For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

काँटों का जीवन: शोषित और उपेक्षित

काँटे, काँटे  क्यों  बनते  हैं,

बन  सकते हैं  जब वो फूल,

एक डाल पर एक रस पीकर,

कैसे  बन   जाते  हैं  शूल?

 

चुभने में  क्या मज़ा रखा है,

क्यों नोकों  से सजा रखा है,

क्यों निष्ठुर निर्मम तन लेकर.

निश्छल मन भीतर छिपा रखा है?

 

नहीं  आस  है  भँवरों  की,

ना तितली को छूने की चाह,

सूखा निर्मम जीवन चुन कर,

किसका  दर्द छिपा  रखा है?

 

मुझको शोषित सा लगता है,

निर्धन  आकुल सा रहता है,

निर्मम  पुष्पों के  समाज में,

घृणित उपेक्षित सा लगता है।

 

दायित्व निभाते हैं ये तन से,

ना कोई आशा ना कोई सपना,

पत्थर  तक  ना  चाहे  शूल,

सब बचते हैं  ना कोई अपना।

 

इनको  भी तो  साथ चाहिए,

अरे कोई तो सौगात  चाहिए,

इन काँटों ने  छेड़ी  है जंग,

उनको  खोया  मान  चाहिए।

कलम से पूरा हिसाब चाहिए।

Views: 521

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by कुमार गौरव अजीतेन्दु on May 6, 2012 at 7:12pm

चुभने में  क्या मज़ा रखा है,

क्यों नोकों  से सजा रखा है,

क्यों निष्ठुर निर्मम तन लेकर.

निश्छल मन भीतर छिपा रखा है?

बहुत सार्थक पंक्तियाँ नीरज जी.बधाई.

Comment by SURENDRA KUMAR SHUKLA BHRAMAR on May 6, 2012 at 12:24am

काँटे, काँटे  क्यों  बनते  हैं,

बन  सकते हैं  जब वो फूल,

एक डाल पर एक रस पीकर,

कैसे  बन   जाते  हैं  शूल?

 

चुभने में  क्या मज़ा रखा है,

क्यों नोकों  से सजा रखा है,

क्यों निष्ठुर निर्मम तन लेकर.

निश्छल मन भीतर छिपा रखा है?

द्विवेदी जी यही तो है पहेली जिन्दगी की साथ साथ रहते भी कब कौन क्या बन जाएँ ....सुन्दर ....इनको भी तो साथ चाहिए बिलकुल .अरे कोई सौगात चाहिए ..अच्छा सन्देश . शुभ कामनाएं ..जय श्री राधे -भ्रमर ५ 

Comment by Abhinav Arun on May 5, 2012 at 8:01pm

सुन्दर कामनाओं की रचना हेतु हार्दिक बधाई नीरज जी -

नहीं  आस  है  भँवरों  की,

ना तितली को छूने की चाह,

सूखा निर्मम जीवन चुन कर,

किसका  दर्द छिपा  रखा है?

सशक्त भावपूर्ण पंक्तियाँ वाह !!


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 5, 2012 at 7:11pm

आपकी इस रचना की गेयता और संवेदनशीलता आकर्षित करती है, नीरज जी.

किन्तु, गेयता को दो प्रारूप होते हैं, एक तो स्वराघात में बलात् परिवर्तन कर.  दूसरा, शाब्दिक गेयता है, जिसके लिये मात्रिक श्रेणीबद्धता आवश्यक हुआ करती है जिसे रचनाकार स्वाध्याय और सतत अभ्यास द्वारा साधते हैं. आप अपनी रचनाओं में इस दूसरी गेयता के प्रति आग्रही हों तो आपकी रचनाएँ तकनीकी रूप से भी गरिमामय हो सकेंगी. 

शुभकामनाएँ और शुभेच्छाएँ.. .

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on May 5, 2012 at 5:00pm
आदरणीय नीरज जी , सादर 
निम्नांकित पंक्तिया मुझे बहुत अच्छी लगीं.  कई भाव  हैं, व्याख्या में आनंद मिलेगा. बधाई. 

काँटे, काँटे  क्यों  बनते  हैं,

बन  सकते हैं  जब वो फूल,

एक डाल पर एक रस पीकर,

कैसे  बन   जाते  हैं  शूल?


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on May 5, 2012 at 11:15am

सुंदर काव्य-अभिव्यक्ति. बधाई स्वीकारें नीरज द्विवेदी जी.

Comment by MAHIMA SHREE on May 4, 2012 at 5:07pm
चुभने में क्या मज़ा रखा है,

क्यों नोकों से सजा रखा है,

क्यों निष्ठुर निर्मम तन लेकर.

निश्छल मन भीतर छिपा रखा है?



नहीं आस है भँवरों की,

ना तितली को छूने की चाह,

सूखा निर्मम जीवन चुन कर,

किसका दर्द छिपा रखा है?
वाह नीरज जी .. अपने काँटों को एक अलग अंदाज में पेश किया है
वाकई काबिले तारीफ है ...
बहुत बढ़िया... बधाई स्वीकार करें

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Aazi Tamaam posted a blog post

तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या

२१२२ २१२२ २१२२ २१२इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्यावैसे भी इस गुफ़्तगू से ज़ख़्म भर…See More
2 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

"मुसाफ़िर" हूँ मैं तो ठहर जाऊँ कैसे - लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'

१२२/१२२/१२२/१२२*****पसरने न दो इस खड़ी बेबसी कोसहज मार देगी हँसी जिन्दगी को।।*नया दौर जिसमें नया ही…See More
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a blog post

ग़ज़ल: मिथिलेश वामनकर

1222-1222-1222-1222जो आई शब, जरा सी देर को ही क्या गया सूरज।अंधेरे भी मुनादी कर रहें घबरा गया…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171 in the group चित्र से काव्य तक
"जय हो.. "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171 in the group चित्र से काव्य तक
"वाह .. एक पर एक .. जय हो..  सहभागिता हेतु आपका हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय अशोक…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171 in the group चित्र से काव्य तक
"क्या बात है, आदरणीय अशोक भाईजी, क्या बात है !!  मैं अभी समयाभाव के कारण इतना ही कह पा रहा हूँ.…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा जी, आपकी प्रस्तुतियों पर विद्वद्जनों ने अपनी बातें रखी हैं उनका संज्ञान लीजिएगा.…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सुशील सरना जी, आपकी सहभागिता के लि हार्दिक आभार और बधाइयाँ  कृपया आदरणीय अशोक भाई के…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश भाई साहब, आपकी प्रस्तुतियाँ तनिक और गेयता की मांग कर रही हैं. विश्वास है, आप मेरे…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, इस विधा पर आपका अभ्यास श्लाघनीय है. किंतु आपकी प्रस्तुतियाँ प्रदत्त चित्र…"
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय मिथिलेश भाईजी, आपकी कहमुकरियों ने मोह लिया.  मैंने इन्हें शमयानुसार देख लिया था…"
Sunday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 171 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव जी सादर, प्रस्तुत मुकरियों की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार.…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service