प्रणाम !
साथियों जैसा की आप सभी को ज्ञात है ओपन बुक्स ऑनलाइन पर प्रत्येक महीने के प्रारंभ में "महा उत्सव" का आयोजन होता है, उसी क्रम में ओपन बुक्स ऑनलाइन प्रस्तुत करते है ......
"OBO लाइव महा उत्सव" अंक १० (छंद विशेषांक)
इस बार महा उत्सव का विषय है "रक्षा बंधन"
आयोजन की अवधि :- ७ अगस्त २०११ रविवार से ०९ अगस्त २०११ मंगलवार तक
महा उत्सव के लिए दिए गए विषय को केन्द्रित करते हुए आप सभी अपनी अप्रकाशित रचना छंद काव्य विधा में स्वयं द्वारा लाइव पोस्ट कर सकते है साथ ही अन्य साथियों की रचनाओं पर लाइव टिप्पणी भी कर सकते है |
इस बार हम प्रस्तुत कर रहे है "छंद विशेषांक" यानी इस अंक में केवल भारतीय छंद विधा में काव्य प्रस्तुत किये जा सकेंगे |
भारतीय छंद के कुछ प्रचलित प्रकार निम्न है ....
साथियों बड़े ही हर्ष के साथ कहना है कि आप सभी के सहयोग से साहित्य को समर्पित ओबिओ मंच नित्य नई बुलंदियों को छू रहा है OBO परिवार आप सभी के सहयोग के लिए दिल से आभारी है, इतने अल्प समय में बिना आप सब के सहयोग से कीर्तिमान पर कीर्तिमान बनाना संभव न था |
इस १० वें महा उत्सव में भी आप सभी साहित्य प्रेमी, मित्र मंडली सहित आमंत्रित है, इस आयोजन में अपनी सहभागिता प्रदान कर आयोजन की शोभा बढ़ाएँ, आनंद लूटें और दिल खोल कर दूसरे लोगों को भी आनंद लूटने का मौका दें |
अति आवश्यक सूचना :- इस छंद विशेषांक में सिर्फ और सिर्फ भारतीय छंद आधारित रचनायें ही पोस्ट करने की कृपा करें, नियम विरुद्ध व निम्न स्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये और बिना कोई पूर्व सूचना दिए प्रबंधन सदस्यों द्वारा अविलम्ब हटा दिया जायेगा, जिसके सम्बन्ध में किसी भी किस्म की सुनवाई नहीं की जायेगी |
( फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो ७ अगस्त लगते ही खोल दिया जायेगा )
यदि आप अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो www.openbooksonline.com पर जाकर प्रथम बार sign up कर लें |
नोट :- यदि आप ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार के सदस्य है और किसी कारण वश महा इवेंट के दौरान अपनी रचना पोस्ट करने मे असमर्थ है तो आप अपनी रचना एडमिन ओपन बुक्स ऑनलाइन को उनके इ- मेल admin@openbooksonline.com पर ७ अगस्त से पहले भी भेज सकते है, योग्य रचना को आपके नाम से ही महा उत्सव प्रारंभ होने पर पोस्ट कर दिया जायेगा, ध्यान रखे यह सुविधा केवल OBO के सदस्यों हेतु ही है |
( "OBO लाइव महा उत्सव" सम्बंधित किसी भी तरह के पूछताक्ष हेतु पर यहा...
मंच संचालक
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wah Yograj ji, bahot khoob
जय हो योगराज भैया....बहुत ही खुबसूरत धनाक्षरी प्रस्तुत किया है आपने....बहुत ही बढ़िया...
शुक्रिया प्रीतम भाई ! (वैसे मैंने घनाक्षरी प्रस्तुत "किया" नहीं प्रस्तुत "की" है ). :)))))
तोहफे में बहनों को , आजादी दिलाएंगे !
