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प्रस्तुत कविता कक्षा-7 की मेरी छात्रा रितू पाठक ने लिखा है,मैं इस कविता को उसकी अनुमति से यहां पोस्ट कर रहा हूं।उसकी बाल-सुलभ जिज्ञासा,आकांक्षा और कामना दर्शनीय है।

ये ईश्वर की कैसी महिमा,
हम क्यों नहीं उड़ पाते हैं?
हम भी उड़ना चाहे लेकिन,
पंख नहीं मिल पाते हैं॥

ये ईश्वर की कैसी महिमा,
हम क्यों नहीं उड़ पाते हैं?
ये पंक्षी उड़ जाते हैं पर,
हम देख-देख ललचाते हैं॥

ये ईश्वर की कैसी महिमा,
हम क्यों नहीं उड़ पाते हैं?
ये पंक्षी खुश रहते हरदम,
हम चिंता में डूबे जाते हैं॥

ये ईश्वर की कैसी महिमा,
हम क्यों नहीं उड़ पाते हैं?
ये मीठे-मीठे गीत सुनाते,
हम आपस में लड़ जाते हैं॥

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Replies to This Discussion

baal man ki jigyasa ke anuroop shabdon ka taal mel ,bhaav sab sarahniye hai.humari aur se us bachchi ko aashirvaad aur shubhkamnayen dena.

आभार राजेश कुमारी जी!आपका आशीर्वाद मैं अवश्य उस तक प्रेषित करूँगा और आशा करता हूं कि आपके आशीर्वाद के प्रभाव से निश्चित रूप से वह एक सफल कवियित्री होगी।

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