For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

वास्तविक कवि और शायर  हम किसे कहेंगे, उन्हे जो मंचों पर बार-बार दिखाई देते हैं या उन्हें जो मंचों पर दिखने के लिए संघर्ष करते रहते हैं, या उन्हें जिन्हे मंचों पर न आने देने के लिए प्रयास करते हैं अथवा उन्हें जोअपनी कुछेक रचनाओं को बार-बार पढ़ते रहते हैं क्योंकि उनके पास उपाधियाँ हैं ?

आप मानते हैं -- "हक़ीक़त में जो शायर हैं वो मंचों पर नहीं होते ? जो आयोजन कराते हैं वोही पढ़ते-पढ़ाते हैं ?"

 

Views: 1738

Reply to This

Replies to This Discussion

सब कुछ एक प्रकार से लेन देन की प्रक्रिया चल रही है हिंदी क्षेत्र में इससे इस भाषा के साहित्य का कोई भला नहीं होने वाला ! मैंने पहले भी यहाँ लिखा है की कुछ पुराने लोग मठाधीसी कर रहे हैं और नयों को प्रोत्साहन नहीं मिल रहा है और दूसरी और चरण स्पर्शी संस्कृति भी हावी है !!

 पर आपके नेतृत्व में "  परिवर्तन " इससे परे बहुत ही बढ़िया कार्य कर रहा है !! आपको बधाई और शुभकामनाएं !!

क्या ही अच्छा हो यह चर्चा साहित्य सेवियों में 'आम' हो जाय और उन बाजारू मंचों का बहिष्कार होने लगे जहाँ साहित्यिक बलात्कार होता हो, इस तरह न ऐसा मंच सजेगा न ही किसी का शोषण हो पाएगा.

आपकी बातों से पूर्णतया सहमत हूँ अफ़सोसजी. सत्तर के दशक के उत्तरार्ध से लेकर नब्बे के दशक के पूर्वार्ध के मध्य मंच को मसखरों को अड़्डा बन दिया गया. और आज स्थिति यह है कि सामान्य जन के लिये काव्य सम्मेलन आदि ’स्टैण्ड-अप’ कॉमेडी का पर्याय हो गये हैं जहाँ एक आम आदमी हल्की-फुल्की चीज़ें सुन अपनी थकान मिटाने जाने लगा है. यही कारण है कि मंच की दुर्दशा हो गयी है और भाटकर्म प्रभावी हो चुका है जिसकी ओर आपने इंगित किया है.

रचना, विशेषकर काव्य कर्म का, वो सत्यानाश हुआ है कि आज शुद्ध काव्य या परिष्कृत काव्य ’उलनबटोर’ का गान हो गया है जिसेसे ज़मीनी आदमी का कोई सारोकार नहीं. या, है भी तो बस मानसिक विलासिता की तृप्ति के लिये.

सादर.

नया हूँ इसलिए इशारों की बातें कम ही समझता हूँ, कह नहीं सकता व्यावहारिक धरातल आप किसे समझते हैं, उसे जहाँ एक व्यक्ति अपने अस्तित्व (अस्मिता नहीं) की लड़ाई लड़ता दिखता है (?) अथवा उसे जहाँ साहित्य कर्म को निष्काम भाव से किया जाता है ? मेरी निगाह में आम आदमी, साहित्य-सेवी न होकर दर्शक, प्रेक्षक, आलोचक अथवा बुद्धिजीवी आदि कुछ भी हो सकता है लेकिन वह साहित्य सेवी, साहित्यकार, साहित्य प्रेमी कैसे हो सकता है ?

वास्तविक कवि वो होते हैं जो भूख पर लिखने के पहले उन्हें भूखा रहना पड़ता है, गरीबी पर लिखने के पहले उन्होंने गरीबी को भोगा होता है, अन्याय पर लिखने के पहले उन्हें अत्याचार भोगना होता है, संघर्ष पर लिखने के पहले उन्हें उन संघर्ष का हिस्सा बनना होता है. कवि वो नहीं होता जो पंचसितारा होटल, गेस्ट हाउस में बैठ कर एयरकंडीशन के आलीशान अय्यास गृह में बैठ का कलम चलाता है और लाखों रूपये बटोर लाता है. कवि वो होता है जो अपनी हर कविता अपने खून में डूबो कर लिखता है और उसके लिए अपने प्राणों की बाजी लगा देता है. मैंने सुना है पाश ऐसे ही कवि थे, जिन्होनें अपने सीने पर गालियों खायी, बरवर राव जेल की सलाखों के पीछे गये और गदर जैसे रंगकर्मी और कवि अपने पीठ में लगी गोलियों को आज भी ढो रहे है. मैं समझता हूं शायद कवि उन्हें ही कहते है.