गली और नुक्कड़ों पे, खड़े सब लफंगों को ,
सौंपेंगे पुलिस को या, मार के भगायेंगे !
एक बार मौका देंगे, उनको सुधरने का,
फिर खोज खोज कर, राखी बंधवाएंगे !
ऐसा गर हो गया तो , बहने भी खुश होंगी,
फिर हम साथ साथ , खुशिया मनाएंगे !
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(५)
भूल से ही बाँधी चाहे, राखी कान्हा की कलाई ,
जब कोई नहीं साथ, वो ही आया भाई हैं !
भाई हो तो कृष्णा सा, आया जो पुकार सुन
जिसने पाँचाली की भी , इज्जत बचाई हैं !
कंस भी था एक भाई, बहना को कैदी किया,
भानजे के हाथों मरा, कड़वी सच्चाई है !
एक भाई रावण था, सुन झूठ बहना का,
भूल ऐसी कर बैठा, लंका भी गंवाई है ! ,
भाई रवि गुरु जी. क्या बात है, एक साथ ७ घनाक्षरी छंद. आपने तो प्रभाकर जी को पीछे छोड़ दिया है. बहुत अच्छा प्रयास है. मुझे लगता है हम जब किसी नयी विधा पर पकड़ बनाना चाहते हैं तो खुल कर हाथ साफ़ करते हैं. वही ईमानदार प्रयास मुझे आपकी रचनाओं में दिखाई दिया. इसका एक और मतलब ये भी है की अभी और भी रचनायें आपकी और से आने वाली हैं. 'सर्वोत्तम अभी आना बाकी है' की तर्ज़ पर लगे रहिये रवि भाई. हार्दिक बधाई स्वीकार कीजिये.
आ हा हा हा रविगुरु, ओ हो हो हो रवि गुरु,
लिखा बड़ा मस्त-मस्त, लगे रहो रवि गुरू.
सावन में रविगुरु, जिया खिले रवि गुरु,
सात-सात छंद गुरू, मान गये रवि गुरू,
तेरा गुरु मेरा गुरु, मेरा गुरू तेरा गुरु,
जो भी गुरु सत गुरु, रक्षा बाँधें सत गुरू.
पूजो पेंड़ रविगुरु, राखी बाँधो रवि गुरु,
रचो खूब रविगुरु, साधुवाद रवि गुरू..
नोट: यह "जलहरण" घनाक्षरी" है जिसमें प्रति चरण ३२ अक्षर, १६-१६ पर दो विश्राम, इक्त्तीस्वां (३१ वाँ) लघु, बत्तीसवां (३२ वाँ ) दीर्घ, !
बहुत बढिया आदरणीय अम्बरीष भाईजी.
आपकी प्रतिक्रियाओं को पढ़-पढ़ कर पाठकों को अनेक ज्ञात-अज्ञात छंदों से परिचय-पुनर्परिचय होता जायेगा. छंदमूलक इस आयोजन का होना इस मंच की गरिमा को और बढ़ाएगा, इसमें संदेह नहीं. बहुत-बहुत बधाई तथा आभार.
धन्यवाद भाई आदरणीय सौरभ जी ! मेरे भाई बस यूं ही जो भी सीख जाता हूँ उसे सभी मित्रों से साझा कर लेता हूँ ...:))
आदरणीय सौरभ जी, मैं आपकी बात से पूर्णतः सहमत हूँ.
dhanyabad sir ji
कोई भले कुछ कहे, डट कर खड़े रहे !
छोड़ के मैदान कहीं, ना गए रवि गुरु !
सतरंगे छंद लेके, एक नहीं सात सात,
ओबीओ के मंच पर, आ गए रवि गुरु !
खूब है मिली तारीफ, सबने ही दी आशीष
काम ऐसा कर गए, भा गए रवि गुरु !
सबने है यही माना, सबने यही कहा है !
छा गए भई छा गए, छा गए रवि गुरु !
jai ho sir ji
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1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
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