्यवाद स्वीकारें.

जी बहुत धन्याबाद ,
जी मे एक कहानी ढूंड रहा हू,तथा विड्मब्ना यॅ है की ना तो मुझे उस कहानी का नाम याद है और ना ही लेखक का किंतु मुझे उस कहानी की रूप रेखा बहुत अच्छे से याद है तो अगर आप मेरी सहायता करे तो मे आपका बहुत अभारी होऊँगा|

कहानी की रूप रेखा ओ बी ओ पर लगा दें. पाठक आपकी सहायता कर सकते हैं.
जी ये कहानी एक जंगल मे हुए  एक चुनाब पर आधारित है,जिसमे जंगल की सभी भेड़े
मिल कर ये सुनिश्चित करना चाहती है की आगे से उनका शिकार ना हो| किन्तु जब
शेर और उसके चमचो  सियारों को इस बात का पता चलता है तो वो चिंतित हो जाते
है,फिर किस परकार सियार छल कपट कर के शेर को जितवाते है,जितने के बाद शेर
सबसे पहले 
भेड़ो की भलाई के लिए नियम बनता है की हर शेर को सुबह नाश्ते मे एक भेड़ का बच्चा,दोपहर मे एक पूरी भेड़ तथा रात मे सेहत का ख्याल रखते हुए आदि भेड़ दी जाये |
जी अगर आप को इस कहानी के लेखक अथवा नाम का पता हो तो कृपा   करके  मुझे बताये,
धन्यवाद   

चौपाई सलिला: १.

क्रिसमस है आनंद मनायें

संजीव 'सलिल'
*
खुशियों का त्यौहार है, खुशी मनायें आप.
आत्म दीप प्रज्वलित कर, सकें

क्रिसमस है आनंद मनायें,
हिल-मिल केक स्नेह से खायें.

लेकिन उनको नहीं भुलाएँ.
जो भूखे-प्यासे रह जायें.

कुछ उनको भी दे सुख पायें.
मानवता की जय-जय गायें.
मन मंदिर में दीप जलायें.
अंधकार को दूर भगायें.


जो प्राचीन उसे अपनायें.
कुछ नवीन भी गले लगायें.
उगे प्रभाकर शीश झुकायें.
सत-शिव-सुंदर जगत बनायें.

चौपाई कुछ रचें-सुनायें,  
रस-निधि पा रस-धार बहायें.
चार पाये संतुलित बनायें.
सोलह कला-छटा बिखरायें.


जगण-तगण चरणान्त न आयें,
सत-शिव-सुंदर भाव समायें.
नेह नर्मदा नित्य नहायें-

सत-चित -आनंद पायें-लुटायें..

हो रस-लीन समाधि रचायें,
नये-नये नित छंद बनायें.
अलंकार सौंदर्य बढ़ायें-
कवियों में रस-खान कहायें..

बिम्ब-प्रतीक अकथ कह जायें,
मौलिक कथ्य तथ्य बतलायें.
समुचित शब्द सार समझायें.

सत-चित-आनंद दर्श दिखायें..

चौपाई के संग में, दोहा सोहे खूब.
जो लिख-पढ़कर समझले, सके भावमें डूब..
*************

 

चौपाई हिन्दी काव्य के सर्वकालिक सर्वाधिक लोकप्रिय छंदों में से एक है. आप जानते हैं कि चौपायों के चार पैर होते हैं जो आकार-प्रकार में पूरी तरह समान होते हैं. इसी तरह चौपाई के चार चरण एक समान सोलह कलाओं (मात्राओं) से
युक्त होते हैं. चौपाई के अंत में जगण (लघु-गुरु-लघु) तथा तगण (गुरु-गुरु-लघु) वर्जित कहे गये हैं. चारों चरणों के उच्चारण में एक समान समय लगने के कारण
इन्हें विविध रागों तथा लयों में गाया जा सकता है. गोस्वामी तुलसीदास जी कृत
रामचरित मानस में चौपाई का सर्वाधिक प्रयोग किया गया है. चौपाई के साथ
दोहे की संगति सोने में सुहागा का कार्य करती है. चौपाई के साथ सोरठा,
छप्पय, घनाक्षरी, मुक्तक आदि का भी प्रयोग किया जा सकता है. लम्बी काव्य
रचनाओं में छंद वैविध्य से सरसता में वृद्धि होती है.
Acharya Sanjiv Salil

