22 नवम्बर 2011 की शाम अचानक ही यादगार बन गयी.
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जी हाँ, मगर मालूम हुआ, भूला या खोया नहीं "था", अति व्यस्त, लस्त-पस्त, त्रस्त किन्तु स्वयं में मस्त-मस्त था..!!!!!
योगराजभाईजी, रिपोर्ट को भले निरस्त करा दें किन्तु, वहीं रहने दें. वो रिपोर्ट हमारे परस्पर स्नेह, भाव, प्यार व दुलार का भौतिक रूप बन कर पड़ा रहेगा. :-)))))))))
खो गया "था" ! :)))))))))))))))))))))))))))))
ये रिपोर्ट विपोर्ट की क्या बातें हो रही है? कोई खो गया है क्या?
क्या ये व्यथा सुन कर कान्हा पिघले ?
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सौरभ भाई जी - क्या उद्धव जी ने कान्हा को गोपियों के रुदन के बारे में भी बताया कि नहीं ? क्या ये व्यथा सुन कर कान्हा पिघले ?
भाई अभिनव जी, राणाभाई करीब तीन-चार माह बाद ’उदित उदयगिरि मंच पर, रघुबर बाल पतंग’ की नाईं नमूदार हुए. और भाई वीनस के साथ मेरे निवास पर आये थे. वीनस के साथ हुई प्रथम सापेक्ष भेंट के वे ’काव्य-सरस’ क्षण सभी के लिये मनोहारी व उत्फुल्लता के क्षण थे. आगे की कई गतिविधियों पर चर्चा हुई. देखिये, दो-तीन दिनों में क्या-कुछ उभर-निखर कर आता है...!
kaipshan men milan sthal ka naam bhi rahe to achchha rahe . maine ghazal "guru " isliye likhe hai kyonki rana ji aur venas je mere " ghazal guru " ban jaayen ye request maine inse kiya varna inki har vidha men utkrishth kshamta se sabhi parichit hai again namaskaar !!
और जो अगर मेरा हाँथ है भी तो वो वाला हाँथ मैंने अपने दूसरे हाँथ से दबा रखा है :)))))))
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