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मुझको बता रहें हैं मेरी हद वो आजक

मुझको बता रहें हैं मेरी हद वो आजकल।
लगता है भूल बैठे हैं मक़्सद वो आजकल॥

उनका मुझे परखने का अंदाज़ देखिये,
लीटर से नापते हैं मेरा क़द वो आजकल॥

हल्के हवा के झोंके भी जो सह नहीं सके,
कहते फिरे हैं अपने को अंगद वो आजकल॥

रिश्तों की बात करते नहीं हैं किसी से अब
घायल हुए हैं अपनों से शायद वो आजकल॥

कल तक पकड़ के चलते थे जो उँगलियाँ मेरी
कहने लगे हैं अपने को अमजद वो आजकल॥

ख़ुद अपनी मंज़िलों की जिन्हें कुछ ख़बर नहीं,
पहुंचा रहे हैं औरों को संसद वो आजकल॥

“सूरज” बना के उनसे ज़रा दूरियाँ रखो,
झुक झुक के कर रहे हैं ख़ुशामद वो आजकल॥

-- डॉ. सूर्या बाली “सूरज”

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Comment

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Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on November 17, 2012 at 3:16pm

एक से बढ़ के एक 

बधाई सर जी 

Comment by Ashok Kumar Raktale on October 17, 2012 at 9:03am

आदरणीय बाली जी

                   बेहतरीन गजाल पर बधाई स्वीकार करें.

Comment by AVINASH S BAGDE on October 16, 2012 at 11:32am

उनका मुझे परखने का अंदाज़ देखिये,
लीटर से नापते हैं मेरा क़द वो आजकल॥.....अंदाज़ देखिये

कहने लगे हैं अपने को अमजद वो आजकल॥..sateek

“सूरज” बना के उनसे ज़रा दूरियाँ रखो,
झुक झुक के कर रहे हैं ख़ुशामद वो आजकल॥

                           डॉ. सूर्या बाली “सूरज”Sir ...kya roushani dikhai hai

 

Comment by AVINASH S BAGDE on October 16, 2012 at 11:30am

मुझको बता रहें हैं मेरी हद वो आजकल(aaj tak)....Salman khursheed.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 16, 2012 at 10:49am

मुझको बता रहें हैं मेरी हद वो आजकल।
लगता है भूल बैठे हैं मक़्सद वो आजकल॥---------------दूसरो को उपदेश देना बहुत आसन होता है 

उनका मुझे परखने का अंदाज़ देखिये,
लीटर से नापते हैं मेरा क़द वो आजकल॥------पता नहीं नीर समझते हैं या क्षीर 

हल्के हवा के झोंके भी जो सह नहीं सके, 
कहते फिरे हैं अपने को अंगद वो आजकल॥------ओवर कान्फिडेंस 

रिश्तों की बात करते नहीं हैं किसी से अब
घायल हुए हैं अपनों से शायद वो आजकल॥----अपनों का किया घायल अधमरा जो हो जाता है 

कल तक पकड़ के चलते थे जो उँगलियाँ मेरी 
कहने लगे हैं अपने को अमजद वो आजकल॥-----यही होता है सब कुछ भूल जाते हैं 

ख़ुद अपनी मंज़िलों की जिन्हें कुछ ख़बर नहीं,
पहुंचा रहे हैं औरों को संसद वो आजकल॥------हहाहाहा--कटाक्ष !!!

“सूरज” बना के उनसे ज़रा दूरियाँ रखो,
झुक झुक के कर रहे हैं ख़ुशामद वो आजकल॥------चापलूसों से बचना ही चाहिए 

वाह क्या शानदार ग़ज़ल लिखी है काफी दिन बाद लिखी है आपने बहुत उम्दा दाद कबूल करें 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 16, 2012 at 10:09am

दिल झूम उठा, डॉक्टर साहब !

मुझको बता रहें हैं मेरी हद वो आजकल।
लगता है भूल बैठे हैं मक़्सद वो आजकल॥

ये वो मतला है जो मसल हो जाता है. बहुत खूब !

हल्के हवा के झोंके भी जो सह नहीं सके,
कहते फिरे हैं अपने को अंगद वो आजकल॥

कल तक पकड़ के चलते थे जो उँगलियाँ मेरी
कहने लगे हैं अपने को अमजद वो आजकल॥

ख़ुद अपनी मंज़िलों की जिन्हें कुछ ख़बर नहीं,
पहुंचा रहे हैं औरों को संसद वो आजकल॥

“सूरज” बना के उनसे ज़रा दूरियाँ रखो,
झुक झुक के कर रहे हैं ख़ुशामद वो आजकल॥

उपरोक्त अश’आर बार-बार पढ़ रहा हूँ और बार-बार दाद कह रह हूँ. आपकी लगन ऐसी है कि आपकी मसरुफ़ियत झुक कर सलाम करे.

हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ.

Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on October 16, 2012 at 7:38am

रिश्तों की बात करते नहीं हैं किसी से अब
घायल हुए हैं अपनों से शायद वो आजकल॥

बहुत बढ़िया.......

Comment by satish mapatpuri on October 16, 2012 at 12:10am

ख़ुद अपनी मंज़िलों की जिन्हें कुछ ख़बर नहीं,
पहुंचा रहे हैं औरों को संसद वो आजकल॥

इस अदा पर कुर्बान जाऊं ..... स्तरीय कटाक्ष ....... बेहतरीन कहन .... मज़ा आ गया डॉ . बाली साहेब .... लख -लख मुबारका

Comment by वीनस केसरी on October 15, 2012 at 11:14pm

बहुत खूब डॉ साहब उम्दा शेर हुए हैं
बहरो रदीफो कवाफी इतने तंग हैं और उस पर भी क्या लाजवाब अशआर निकाले आपने
वाह वाह वा
ढेरो दाद कबूल करें

Comment by ajay sharma on October 15, 2012 at 10:43pm

ख़ुद अपनी मंज़िलों की जिन्हें कुछ ख़बर नहीं,
पहुंचा रहे हैं औरों को संसद ..........वो आजकल॥ best of lines

“सूरज” बना के उनसे ज़रा दूरियाँ रखो,
झुक झुक के कर रहे हैं ख़ुशामद .......वो आजकल॥ really good

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