नन्हे बिटवा भाई

चिरंजीव भवः

कक्षा बहुत स्टीक

बार बार पढ़ने पर समझ आएगी बहुत अभ्यास ही नहीं रहा व्याकरण ,स्वर,व्यंजन

धन्यवाद

आपकी गुड्डो दादी चिकागो से 

वाह आचार्य जी वाह, मैं तो अलग अलग जगहों पर जाकर ढूँढ रहा था कि अपनी हिंदी को शुद्ध कैसे करूँ। आप ने यह कक्षा चालू कर मुझे इधर उधर भटकने से बचा लिए। इसके लिए बहुत बहुत आभार।

बात चौपाइयों की हो रही है तो मेरी एक लंबी कविता है उसमे से चौपाइयों वाला भाग यहाँ डाल रहा हूँ, देखिये और हो सके तो त्रुटियाँ बताइये ताकि मैं एवं अन्य लोग सोदाहरण सीख सकें।

प्रसंग तब का है जब गणेश जी कार्तिकेय जी को हराते हैं और यह घोषणा होती है कि गणेश जी का विवाह पहले होगा।

 

समाचार यह फैला ऐसे । आग लगी जंगल में जैसे॥ 

विश्वरूप तक बात गई जब । परम सुखी हो आये वे तब॥

उनकी कन्याएँ थीं सुन्दर । खोज रहे थे कब से वे वर॥

वर सुयोग्य यह बात जानकर । आये देने निज दुहिता कर॥

रिद्धि, सिद्धि कन्याएँ दो थीं । दोनों ही अति रूपवती थीं॥

विश्वरूप तब प्रभु से बोले । जय हो महादेव बम भोले॥

पुत्र आपके अति सुयोग्य हैं । कन्याएँ भी परम योग्य हैं॥

रिद्धि के लिए गणपति का कर और सिद्धि को कार्तिकेय वर॥

देकर प्रभु अब तार दीजिए । मुझ पर यह उपकार कीजिए॥

मैंने यह संकल्प लिया है । दुहिताओं को वचन दिया है॥

तव विवाह शिवसुत से होगा । वचन नहीं यह मिथ्या होगा॥

बोले प्रभु विचार उत्तम है । पुत्र हमारे दोनों सम हैं॥

कार्तिकेय हैं विश्व भ्रमण पर । लौटेगें वो जल्दी ही पर॥

जैसे ही वो आ जायेंगे । हम विवाह यह कर पायेंगे॥

कार्तिकेय अवनी का चक्कर । लौटे कुछ ही दिन में लेकर॥

स्नान किया औ’ बोले आकर जय हो अम्बे जय शिवशंकर॥

शर्त कठिन थी, नहीं असंभव । प्रभु की कृपा करे सब संभव॥

यह सुन बोले महाकाल तब । पुत्र नहीं कुछ हो सकता अब॥

शर्त विजेता गणपति ही हैं । योग्य प्रथम परिणय के भी हैं॥

हम बस सकते हैं इतना कर दोनों सँग सँग बन जाओ वर॥

पर पहले गणपति के फेरे । उसके बाद तुम्हारे फेरे॥

यह सुन कार्तिकेय थे चिंतित ।  खिन्नमना औ’ थे चंचलचित॥

चूहे ने है मोर हराया । ऐसा संभव क्यों हो पाया॥

फिर जब बैठे ध्यान लगाया । सब आँखों के आगे आया॥
बोले महादेव, हे सुत, तब । याद करो मेरी वाणी अब॥