उदाहरण के तौर पर दिये गये नाम आपकी विचारधारा को सिराबद्ध कर रहे हैं, रोहित.  वैसे इसका गुमान आपकी रिपोर्ट से हो जाता है जो आप अक्सर प्रेषित करते हैं. जानता हूँ, मेरा कहा हुआ अभी आपको थोड़ा चुभ जायेगा, किन्तु, बहुत कुछ देख-जान-सुन-सोच कर कह रहा हूँ.  कवि की परिभाषा का इतना सामान्यीकरण उचित नहीं.  दुनिया एक आयामी कत्तई नहीं होती. तो फिर, हम इसे एक आयामी क्यों देखें?  थोड़ा और देख-सुन लें, थोड़ा और व्यापक हों.  उक्त विचारों पर अपनी प्रतिक्रिया दें.

 

आदरणीय अफ़सोस ग़ाज़ीपुरीजी,

उक्त प्रतिक्रिया/टिप्पणी आपके संप्रेषण पर नहीं है.  मैंने अनुज रोहित को इंगित किया है. 

आपके संदेश या संप्रेषण की टिप्पणी या प्रतिक्रिया आपके संप्रेषण के नीचे बने Reply के नीचे होगी और उसी थ्रेड में होंगी.  कृपया, किन्हीं और सदस्य को कही गयी मेरी बातों को आप स्वयं पर न लें.

सादर.

अभी अफ़सोस जी कुछ दिनों में पद्धति से वाकिफ हो जायेंगे -

खुलेंगे परिंदों के पर धीरे धीरे >>((>:))...

  मुझे भी स्थिति में सुधार की उम्मीद करते रहने के सिवाय और कोई रास्ता नहीं दीखता | अभी कल बनारस में उलूक महोत्सव हुआ और परिवर्तन की मासिक कवि गोष्ठी भी | भीड़ और भाव में भेद स्पष्ट था कहीं दस तो कहीं डेढ़ हज़ार का भेद | यह सदा से रहा है और रहेगा | गण और गुण का भेद !! सज्जन वृन्द अपना सद्पथ न छोड़ें और चर्चा में शामिल हो इसे मुहीम की हद तक आगे बढ़ाएं !!

आपने सर्वथा उचित कहा है, अभिनवजी.

 

"मैने सुना है.." और "मैं समझता हूँ.." कह कर अपने बता ही दिया की वास्तविक कवि की कितनी पहचान है आपको ?

अभी कुछ दिनों पहले शहर के इक कवि से मुलाकात हुई... उन्हे मैने अपनी कुछ रचनाएँ सुनाई... सुनकर उन्होने कहा बेटा बहुत अच्छा लिखते हो.... मैने कहा कभी मौका दीजिए मंच पे आने का क्योंकि आप तो काई कवि सम्मेलनों मे संयोजक होते हैं इस पर उनकी प्रतिक्रिया रही की बेटा मैं किसी नये व्यक्ति को मौका नही दे सकता..... मैने कहा की जब तक किसी नये व्यक्ति को मौका नही मिलेगा वो तो हमेशा नया ही रहेगा... वे निरुत्तर रहे ..... किंतु काव्या मंचो पर चल रही दादागिरी की झलक दे गये....... पता नही शायद स्टॅंड उप आर्टिस्ट ओर कवि दोनों इक ही हो गये हैं ....

सादर

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-185

परम आत्मीय स्वजन, ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 185 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | इस बार का…See More
7 hours ago
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 173

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
7 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, प्रस्तुति पर आपसे मिली शुभकामनाओं के लिए हार्दिक धन्यवाद ..  सादर"
17 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

आदमी क्या आदमी को जानता है -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२२ कर तरक्की जो सभा में बोलता है बाँध पाँवो को वही छिप रोकता है।। * देवता जिस को…See More
yesterday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-180

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
Monday
Sushil Sarna posted blog posts
Nov 6
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Saurabh Pandey's blog post कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Nov 5
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

देवता क्यों दोस्त होंगे फिर भला- लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

२१२२/२१२२/२१२ **** तीर्थ जाना  हो  गया है सैर जब भक्ति का यूँ भाव जाता तैर जब।१। * देवता…See More
Nov 5

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey posted a blog post

कौन क्या कहता नहीं अब कान देते // सौरभ

२१२२ २१२२ २१२२ जब जिये हम दर्द.. थपकी-तान देते कौन क्या कहता नहीं अब कान देते   आपके निर्देश हैं…See More
Nov 2
Profile IconDr. VASUDEV VENKATRAMAN, Sarita baghela and Abhilash Pandey joined Open Books Online
Nov 1
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"आदाब। रचना पटल पर नियमित उपस्थिति और समीक्षात्मक टिप्पणी सहित अमूल्य मार्गदर्शन प्रदान करने हेतु…"
Oct 31
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर अमूल्य सहभागिता और रचना पर समीक्षात्मक टिप्पणी हेतु…"
Oct 31

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service