मैंने बोला गुनना सुनकर । तुम भागे जल्दी में आकर॥

बिना गुने तुम दौड़ पड़े थे । गणपति फिर भी यहीं खड़े थे॥

बात गुनी तब यह था जाना । मूषक वाहन उनका माना॥

पर यह मूषक की न परिक्षा । ऐसी नहीं हमारी इच्छा॥

है विवाह इक जिम्मेदारी । मूर्ति भोग की ना है नारी॥

तन से दोनों हुए युवा हैं । मगर बुद्धि से कौन युवा है॥

यही जाँच करनी थी हमको । और सिखाना था यह तुमको॥

तन-मन-बुद्धि और प्राणांतर । से जब तक न युवा नारी नर॥

तब तक है विवाह अत्यनुचित । नहीं बालक्रीड़ा विवाह नित॥

विश्व भ्रमण कर हो तुम आये । तरह तरह के अनुभव पाये॥

इसीलिए तुम भी सुयोग्य अब । जाने यह अवसर आये कब॥

तैयारी विवाह की कर लो । मन में अपने खुशियाँ भर लो॥

बोले कार्तिकेय तब माता । बात उचित है गणपति भ्राता॥

बुद्धिमान हैं ज्यादा मुझसे । पर मैं भी अग्रज हूँ उनसे॥

प्रथम प्राणि वह ग्रहण करेंगे । तो मेरा अपमान करेंगे॥

इसीलिए यह लूँगा प्रण मैं । सदा कुमार रहूँगा अब मैं॥

समाचार जैसे ही पायो । विश्वरूप चिंतित हो आयो॥

बोल्यो आकर जय शिव-काली । मेरा वचन जा रहा खाली॥

दुहिताओं को वचन दिया था । मान इन्हें दामाद लिया था॥

अब क्या होगा हे शिव शंकर । सिद्धि मानती शिवसुत को वर॥

समाचार यदि उसने पाया । तो मृत्यू को गले लगाया॥

कुछ करके हे भोले शंकर । प्राण बचाएँ पुत्री का हर॥

तभी सोचकर क्षण भर भोले । एक रास्ता तो है बोले॥

दोनों का विवाह शिवसुत से । होगा, पर केवल इक सुत से॥

गणपति पाणिग्रहण करेंगे । दोनों की ही माँग भरेंगे॥

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . शृंगार

दोहा पंचक. . . . शृंगारबात हुई कुछ इस तरह,  उनसे मेरी यार ।सिरहाने खामोशियाँ, टूटी सौ- सौ बार…See More
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन।प्रदत्त विषय पर सुन्दर प्रस्तुति हुई है। हार्दिक बधाई।"
2 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"बीते तो फिर बीत कर, पल छिन हुए अतीत जो है अपने बीच का, वह जायेगा बीत जीवन की गति बावरी, अकसर दिखी…"
6 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे,  ओ यारा, ओ भी क्या दिन थे। ख़बर भोर की घड़ियों से भी पहले मुर्गा…"
8 hours ago
Ravi Shukla commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - ( औपचारिकता न खा जाये सरलता ) गिरिराज भंडारी
"आदरणीय गिरिराज जी एक अच्छी गजल आपने पेश की है इसके लिए आपको बहुत-बहुत बधाई आदरणीय मिथिलेश जी ने…"
11 hours ago
Ravi Shukla commented on मिथिलेश वामनकर's blog post ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय मिथिलेश जी सबसे पहले तो इस उम्दा गजल के लिए आपको मैं शेर दर शेरों बधाई देता हूं आदरणीय सौरभ…"
11 hours ago
Ravi Shukla commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post साथ करवाचौथ का त्यौहार करके-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी बहुत अच्छी गजल आपने कहीं करवा चौथ का दृश्य सरकार करती  इस ग़ज़ल के लिए…"
12 hours ago
Ravi Shukla commented on धर्मेन्द्र कुमार सिंह's blog post देश की बदक़िस्मती थी चार व्यापारी मिले (ग़ज़ल)
"आदरणीय धर्मेंद्र जी बहुत अच्छी गजल आपने कहीं शेर दर शेर मुबारक बात कुबूल करें। सादर"
12 hours ago
Ravi Shukla commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post आदमी क्या आदमी को जानता है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी गजल की प्रस्तुति के लिए बहुत-बहुत बधाई गजल के मकता के संबंध में एक जिज्ञासा…"
12 hours ago
Ravi Shukla commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय सौरभ जी अच्छी गजल आपने कही है इसके लिए बहुत-बहुत बधाई सेकंड लास्ट शेर के उला मिसरा की तकती…"
12 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर आपने सर्वोत्तम रचना लिख कर मेरी आकांक्षा…"
yesterday
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180
"वो भी क्या दिन थे... आँख मिचौली भवन भरे, पढ़ते   खाते    साथ । चुराते…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service